बेटे का इंतजार कर रहा है 85 साल का पिता, नाम बदलने से आई मुसीबत
ओडिशा में 85 साल का एक पिता अपने बेटे के डिटेंशन कैंप से छूटने का इंतजार कर रहा है पिता के नाम बदलने से आयी थी मुसीबत।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। 85 साल का एक पिता अपने बेटे के असम के डिटेंशन कैंप से छूटकर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अपने एक फैसले में कहा था कि असम के डिटेंशन कैंप में तीन साल बिता चुके विदेशियों को दो भारतीय जमानतदारों के एक-एक लाख रुपये चुकता करने एवं सत्यापन योग्य पता एवं बायोमैट्रिक सूचना मुहैया कराने पर रिहा किया जा सकता है।
गौरतलब है कि गुवाहाटी में 1980 से बढ़ई के तौर पर काम कर कर रहे असगर अली को स्टेट फॉरेन ट्रिब्यूनल ने जुलाई, 2017 में गिरफ्तार कर गोआलपाड़ा डिटेंशन कैंप के हवाले कर दिया था। असगर का पांच सदस्यीय परिवार कोलकाता के पार्क सर्कस इलाके में रहता है। असगर परिवार में एकमात्र कमाने वाला था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस साल जुलाई में असगर की रिहाई संभव है। असगर के छोटे भाई अरशद ने बताया-' हमारा परिवार दशकों से कोलकाता में रह रहा है। हमारे पास मतदाता परिचय पत्र भी हैं और हम नागरिक के तौर पर मतदान भी करते हैं।
अरशद की बहन नाजिया ने कहा- 'मेरे पिता का नाम पहले शेख मोराल था। इस नाम की वजह से लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे इसलिए उन्होंने 2008 में अपना नाम मतदाता परिचय पत्र और आधार कार्ड में बदलवाकर मोहम्मद जरीफ करवा लिया। इसके लिए बकायदा हलफनामा भी दाखिल किया। उनके नाम बदलने से ही मुसीबत की शुरुआत हुई। भाई को गिरफ्तार किए जाने पर हमने स्टेट फॉरेन ट्रिब्यूनल के पास उसकी पहचान से संबंधित सारे दस्तावेज भेजे लेकिन पिता के नाम बदलने की वजह से हमारी एक नहीं सुनी गई।
इसके बाद अरशद के परिवार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा किया, हालांकि वहां हार होने का मुंह देखना पड़ा। परिवार ने हालांकि हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया है, जिसके बाद असगर के इस साल जुलाई में रिहा होने की परिवार को उम्मीद जगी है।
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