Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bengal Politics: बंगाल के नए राज्यपाल सीवी आनंद बोस की नियुक्ति पर तृणमूल में बेचैनी

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Tue, 22 Nov 2022 11:18 AM (IST)

    Bengal Politics मोदी की पसंद आनंद उस पर ध्यान केंद्रित करेंगे क्योंकि 1977 बैच के आइएएस आनंद कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य कर चुके हैं। कई केंद्रीय योजनाएं भी उन्हीं के विचारों की उपज है। उनका कहना है कि वे संविधान और कानून के तहत कार्य करेंगे।

    Hero Image
    Bengal Politics: नवनियुक्त राज्यपाल सीवी आनंद बोस। फाइल फोटो

    कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का निर्णय और नियुक्ति दोनों ही चौंकाने वाले होते हैं। किसी को दूर-दूर तक ख्यालों में जो नाम नहीं होते हैं, उन्हें वे राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल या अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर देते हैं। राष्ट्रपति के नाम की घोषणा से पहले तक द्रौपदी मुर्मु या फिर उपराष्ट्रपति के लिए बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बारे में दूर-दूर तक कहीं कोई चर्चा नहीं थी। ऐसा ही कुछ अब बंगाल के नए राज्यपाल की नियुक्ति में भी देखने को मिला। जब अचानक गुरुवार की रात पूर्व आइएएस अधिकारी सीवी आनंद बोस के नाम की घोषणा नए राज्यपाल के रूप में हुई तो यह नेताओं और आम लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तृणमूल सरकार तो दूर यहां तक कि प्रदेश भाजपा नेताओं तक को भी इसकी भनक नहीं लगी। यही वजह है कि बोस को लेकर तृणमूल में बेचैनी है तो प्रदेश के भगवा कैंप भी थोड़ा असहज है, क्योंकि धनखड़ की तरह बोस का समर्थन उन्हें मिलेगा या नहीं? द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाए जाने की तो राजनीतिक व्याख्या थी, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि बोस को राज्यपाल क्यों बनाया गया? यह प्रश्न बंगाल के नेताओं, यहां तक कि राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। मूल रूप से केरल के रहने वाले बोस अपने करियर के आरंभ में कोलकाता में रहे थे। उनके नाम में बंगाली ‘महानायक’ नेताजी सुभाष चंद्र का ‘बोस’ टाइटल अवश्य है, परंतु वह बंगाल से अनजान हैं।

    यही कारण है कि उनकी नियुक्ति को लेकर अलग-अलग कयास लग रहे हैं। हर कोई जानना चाहता है कि आनंद को क्यों राज्यपाल बनाया गया? हालांकि कुछ लोग अपने-अपने ढंग से व्याख्या भी कर रहे हैं। भाजपा खेमा ही नहीं, सत्ता पक्ष भी चिंतित है कि नए संवैधानिक प्रमुख कैसे कार्य करेंगे? क्या वह धनखड़ की तरह ‘अति सक्रिय’ होंगे? बोस के नाम की घोषणा के बाद ही हर तरफ से उनके बारे में जानकारी जुटाई जाने लगी। उसी क्रम में पता चला कि वे ‘नियम पुस्तिका’ का सख्ती से पालन करते हैं। वे पीएम मोदी के लिए ‘मैन आफ आइडियाज’ हैं। वे प्रशासनिक तंत्र को पूरी मर्यादा देते हैं। वह राजनीति नहीं, बल्कि प्रशासन से प्रेरित रहते हैं जो उनके पूर्ववर्ती राज्यपाल धनखड़ के विपरीत है। नियुक्ति के अगले ही दिन आनंद ने कहा था कि वह ‘राजनीतिज्ञ’ ममता नहीं, बल्कि ‘प्रशासनिक’ ममता के साथ काम करना चाहेंगे।

    जाहिर है, ऐसे संवैधानिक प्रमुख से भाजपा को उस मायने में ‘लाभ’ होगा या नहीं, यह तो आने वाला समय बताएगा। कुछ तो ऐसे लोग हैं जो यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि असल में आनंद की नियुक्ति मोदी और दीदी यानी ममता के बीच ‘समझौते’ का संकेत है? दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि आनंद राज्यपाल के रूप में ‘राजनीति’ नहीं करेंगे। इससे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘राहत’ मिल सकती है। राज्यपाल के रूप में धनखड़ के कार्यकाल के दौरान, राज्य सचिवालय (नवान्न) और राजभवन के बीच बार-बार टकराव होते रहे हैं, जिससे अक्सर तृणमूल के लिए असहज स्थिति पैदा हो जा रही थी।

    तृणमूल नेता तो यहां तक कहने लगे थे कि राजभवन भाजपा का पार्टी कार्यालय बन चुका है। राजनीतिक व प्रशासनिक वर्ग के एक तबके को लगता है कि आनंद जिस बैकग्राउंड से आते हैं, वे धनखड़ की तरह राजनीतिक टकराव में नहीं जाएंगे। यह भी कहा जा रहा है कि आनंद को खुद पीएम मोदी ने चुना है। अपुष्ट सूत्रों का दावा है कि वे बंगाल के राज्यपाल के रूप में अमित शाह की पसंद नहीं थे। शाह केंद्र सरकार के एक अन्य पूर्व सचिव को नियुक्त करना चाहते थे। दरअसल, मोदी बंगाल के प्रशासनिक हलके में स्वच्छता लाना चाहते हैं। उन्हें राजनीति से ज्यादा प्रशासन की चिंता है। नाम की घोषणा के बाद आनंद ने कहा था कि वह ‘सक्रिय राज्यपाल’ होंगे, लेकिन सक्रियता ‘राजनीतिक’ नहीं, बल्कि ‘प्रशासनिक’ होगी। नए राज्यपाल विभिन्न प्रशासनिक मामलों पर मुख्यमंत्री को सलाह देंगे। वह नवान्न व राजभवन के बीच सेतु के रूप में अपने तरीके से ‘सक्रिय’ रहेंगे। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को बंगाल में ‘सुशासन’ की चिंता है।

    भाजपा नेताओं को लगता है कि बंगाल में ‘कुशासन’ चल रहा है। मोदी राज्य प्रशासन को ‘पारदर्शी’ बनाना चाहते हैं। भाजपा को लगता है कि पूर्वी भारत के समग्र विकास के लिए बंगाल का विकास आवश्यक है। उसके लिए यहां के प्रशासन में सुधार की आवश्यकता है। यदि पूर्वी भारत में सुधार नहीं हुआ तो इसका प्रभाव देश के अन्य भागों पर पड़ेगा। यही वजह है कि मोदी की पसंद आनंद उस पर ध्यान केंद्रित करेंगे, क्योंकि 1977 बैच के आइएएस आनंद कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य कर चुके हैं। कई केंद्रीय योजनाएं भी उन्हीं के विचारों की उपज है। उनका कहना है कि वे संविधान और कानून के तहत कार्य करेंगे। ऐसे में टकराव होना तय है और यही बातें तृणमूल के लिए बेचैनी बढ़ाने वाली है। वह बुधवार को राज्यपाल के रूप में शपथ लेंगे।

    [राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]