बंगाल में साल भर में होना है विभानसभा चुनाव, धर्म और राष्ट्रवाद का मुद्दा रहेगा हावी; पहलगाम हमले की भी होगी बात
राज्य विधानसभा चुनाव के लिए साल भर से भी कम समय बचे होने के बीच इन घटनाओं ने सियासी पारा चढ़ा दिया और इसके भावनात्मक रूप लेने की संभावना है जिसके इर्द-गिर्द चुनावी रणनीतियां देखने को मिल सकती हैं। इन हत्याओं के भयावह स्वरूप ने धर्म को राजनीति के केंद्र में ला दिया है।राजनीतिक दल धर्म राष्ट्रवाद और पीड़ित होने के माध्यम से कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए बंगाल के तीन पर्यटकों और उधमपुर में शहीद हुए एक सैनिक के ताबूत कश्मीर से लाए जाने के बाद प्रदेश में न केवल शोक की लहर है, बल्कि इसने धर्म, राजनीति और भावनाओं को एक साथ उद्वेलित कर दिया तथा ध्रुवीकरण बढ़ाया है और इस तरह यह राज्य की अस्मिता की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है।
चुनाव में बचा है काफी कम समय
राज्य विधानसभा चुनाव के लिए साल भर से भी कम समय बचे होने के बीच इन घटनाओं ने सियासी पारा चढ़ा दिया और इसके भावनात्मक रूप लेने की संभावना है, जिसके इर्द-गिर्द चुनावी रणनीतियां देखने को मिल सकती हैं। इन हत्याओं के भयावह स्वरूप ने धर्म को राजनीति के केंद्र में ला दिया है। वहीं, राजनीतिक दल धर्म, राष्ट्रवाद और पीड़ित होने के माध्यम से कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
भावनात्मक व राजनीतिक विमर्श को और अधिक जटिल बनाया
उधमपुर में एक अलग हमले में जान गंवाने वाले नदिया के सैनिक झंटू अली शेख का है। इसने भावनात्मक और राजनीतिक विमर्श को और अधिक जटिल बना दिया है, क्योंकि शहादत और आतंकवाद को अब साम्प्रदायिक चश्मे से देखा जाने लगा है।
बंगाल की राजनीति में बदलाव का संकेत
हमलों के बाद धार्मिक अस्मिता के आह्वान ने बंगाल की राजनीति में बदलाव का संकेत दिया है - जिसके बारे में विश्लेषकों का कहना है कि यह भाजपा के विचारधारा को आगे बढ़ाने और तृणमूल कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है।
सेंटर फार स्टडीज इन सोशल साइंसेज’ के राजनीति विज्ञानी मैदुल इस्लाम ने बताया कि यह सिर्फ आतंक और त्रासदी की कहानी नहीं है। यह मृतकों की धार्मिक पहचान के बारे में है। हम अब पहचान और राजनीतिक दांव-पेंच से आकार लेते परस्पर विरोधी विमर्श देख रहे हैं।
शहादत का कोई धर्म नहीं होता : तृणमूल
तृणमूल कांग्रेस ने झंटू अली शेख के बलिदान को रेखांकित करने की भी कोशिश की और जोर देते हुए कहा कि शहादत का कोई धर्म नहीं होता। हालांकि, प्रदेश भाजपा प्रवक्ता केया घोष ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस एक आतंकी हमले को सैनिक की मौत के समान बताने की कोशिश कर रही है।
मुर्शिदाबाद दंगों का उठेगा मुद्दा
उन्होंने कहा कि कश्मीर में, मुर्शिदाबाद दंगों की तरह ही हिंदुओं से उनका धर्म पूछने के बाद इस्लामी आतंकवादियों ने मार डाला। शेख की मौत घात लगाकर किए गए हमले में हुई। दोनों एक जैसे नहीं हैं। इस्लामी आतंकवाद एक वास्तविकता है। जितनी जल्दी हम इसे स्वीकार कर लें, उतना ही बेहतर होगा।
इस टिप्पणी ने गहरे वैचारिक टकराव को सामने ला दिया। एक ओर जहां भाजपा धार्मिक पहचान के चश्मे से हत्याओं को दिखाना चाहती है, वहीं दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय बलिदान के व्यापक विचार पर जोर देकर उस विमर्श को कमजोर करने का प्रयास कर रही है।
जिहादियों की मदद करती है टीएमसी : भाजपा
हालांकि, तृणमूल के वरिष्ठ नेता सौगत राय ने भाजपा के इस आरोप को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से सुरक्षा और खुफिया तंत्र की विफलता है। भाजपा इस घटना का इस्तेमाल बिहार विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक भावनाएं भडक़ाने के लिए कर रही है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा कि बंगाल के हिंदू जानते हैं कि तृणमूल कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति के लिए जिहादियों और कट्टरपंथियों की मदद करती है।
पहलगाम हमले को धर्म के चश्मे से देखा जा रहा है
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहलगाम हमले ने भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे को भावनात्मक रूप से मजबूती दी है - जो 2019 के पुलवामा हमले के बाद की भावना को प्रतिध्वनित करता है। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि पुलवामा में शहादत राष्ट्रवाद में निहित एक एकीकृत शक्ति है। पहलगाम में इसे धर्म के चश्मे से देखा जा रहा है, जो कहीं अधिक विभाजनकारी है।
माकपा और कांग्रेस की रणनीति पर होगी बात
इस बीच, माकपा और कांग्रेस, जो खुद को इस बढ़ते ध्रुवीकृत माहौल में राजनीतिक रूप से हाशिए पर पाती हैं, ने संयम बरतने की अपील की है। माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि हमें शहादत को नफरत को तूल देने के लिए इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए।
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