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    Matua community से जुड़े 72 लाख लोग हैं बंगाल में, जानें सभी सियासी दलों के लिए क्‍यों जरूरी हैं मतुआ समुदाय के वोट

    By Vijay KumarEdited By:
    Updated: Sat, 27 Mar 2021 10:32 AM (IST)

    Know All About Matua community मतुआ समुदाय यानी कि बंगाल में एससी आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा। बंगाल की 30 विधानसभा सीटों पर मतुआ वोटर प्रभावी है जबकि कुल 70 सीटों पर उनकी अच्छी-खासी आबादी है। ऐसे शरणार्थी हैं जिन्हें आजतक भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाई

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    2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी बड़ो मां के घर पहुंच कर उनके पांव छूए थे।

    ऑनलाइन डेस्‍क, कोलकाता। मतुआ समुदाय यानी कि बंगाल में एससी आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा। बंगाल की 30 विधानसभा सीटों पर मतुआ वोटर प्रभावी है, जबकि कुल 70 सीटों पर उनकी अच्छी-खासी आबादी है। वैसे तो मतुआ की आबादी बंगाल में करीब दो करोड़ होने की बात कही जाती है, लेकिन कहा जाता है कि इनकी संख्या एक करोड़ से कम भी नहीं है। यह सभी अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते हैं।

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    बंगाल में करीब 25 फीसद एससी आबादी है जिनमें 17 फीसद मतुआ के होने की बात है। जिन्हें किसी तरह का झुनझुना नहीं, केवल नागरिकता चाहिये। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समेत अन्य शरणार्थियों का समर्थन भाजपा को मिला था। ऐसे में तृणमूल और भाजपा दोनों के लिए ही 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले मतुआ वोट कितना अहम है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

    ऐसे शरणार्थी हैं, जिन्हें आजतक भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाई

    -भारत के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बड़ी संख्या में मतुआ बंगाल आ गए थे। यह ऐसे शरणार्थी हैं, जिन्हेंं आजतक भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाई है। ऐसे मतुआ शरणार्थी उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूचबिहार और पूर्व व पश्चिम बद्र्धमान जिले में फैले हुए हैं। देश विभाजन के बाद बाद हरिचंद-गुरुचंद ठाकुर के वंशज प्रमथा रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी बीणापानी देवी उर्फ बड़ो मां ने मतुआ महासंघ की क्षत्रछाया में राज्य में मतुआ समुदाय को एकजुट किया और उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए कई आंदोलन किए।

    2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी बड़ो मां के घर पहुंच कर उनके पांव छूए थे। बाद में चुनावी सभा में उन्होंने वादा किया था कि उन सभी को नागरिकता दी जाएगी। माना जा रहा है कि उसी के बाद संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पास कराया गया, लेकिन लागू नहीं होने से मतुआ समुदाय नाराज हो गए थे। इसके बाद उनकी नाराजगी दूर करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को बनगांव के ठाकुर नगर में सभा करनी पड़ी और कहना पड़ा कि कोरोना टीकाकरण के बाद उसे लागू किया जाएगा। अब मोदी ओराकांदी जाकर मतुआ समुदाय का दिल जीतने की कोशिश में है।

    इसलिए जरूरी है मतुआ वोट

    वर्ष 2001 की गणना के अनुसार, बंगाल की 1.89 करोड़ एससी आबादी में 33.39 लाख अथवा 17.4 प्रतिशत आबादी नमोशूद्र है। कहा जाता है कि नमोशूद्र की आधी आबादी मतुआ समुदाय की है। धार्मिक प्रताड़ना के कारण वर्ष 1950 से मतुआ बंगाल में आ गये। मतुआ संप्रदाय वर्ष 1947 में देश विभाजन के बाद हिंदू शरणार्थी के तौर पर बांग्लादेश से यहां आया था। 2011 के जनगणना के अनुसार बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी 1.84 करोड़ है जिसमें मतुआ संप्रदाय की आबादी तकरीबन आधा है। यद्यपि कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन मतुआ संप्रदाय को लगभग 70 लाख की जनसंख्या के साथ बंगाल का दूसरा सबसे प्रभावशाली अनुसूचित जनजाति समुदाय माना जाता है।

    बंगलादेश से मतुआ समुदाय को साधेंगे मोदी

    बंगाल में मतदान के दिन पीएम मोदी के मतुआ ठाकुरबाड़ी पहुंचने के चुनावी मायने समझे जा सकते हैं। मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जो ओराकांदी जाकर मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिचांद ठाकुर के मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे। उनका जन्म 1812 में ओराकांदी के उसी स्थान पर हुआ था, जहां पर ठाकुरबाड़ी मौजूद है। उन्हें मतुआ समुदाय ईश्वर का अवतार मानते हैं। मोदी का वहां मतुआ समाज के लोगों से मिलने उन्हें संबोधित करने की भी बात है। उनकी इस यात्रा को लेकर दोनों ओर के मतुआ समुदाय काफी खुश है। हरिचांद ठाकुर ने नामशुद्रों को सामाजिक समानता दिलाने के लिए इस संप्रदाय की स्थापना की थी और सामाजिक सुधार की दिशा में बड़े पहल किए थे। बाद में उनके बेटे गुरुचांद ठाकुर ने इस संप्रदाय का प्रचार-प्रसार किया था।

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