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    West Bengal: मशहूर रंगकर्मी ऊषा गांगुली का निधन, थियेटर की दुनिया को गहरा सदमा

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 23 Apr 2020 12:25 PM (IST)

    West Bengal विख्यात रंगकर्मी उषा गांगुली का आज सुबह 7.30 कोलकाता में निधन हो गया। आज तड़के नींद में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। मृत्यु काल में उनकी उम्र 75 वर्ष थी।

    West Bengal: मशहूर रंगकर्मी ऊषा गांगुली का निधन, थियेटर की दुनिया को गहरा सदमा

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता : देश की जानी-मानी रंगकर्मी ऊषा गांगुली का आज सुबह कोलकाता में निधन हो गया। उनकी उम्र 75 वर्ष थी। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक ऊषा गांगुली रीढ़ की हड्डी की समस्या से लंबे वक्त से परेशान थीं। शहर के लेक गार्डेंस इलाके में स्थित अपने फ्लैट में वह गुरुवार को सुबह सात बजे उनकी घरेलू सहायिका को अचेत अवस्था में मिलीं। उन्होंने बताया कि डॉक्टर को बुलाया गया जिसने बताया कि कुछ समय पहले दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी। गांगुली का एक बेटा है, लेकिन वह फ्लैट में अकेली रहती थीं। उनके पति कमलेन्दु का कुछ साल पहले निधन हो चुका है। तीन दिन पहले ऊषा गांगुली के भाई का भी निधन हो गया था। ऊषा गांगुली का जन्म 1945 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था।

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    ऊषा गांगुली के निधन से पूरा रंगजगत स्तब्ध है। ऊषा गांगुली रंगकर्म से जुड़ी हुई थी। उन्होंने कोलकाता स्थित श्री शिक्षायतन कॉलेज से स्नातक किया था। बाद में उन्होंने कोलकाता को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। कोलकाता जहां बंगाली थियेटर का बोलबाला था वहां उन्होंने हिंदी थियेटर को स्थापित किया। कोलकाता की मशहूर रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला ने बताया कि 1976 में ऊषा ने रंगकर्मी नामक एक संस्था बनाई थी, जिसके बैनर तले वो देश की प्रसिद्ध रंगकर्मी बनीं। महाभोज, होली, रुदाली, कोट मार्शल जैसे नाटकों के लिए ऊषा हमेशा याद रखी जाएंगी। वहीं ऊषा का पहला नाटक 'मिट्टी की गाड़ी' था। काशीनाथ सिंह के उपन्यास पर आधारित उनका बहुचर्चित नाटक काशी का अस्सी बहुत चर्चित रहा, पूरे देश में इसका मंचन हुआ।

    अंतरकथा उनका एकल नाटक था।  रंगमंच में अतुल्य योगदान के चलते उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ऊषा गांगुली के निधन पर  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी समेत थिएटर जगत से जुड़े विशिष्ट जनोंं ने अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की है। गांगुली को बंगाल में वैकल्पिक हिंदी रंगमंच के एक नए रूप को लाने का श्रेय जाता है।