Calcutta High Court: 'विवाहित महिला भी अपने माता-पिता के परिवार की सदस्या', कलकत्ता हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के निर्णय को कायम रखते हुए कहा है कि विवाहित महिला को उसके माता-पिता के परिवार की सदस्या माना जाएगा। वर्ष 2013 में रेखा पाल नामक महिला की ओर से किए गए मामले में तत्कालीन न्यायाधीश अशोक दास अधिकारी की एकल पीठ ने यह निर्णय सुनाया था जिसे चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने खंडपीठ में मामला किया था।

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के निर्णय को कायम रखते हुए कहा है कि विवाहित महिला को उसके माता-पिता के परिवार की सदस्या माना जाएगा। वर्ष 2013 में रेखा पाल नामक महिला की ओर से किए गए मामले में तत्कालीन न्यायाधीश अशोक दास अधिकारी की एकल पीठ ने यह निर्णय सुनाया था, जिसे चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने खंडपीठ में मामला किया था।
कलकत्ता हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
शुक्रवार को न्यायाधीश देबांग्शु बसाक और न्यायाधीश मोहम्मद शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने उक्त निर्णय को कायम रखा है। बंगाल के वीरभूम जिले की रहने वाली रेखा की पैतृक जमीन को राज्य सरकार ने 2012 में बक्रेश्वर ताप विद्युत केंद्र के निर्माण के लिए अधिग्रहित किया था। उसी वर्ष अक्टूबर में राज्य सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर कहा गया था कि जमीन के मुआवजे के रूप में परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी।
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रेखा ने नौकरी के लिए आवेदन किया था, जिसे सरकार की ओर से यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि उनकी शादी हो चुकी है इसलिए अब वे अपने माता-पिता के परिवार की सदस्या नहीं हैं। रेखा पिता की मृत्यु के बाद से अपनी विधवा मां की देखभाल कर रही हैं। रेखा ने सरकार के निर्णय के विरुद्ध हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
एकल पीठ के निर्णय को राज्य सरकार ने दी थी चुनौती
उनके अधिवक्ता आशीष कुमार चौधरी ने तर्क पेश करते हुए कहा था कि अगर विधवा व तलाकशुदा बेटी अपने माता-पिता के परिवार की सदस्या हो सकती है तो विवाहिता बेटी इस सम्मान से क्यों वंचित रहेगी? विवाहित बेटी अगर पैतृक संपत्ति की अधिकारी हो सकती है तो उसे माता-पिता के परिवार की सदस्या क्यों नहीं माना जा सकता?
इन तर्कों को उचित ठहराते हुए एकल पीठ ने रेखा को उसके माता-पिता के परिवार की सदस्या करार देते हुए राज्य सरकार के निर्देश को खारिज कर दिया था। एकल पीठ के निर्णय को राज्य सरकार ने खंडपीठ में चुनौती दी थी। काफी वर्षों तक लंबित रहने के बाद अब खंडपीठ का फैसला आया है।
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