बीड़ी उद्योग पर गहराया संकट, श्रमिक संगठनों का सरकार से करों के बोझ को कम करने की मांग
उद्योग से जुड़े पक्षों का कहना है कि ऊंचे करों की वजह से आज यह उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। सरकार को यह समझना चाहिए कि इससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो जाएंगे जिसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होगा। लाखों लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बीड़ी उद्योग के प्रतिनिधियों और श्रमिक संगठनों ने सरकार से धूम्रपान के इस सस्ते माध्यम पर करों के बोझ को कम करने की मांग की है। उद्योग से जुड़े पक्षों का कहना है कि ऊंचे करों की वजह से आज यह उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। अखिल भारतीय बीड़ी उद्योग महासंघ द्वारा आनलाइन आयोजित बैठक में उद्योग के लोगों ने श्रमिकों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसरों पर भी जोर दिया। महासंघ के संयुक्त सचिव अर्जुन खन्ना ने कहा, देश के दूरदराज के क्षेत्रों में राजस्व और रोजगार सृजन में बीड़ी उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन बीड़ी पर आज 28 प्रतिशत का माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाया जा रहा है, क्योंकि इसे अहितकर उत्पाद की श्रेणी में रखा गया है। इससे श्रमिकों विशेषरूप से बीड़ी उद्योग में काम करने वाली ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
उद्योग से जुड़े पक्षों का कहना है कि ऊंचे करों की वजह से आज यह उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा, सरकार को यह समझना चाहिए कि कर की इतनी ऊंची दर की वजह से देश का यह सबसे पुराना उद्योग बंद होने के कगार पर है। इससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो जाएंगे, जिसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होगा। इससे लाखों लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे।
उद्योग ने कहा कि जीएसटी परिषद ने हाथ से बने उत्पादों पर कर की दर को तर्कसंगत कर पांच प्रतिशत कर दिया है। इसे बीड़ी उद्योग पर भी लागू किया जा सकता है। खन्ना ने कहा, भारत में बीड़ी उत्पादन में एक करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसमें काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं हैं, जो नक्सली क्षेत्रों में रहती हैं। उनके पास कोई वैकल्पिक रोजगार नहीं है। बता दें कि खासकर पश्चिम बंगाल में बीड़ी उद्योग से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। लाखों लोगों की इससे आजीविका चलती है। बंगाल में बीड़ी की खपत भी बहुत है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।