प्रखर चिंतक डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा- हमारी संस्कृति ही हमारा आधार है
डॉ तत्पुरुष ने बताया कि जो भाव अपने जीवन में अधूरा लगता है हम उसी की पूर्ति करने में लग जाते।हमारे जीवन का एक छोर श्रेय है तो दूसरा छोर प्रेय है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम हमारे श्रेय की पूर्ति करते हैं तथा लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण हमारे प्रेय की पूर्ति करते हैं।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। पश्चिमी सभ्यता की अवधारणा राजसत्ता पर आधारित रही है जबकि हमारी सभ्यता की अवधारणा धर्मसत्ता पर आधारित है। इसलिए अन्य राष्ट्रों की संस्कृतियां वहां के राजनैतिक पराभव के साथ नष्ट हो गई। जबकि 1000 वर्षों के आक्रमणों के बावजूद कोई भी आक्रमणकारी हमारी हस्ती को मिटा नहीं पाया क्योंकि हमारे देश की सीमा का निर्धारण तलवार या बंदूक की नोक पर नहीं अपितु लोक जीवन की व्याप्ति के आधार पर, सांस्कृतिक भावधारा पर आधारित रहा है।' -ये विचार हैं राजस्थानी साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रखर चिंतक डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष के, जो भारतीय संस्कृति संसद की व्याख्यानमाला 'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी' में आभासी माध्यम से बतौर मुख्य वक्ता अपने उद्गार व्यक्त कर रहे थे।
ध्यातव्य है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, भवानी भाई, जैनेन्द्र प्रभृति अनेक विद्वान इस श्रृंखला को अपने वक्तव्यों से समृद्ध कर चुके हैं। डॉ तत्पुरुष ने अपने ओजस्वी भाषण में बताया कि जो भाव अपने जीवन में अधूरा लगता है, हम उसी की पूर्ति करने में लग जाते हैं। हमारे जीवन का एक छोर श्रेय है तो दूसरा छोर प्रेय है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम हमारे श्रेय की पूर्ति करते हैं तथा लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण हमारे प्रेय की पूर्ति करते हैं और हमारे जीवन को समग्रता का विस्तार देते हैं। हमें हमारी संस्कृति के गूढ तथ्यों को समझना होगा और आने वाली पीढ़ी को यह विरासत सौंपनी होगी तभी भविष्य में भी हमारी हस्ती अक्षुण्ण रह सकेगी।
कार्यक्रम का प्रारंभ हर्ष दूगड़ ने 'भारत वंदना' से किया। कार्यक्रम की संयोजिका डॉ तारा दूगड़ ने कहा कि आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद अब समय मानसिक गुलामी से मुक्त होने एवं सकारात्मक ऊर्जा के संयोजन की मांग कर रहा है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉ बिट्ठल दास मूंधड़ा ने कहा कि अब हमें इस विषय को नये परिप्रेक्ष्य में सोचने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ी हम पर गर्व कर सके। सर्वश्री डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी, राजगोपाल सुरेका,विजय झुनझुनवाला, महावीर बजाज, राजेश दूगड़,भागीरथ चांडक, शामा खान, स्नेहलता बैद, अनिल ओझा नीरद, बंशीधर शर्मा, शिवकिसन दम्माणी, रोहित दूगड़, अजय अग्रवाल प्रभृति अनेक गणमान्य लोग अपनी आभासी उपस्थिति से कार्यक्रम में जुड़े रहे।
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