बिहार में SIR पर बरपा हंगामा, बंगाल में बेबस है चुनाव आयोग; एक ही संस्था के लिए दौहरा रवैया क्यों?
चुनाव आयोग ने बंगाल सरकार को दो पत्र भेजे हैं जिनमें सीईओ कार्यालय को वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता देने का निर्देश दिया है। आयोग ने कहा कि सीईओ कार्यालय किसी अन्य विभाग के अधीन नहीं हो सकता। यह कदम आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर उठा है।

जयकृष्ण वाजपेयी, राज्य ब्यूरो। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान को लेकर विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग पर हमलावर हैं। बिहार के बाद बंगाल में भी एसआईआर की तैयारी हो रही है। प्रदेश में आगामी वर्ष विधानसभा चुनाव होना है।
इस बीच केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से राज्य सरकार को दो पत्र भेजे गए हैं। इनमें से एक पत्र में बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय की कार्यात्मक स्वतंत्रता और प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण तत्काल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।
आयोग ने साफ कहा है कि राज्य सीईओ कार्यालय को वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता नहीं दी गई है, जिससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और कार्य क्षमता पर असर पड़ सकता है। वहीं दूसरे पत्र में सीईओ दफ्तर को स्थानांतरित करने को कहा गया है। इन दोनों ही पत्रों में चुनाव आयोग की बेबसी दिख रही है। इसकी वजह यह है कि दशकों बाद आयोग को स्वायत्तता की बातें याद आई हैं।
यहां बड़ा प्रश्न यह है कि जब अन्य राज्यों में सीईओ कार्यालय को पूरी स्वायत्तता है तो फिर बंगाल में अब तक क्यों नहीं है? इसका अर्थ यह नहीं निकलेगा कि अब तक राज्य के अधीन रहकर सीईओ कार्यालय विधानसभा और लोकसभा का चुनाव संचालन कर रहा था। आखिर इतने दिनों तक चुनाव आयोग क्यों बेबस रहा कि वह अपने सीईओ कार्यालय को स्वायत्तता नहीं दिला पाया? यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर प्रश्न है।
बंगाल के मुख्य सचिव के पत्र ने खड़े किए कई सवाल
चुनाव आयोग ने बंगाल के मुख्य सचिव मनोज पंत को गत 17 जुलाई को पहला पत्र भेजा, जिसमें सीईओ कार्यालय को सिर्फ स्वतंत्र करने की ही नहीं बल्कि बहुत सीमित वित्तीय अधिकार प्राप्त होने की बात भी लिखी।
यह अपने आप में एक अनूठा मामला है कि राज्य के सीईओ मनोज कुमार अग्रवाल बंगाल सरकार के गृह एवं पर्वतीय मामलों के विभाग का पदेन अतिरिक्त मुख्य सचिव का पद भी संभाल रहे हैं यानी अग्रवाल राज्य सरकार के अधीन भी काम कर रहे हैं।
इन विभागों का प्रमुख प्रधान सचिव स्तर का अधिकारी होता है, जबकि सीईओ का पद अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर का होता है। आयोग ने इस स्थिति को असामंजस्यपूर्ण बताते हुए इसे जल्द से जल्द ठीक करने को कहा है।
चुनाव आयोग ने पत्र में यह भी लिखा है कि बंगाल सरकार स्वतंत्र चुनाव विभाग तैयार करे, जो किसी अन्य विभाग से पूरी तरह अलग हो। इसके लिए अलग बजट की व्यवस्था की जाए, ताकि चुनाव विभाग को स्वतंत्र रूप से वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार मिल सके।
आयोग का कहना है कि यह स्वतंत्रता निष्पक्ष और प्रभावी चुनाव संचालन के लिए आवश्यक है। राज्य के सीईओ को वैसी ही वित्तीय शक्तियां मिलनी चाहिए जैसी अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव या सचिव स्तर के अधिकारी को दी जाती हैं।
इससे वे चुनाव संचालन से जुड़ी जरूरी प्रशासनिक और वित्तीय जरूरतों को स्वतंत्र रूप से पूरा कर सकेंगे। सीईओ कार्यालय में अतिरिक्त, संयुक्त और उप चुनाव अधिकारियों के चार पद लंबे समय से रिक्त हैं।
अभी इस पत्र को लेकर चर्चा थमी भी नहीं कि एक और पत्र चुनाव आयोग ने बंगाल के मुख्य सचिव को भेज दिया। इसमें सीईओ कार्यालय को स्थानांतरित करने को कहा गया है। सीईओ कार्यालय अभी कोलकाता के बीबीडी बाग स्थित बामर लारी भवन में है।
सीईओ कार्यालय के एक अधिकारी के मुताबिक, यहां कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए कार्यालय को स्थानांतरित करना जरूरी हो गया है। संभावना है कि नए कार्यालय को किसी ऐसे भवन में स्थानांतरित किया जाएगा, जहां केंद्र सरकार के अन्य कार्यालय स्थित हैं।
क्या कहता है नियम?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के अनुसार, किसी राज्य के सीईओ का कार्यालय संबंधित राज्य के वित्त या गृह विभाग के अधीन नहीं होता है। यह एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो केंद्रीय चुनाव आयोग की देखरेख में कार्य करता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर ये कदम पहले क्यों नहीं उठाए गए?
चुनाव आयोग के पत्र पर ममता सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ओर से इसे लेकर आपत्ति जताई गई है। वहीं राज्य सरकार कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श ले रही है कि चुनाव आयोग द्वारा दिए गए निर्देश को अदालत में चुनौती दी जा सकती है या नहीं?
ममता सरकार ही नहीं, शासक दल भी इसे कोर्ट में चुनौती देने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि आयोग का निर्देश ‘प्रशासनिक’ कम और ‘राजनीतिक’ कदम अधिक है। चुनाव आयोग के इस फैसले पर बंगाल विधानसभा के स्पीकर बिमान बनर्जी ने कहा कि यह बहुत विवादास्पद मुद्दा है।
वह इसपर कोई विशेष टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि उन्हें यह फैसला स्वीकार नहीं है। स्पीकर ने कहा कि राज्य वित्तीय सहायता तो देगा, लेकिन कोई नियंत्रण नहीं रख सकेगा, कोई राय नहीं दे सकेगा, ऐसा नहीं हो सकता।
चुनाव आयोग की चिट्ठी पर ममता ने क्या किया?
चुनाव आयोग द्वारा पत्र भेजे जाने के बाद सीईओ कार्यालय में रिक्त पदों को भरने के लिए ममता सरकार की ओर से कुछ कदम उठाए जाने की सूचना है।
जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी एसआईआर के विरोध में हैं। वह धमकी भी दे चुकी हैं कि एक भी वोटर का नाम कटा तो वह चुनाव आयोग का घेराव करेंगी। क्या इसलिए सीईओ कार्यालय को स्वायत्तता देने का मुद्दा उठा है? अब देखना है कि चुनाव आयोग को इस बेबसी से कब मुक्ति मिलती है?
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