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    Bengal: जब कोलकाता की सड़कों पर लगे ‘गांधी वापस जाओ’ के नारे, जानिए क्या थी वजह?

    By AgencyEdited By: Mohd Faisal
    Updated: Mon, 14 Aug 2023 10:06 PM (IST)

    Independece Day 2023 News भारत के आजाद होने से दो दिन पहले जब महात्मा गांधी विश्व युद्ध-पूर्व के ‘कैडिलैक’ वाहन से कोलकाता (तब कलकत्ता) के बेलियाघाट पहुंचे थे तब महानगर की घनी आबादी वाला यह इलाका दंगों का केंद्र बना हुआ था और यहां उनके जीवन में पहली बार भीड़ ने उनका स्वागत ‘गांधी वापस जाओ’ के नारों से किया।

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    Bengal: जब कोलकाता की सड़कों पर लगे ‘गांधी वापस जाओ’ के नारे (फाइल फोटो)

    कोलकाता, पीटीआई। भारत के आजाद होने से दो दिन पहले जब महात्मा गांधी विश्व युद्ध-पूर्व के ‘कैडिलैक’ वाहन से कोलकाता (तब कलकत्ता) के बेलियाघाट पहुंचे थे, तब महानगर की घनी आबादी वाला यह इलाका दंगों का केंद्र बना हुआ था और यहां उनके जीवन में पहली बार भीड़ ने उनका स्वागत ‘गांधी वापस जाओ’ के नारों से किया।

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    दंगों का केंद्र बना कोलकाता के बेलियाघाट पहुंचे थे राष्ट्रपिता

    महात्मा गांधी शांति लाने की कोशिश के तहत शहर में मियागंज की विशाल मुस्लिम झुग्गी और एक निम्न मध्यम वर्गीय हिंदू इलाके के बीच स्थित बेलियाघाट की एक जीर्ण-शीर्ण एक मंजिला इमारत में रहने के लिए पहुंचे थे। हैदरी मंजिल नाम का वह घर जिसमें महात्मा गांधी रुके थे, उसका चयन बंगाल के पूर्व मुस्लिम लीग प्रमुख हुसैन सुहरावर्दी ने किया था।

    सुहरावर्दी के अनुरोध पर ही गांधी उस समय पृथ्वी पर सबसे अशांत शहर में शांति लाने के प्रयास करने के लिये कोलकाता आने पर सहमत हुए थे। लार्ड लुई माउंटबेटन ने महात्मा गांधी को ‘वन मैन बाउंड्री फोर्स’ करार दिया था।

    78वीं वर्षगांठ को मनाने की बनाई योजना

    ‘गांधी भवन’ (हैदरी मंजिल को दिया गया नया नाम) का संचालन करने वाले ‘पूर्ब कोलिकाता गांधी स्मारक समिति’ के सचिव पापरी सरकार ने कहा कि गांधीजी बाहर आए और उनके खिलाफ जुटी भीड़ को शांत किया। यह इस शहर में ‘वन मैन पीस आर्मी’ (एक सदस्यीय शांति सेना) के काम की शुरुआत थी। सामाजिक कार्यों के बारे में गांधीवादी सिद्धांतों को समर्पित समिति ने महान कलकत्ता चमत्कार की 78वीं वर्षगांठ को मनाने की योजना बनायी है।

    नरसंहार के बीच बापू का वहां जाना एक साहसी निर्णय था- किंशुक चटर्जी

    कलकत्ता विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के डॉ. किंशुक चटर्जी ने कहा कि नरसंहार के बीच में वहां जाना एक साहसी निर्णय था और यह दुस्साहसिक योजना नहीं तो निश्चित रूप से अच्छी तरह से सोची-समझी योजना थी। कोलकाता में इससे भी अधिक जघन्य दंगों का प्रभाव पूरे देश के लिए विनाशकारी होता।

    क्या बोले इतिहास के प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी

    जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी के निदेशक और समकालीन इतिहास के प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी ने कहा कि उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। उन्होंने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए वार्ताओं को त्याग दिया और नोआखाली में रहने का फैसला किया और फिर कोलकाता में शांति लाने के लिए दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस समारोह से भी दूर रहे। 15 अगस्त को कोलकाता में दंगे रुक गए, इसीलिए प्रेस ने इसे ‘महान कलकत्ता चमत्कार’ के रूप में वर्णित किया।