Kolkata: 104 वर्षीय व्यक्ति 36 साल जेल में बिताने के बाद बंगाल की जेल से हुआ रिहा, बाहर आकर कही अपने मन की बात
पश्चिम बंगाल के मालदा सुधार गृह से 104 साल के एक व्यक्ति को रिहा किया गया है। बता दें कि बुजुर्ग व्यक्ति की रिहाई 36 साल बाद हुई है। उन्हें 36 साल पहले 1988 में भूमि विवाद मामले में अपने भाई की हत्या के आरोप में न्यायिक हिरासत की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने कहा कि अब वह अपना पूरा समय अपने परिवार के साथ बिताएंगे।

पीटीआई, कोलकाता। पश्चिम बंगाल के मालदा सुधार गृह से 36 साल जेल में रहने के बाद रिहा हुए 104 वर्षीय व्यक्ति ने कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताएंगे और बागवानी करेंगे।
रसिकत मंडल को 36 साल पहले 1988 में भूमि विवाद मामले में अपने भाई की हत्या के आरोप में न्यायिक हिरासत की सजा सुनाई गई थी।
बीच में उन्हें लगभग एक वर्ष के लिए जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन जमानत अवधि समाप्त होने के बाद वे पुनः जेल चले गए थे तथा सत्र एवं उच्च न्यायालय ने पिछले अवसरों पर उनकी रिहाई की याचिका को खारिज कर दिया था।
मालदा जिले के मानिकचक निवासी मंडल ने मंगलवार को मालदा सुधार गृह के गेट से बाहर निकलते हुए संवाददाताओं को बताया कि अब वह अपना पूरा समय बागवानी/पौधों की देखभाल तथा परिवार के सदस्यों के साथ बिताने में लगाएंगे।
जब उनसे पूछा गया कि उनकी उम्र कितनी है तो मंडल ने बड़बड़ाते हुए कहा कि उनकी उम्र 108 साल है, लेकिन उनके साथ आए उनके बेटे ने बताया कि उनकी उम्र 104 साल है। सुधार गृह के अधिकारियों ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार उनकी उम्र 104 साल है।
अपनी उम्र के हिसाब से काफी चुस्त दिख रहे बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा, मुझे याद नहीं कि मैंने कितने साल जेल में बिताए। ऐसा लग रहा था कि यह कभी खत्म ही नहीं होगा। मुझे यह भी याद नहीं कि मुझे यहां कब लाया गया था।
हालांकि, उन्होंने कहा, अब मैं बाहर आ गया हूं और अपने आंगन के छोटे से बगीचे में पौधों की देखभाल करूंगा। मुझे अपने परिवार और नाती-नातिनों की याद आती है। मैं उनके साथ रहना चाहता हूं। मंडल के बेटे ने कहा कि उनके पिता को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिहा किया गया है।
बेटे ने कहा, कुछ वर्षों के बाद, हर कैदी को जेल से रिहा करने का अधिकार है, बशर्ते उसने कारावास के दौरान कोई अनुचित कार्य न किया हो। खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार उसकी रिहाई का रास्ता साफ कर दिया।
सुधार गृह विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह राज्य की जेलों में बंद सैकड़ों कैदियों के बहुत कम मामलों में से एक है।
क्या था मामला, जिसमें जाना पड़ा जेल
रसिक मंडल कभी भी पश्चिम नारायणपुर से बाहर नहीं गया था क्योंकि उसके पास गंगा से निकली गाद के साथ उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से भरी कुछ बीघा ज़मीन थी। यह ज़मीन बहु-फसल की खेती के लिए एकदम सही थी और यही ज़मीन अंततः रसिक और उसके भाई सुरेश के बीच विवाद का कारण बन गई।
तीखी नोकझोंक के कारण अंततः दोनों घरों के बीच कड़वाहट बढ़ गई और 1988 में सुरेश की उसके घर के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी गई। सुरेश की पत्नी आरती ने रसिक सहित 18 लोगों के खिलाफ़ मानिकचक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। सभी आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर IPC की धारा 302 और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया।
मुकदमा शुरू हुआ और 1994 में, जब रसिक 68 वर्ष के हुए, तो उन्हें एक अन्य ग्रामीण जितेन तांती के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तब से, रसिक मालदा जिले के सुधार गृह में रह रहा है, लेकिन कुछ समय के लिए उसे दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट केंद्रीय सुधार गृह में स्थानांतरित कर दिया गया।
36 साल बाद हुए पति जेल से रिहा
रसिक की पत्नी मीना देवी ने कहा, मुझे बताया गया है कि मेरे पति जल्द ही आ रहे हैं। यह बहुत अच्छी बात है। इतने लंबे समय तक अपने बेटे के परिवार के साथ रहने के बाद, यह अच्छी बात है कि वह वापस आ गए हैं। मैं इंतजार कर रही हूं। मीना 85 साल की हो चुकी हैं और इन दिनों मुश्किल से सुन पाती हैं।
रसिक के कुछ पड़ोसियों का कहना है कि सुरेश की पत्नी आरती, जिसने हत्या की शुरुआती शिकायत दर्ज कराई थी, 30 साल पहले अपने बच्चों के साथ बिहार चली गई थी और फिर कभी वापस नहीं लौटी। गांव वालों का एक वर्ग साफ तौर पर कहता है कि रसिक का दूसरे गांव वाले से जमीन का विवाद था, जिसने भाइयों के बीच झगड़े का फायदा उठाकर सुरेश को गोली मार दी। लेकिन सबूत रसिक के खिलाफ गए।
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