गार्डनरीच शिपबिल्डर्स नौसेना के लिए बना रही आठ पनडुब्बी-रोधी युद्धपोत व अन्य देशों के लिए सात पोत
कोलकाता में स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनी गार्डनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसइ) इस समय 23 पोतों का विनिर्माण कर रही है जिनमे ...और पढ़ें

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। कोलकाता में स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनी गार्डनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसइ) इस समय 23 पोतों का विनिर्माण कर रही है जिनमें से सात पोत अन्य देशों के लिए बनाए जा रहे हैं। कंपनी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक कमोडोर (सेवानिवृत्त) पीआर हरि ने यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि ये सभी पोत इस समय विनिर्माण के विविध चरणों में हैं। जीआरएसइ को भारतीय नौसेना के लिए तीन आधुनिक पोत बनाने का 19,294 करोड़ रुपये का ठेका भी मिला है जो उसके लिए गौरव की बात है। इनमें से दो पोत वह बना चुकी है और तीसरे का निर्माण तेज गति से चल रहा है। हरि ने कहा, जीआरएसइ 23 पोतों का विनिर्माण कर रही है जिनमें से सात अन्य देशों के लिए हैं। कोलकाता की यह युद्धपोत विनिर्माता कंपनी बांग्लादेश के लिए छह गश्ती नौकाएं तथा गुआना के लिए यात्री और सामान के आवागमन के लिए एक पोत बना रही है। हरि ने बताया कि जीआरएसइ नौसेना के लिए आठ पनडुब्बी-रोधी युद्धपोत भी बना रही है।
बता दें कि जीआरएसइ अब तक 100 से ज्यादा स्वदेशी युद्धपोत का निर्माण कर चुकी है। पिछले महीने 15 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जीआरएसइ द्वारा भारतीय नौसेना के लिए निर्मित स्वदेशी युद्धपोत दूनागिरी का यहां जलावतरण किया था। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि यह युद्धपोत भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। इससे नौसेना की ताकत में इजाफा होगा और उसकी भविष्य की जरूरतों पर खड़ा उतरेगा। समारोह में नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरिकुमार समेत सेना, नौसेना व जीआरएसइ के वरिष्ठ अधिकारीगण मौजूद रहे थे। परियोजना 17ए के तहत निर्मित यह दूसरा युद्धपोत (स्टील्थ फ्रिगेट) है। इस युद्धपोत की सबसे बड़ी खासियत है कि ये अत्याधुनिक संसाधनों जैसे बराक-8 मिसाइल और हायपरसोनिक ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों से लैस होंगे। दुश्मन के रडार भी इसे टै्रक नहीं कर सकेगी। इन युद्धपोतों की लंबाई 149 मीटर और वजन क्षमता करीब 6670 टन है जबकि इसकी रफ्तार 28 समुद्री मील प्रति घंटा होगी। यह पूरी तरह स्वदेशी है और मेक इन इंडिया के तहत इसका निर्माण किया गया है। यह अत्याधुनिक नौसैन्य पोत गहन परीक्षण से गुजरेगा और उसके बाद इसे 2024 तक नौसेना को सौंपे जाने की उम्मीद है।
1884 में एक लघु फैक्टरी के रूप में जीआरएसइ की हुई थी स्थापना
जीआरएसइ मुख्य तौर पर भारतीय नौसेना व तटरक्षक बल के लिए गश्ती व युद्धक जहाजों से लेकर व्यापारिक जलपोतों का निर्माण व मरम्मत करती है। यह कंपनी सन् 1884 में कोलकाता में हुगली नदी के किनारे एक लघु फैक्टरी के रूप में अस्तित्व में आई थी। 1916 में इसे गार्डनरीच वकशाप नाम दिया गया तथा 1913 के भारतीय कंपनी अधिनियम के अधीन इसे 26 फऱवरी 1934 से एक कंपनी के रूप में निगमित किया गया। इसके बाद भारत सरकार ने एक अप्रैल 1960 को इस कंपनी को अपने हाथ में ले लिया। 31 दिसंबर 1977 से इसका नाम बदलकर गार्डनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड कर दिया गया। जीआरएसइ देश के अग्रणी शिपयार्डों में अपना स्थान रखता है और पूर्वी क्षेत्र का यह एक प्रमुख शिपयार्ड है।

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