क्या मशहूर लेखक व मोटिवेशनल स्पीकर चेतन भगत राजनीति में भी आएंगे, जवाब दे रहे वे खुद
चेतन भगत को टाइम मैगजीन ने 2010 में दुनिया के 100 प्रभावी लोगों की सूची में शामिल किया था। कैसे उन्होंने फिक्शन से गंभीर साहित्य का रुख किया कोविड-19 के दौरान उनका नया प्रेम क्या रहा क्या राजनीति में आएंगे आदि सवालों पर दैनिक जागरण संवाददाता से बातचीत की।

सिलीगुड़ी,इरफ़ान-ए-आज़म। मशहूर भारतीय लेखक चेतन भगत सिलीगुड़ी आए हुए हैं। टाइम मैगजीन ने 2010 में दुनिया के 100 प्रभावी लोगों की सूची में शामिल किया था। कैसे उन्होंने फिक्शन से गंभीर साहित्य का रुख किया, कोविड-19 के दौरान उनका नया प्रेम क्या रहा, क्या राजनीति में आएंगे आदि सवालों के लेकर दैनिक जागरण संवाददाता ने चेतन भगत का विशेष साक्षात्कार किया। पेश हैं मुख्य अंश।
यह दूसरी बार आप सिलीगुड़ी आए हैं। कैसा लग रहा है?
जी, बहुत अच्छा लग रहा है। सिलीगुड़ी अपने आप में बहुत खास शहर है। यहां के इर्द-गिर्द चारों ओर कुदरत के हसीन नजारे ही नजारे हैं, जिसे निहारने को और जिसके बीच हसीन पल गुजारने को हर किसी का दिल चाहेगा। मैं भी यहां आता हूं तो बहुत लुत्फ उठाता हूं।
इन दिनों नया क्या कर रहे हैं और नया क्या ला रहे हैं?
इन दिनों मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर ही ध्यान केंद्रित कर रखा है। मेरा नाम ही इस चैनल का भी नाम है। यह एक तरह का प्रेरक चैनल है जहां मैं लोगों को जीवन के विभिन्न पहलुओं के संबंध में प्रेरित करता रहता हूं। आज से दो साल पहले कोरोना महामारी व लाकडाउन के दौरान इसे शुरू किया था जिसे लोगों का भरपूर प्यार मिला तो मैं भी इसी में रम गया। यह एक नई चीज है। इसमें बहुत कुछ सीखा है व बहुत कुछ सीखना है। पहले मैं कहीं जाता तभी लोग मेरी प्रेरक बातें सुन पाते लेकिन अब इस चैनल के माध्यम से लोग कहीं भी किसी भी व1त मेरी सारी बातों को देख-सुन सकते हैं।
आज से 11 साल पहले आपने रिवाल्यूशन 2020 को लिखा था। इधर, 2020 को गुजरे भी दो साल हो गए हैं। वह जो रिवॉल्यूशन का सपना आपने देखा व दिखाया था वह आया क्या? और आया तो कैसे? और नहीं आया तो कब आएगा?
जी हां, उस कहानी का एक किरदार राघव रिवाल्यूशन 2020 अखबार निकालता था। वह चाहता था कि व्यवस्था बेहतर करने को वह एक क्रांति ला दे। यह कहानी 2011 में आई थी। उस समय देश में बाबा रामदेव व अन्ना हजारे का आंदोलन भी चल रहा था। हालांकि, इस कहानी को मैंने 2010 में ही लिखा था। तब के और अब के परिप्रेक्ष्य को देखें तो कुछ न कुछ बदलाव तो आया ही है। वैसे भी किसी भी क्रांति से एकबारगी ही कोई बदलाव नहीं आ जाता है। एक क्रांति के बाद एक अस्थिरता का दौर शुरू होता है और चीजें धीरे-धीरे ही पटरी पर आती हैं। उसमें एक लंबा समय लगता है।
पहले वन नाइट एट द कॉल सेंटर, हाफ गर्लफ्रेंड, द गर्ल इन रूम 105 जैसी फिक्शन व रोमांटिक कहानियां लिखने वाले लेखक चेतन भगत अब इंडिया पॉजिटिव, मेकिंग इंडिया ऑसम और व्हाट यंग इंडिया वांट्स आदि लिख रहे हैं। मतलब, फिक्शन व रोमांस की जगह अब नान-फिक्शन व समसामयिक गंभीर मुद्दों पर भी लेखन कर रहे हैं, इसके पीछे की वजह क्या है?
जब एक प्लेटफार्म मिल गया है तो फिर उसका बहुआयामी उपयोग भी किया जाना चाहिए। एक सजग नागरिक होने के नाते समसामयिक, गंभीर व महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी राय रखनी जरूरी है। सजगता फैले यही मेरा मकसद है। केवल मनोरंजन से ही सब कुछ नहीं हो जाता। वह भी जरूरी है और अन्य मुद्दे भी जरूरी हैं। इसीलिए, सब कुछ पर अपनी बातें रखता हूं।
क्या राजनीति में आने का इरादा है?
राजनीतिक पार्टी से जुडऩे या किसी पद को पाने की फिलहाल कोई इच्छा नहीं है। पर, देखें तो हर कोई राजनीति में ही है। व्यवस्था का अंग ही है। उससे परे तो कोई भी नहीं है। इसलिए हर किसी को खुद भी सजग रहना चाहिए व औरों को भी सजग करते रहना चाहिए। वैसे, जो ट्रेनों के आने-जाने की घोषणा करता है, जरूरी नहीं कि वही ट्रेन भी चलाए।
आप आज देश के हालात को किस रूप में देखते हैं?
आज पूरी दुनिया में घबराहट है। कोरोना महामारी के चलते उत्पन्न हुए संकट का असर अभी भी खत्म नहीं हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध का भी विकट प्रभाव है। श्रीलंका में महासंकट की स्थिति है। हर चीज की महंगाई आसमान छू रही है। बेरोजगारी बढ़ी है। इससे अपना देश भी अछूता नहीं है। वर्तमान में चुनौतियां काफी हैं। मगर, इससे हमें उबरना जरूरी है और हम उबरेंगे।
आप यहां विद्यार्थियों संग संवाद करने आए हैं तो यह बताएं कि आप खुद कैसे विद्यार्थी थे असाधारण या औसत?
मैं असाधारण विद्यार्थी तो नहीं था लेकिन औसत से थोड़ा बेहतर था। पर, मैं मेहनती बहुत था। आज भी मैं बहुत मेहनती हूं। रोज काम करता हूं। मुझे जो भी मिला है मेरी मेहनत का ही फल मिला है। हर किसी को पूरी मेहनत करनी चाहिए। उससे कामयाबी मिलती ही मिलती है।
आमतौर पर कहते हैं कि, करियर का एक लक्ष्य होना चाहिए तभी व्यक्ति सफल हो पाता है लेकिन आपके करियर को देखें तो पहले आपने आइआइटी से इंजीनियरिंग की, फिर अइआइएम से मैनेजमेंट की पढ़ाई की। उसके बाद इन्वेस्टमेंट-बैंकिंग की नौकरी में चले गए। फिर, उसे भी छोड़ दिया। फिर, लेखन की दुनिया में आ गए। वहां से अब मोटिवेशनल स्पीकर हो उठे हैं। एक के बाद एक इतने सारे मोड़। इसे भाग्य कहें या लक्ष्य?
बेशक, जिंदगी का एक लक्ष्य जरूर होना चाहिए। उससे कामयाबी मिलने में आसानी रहती है। मगर, यह जरूरी नहीं है कि जिंदगी भर एक ही लक्ष्य होना चाहिए। मैंने विद्यार्थी जीवन में सोचा भी नहीं था कि मैं लेखन की दुनिया में आऊंगा। पर, वक्त के साथ यह एक लक्ष्य हो गया।
अंग्रेजी में लिख कर कोई हिदुस्तानी ब्रांड चेतन भगत हो जाता है और हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया भर में छा जाता है लेकिन हिंदी लेखन व प्रकाशन में ऐसा क्यों नहीं है? जबकि, हिंदुस्तान में हिंदी ही सबसे ज्यादा बोली-सुनी, पढ़ी व समझी जाती है।
देखिए, अंग्रेजी का अपना एक फायदा तो है क्योंकि वह एक वैश्विक भाषा है। मगर, इसका यह मतलब नहीं है कि, हिंदी में संभावनाएं नहीं हैं। हर ओर हिंदी फिल्मों व हिंदी गानों के जलवे ही जलवे हैं। टीवी चैनलों में भी हिंदी का खूब बोलबाला है। खुद मेरी भी हिंदी में अनुवादित किताबें बहुत साराही गई हैं। इसके बावजूद यदि हिंदी लेखन व प्रकाशन की वह स्थिति नहीं हो पाई है तो इसके पीछे वजह यही है कि बदलते वक्त के साथ हिंदी लेखन व प्रकाशन ने खुद को बदला नहीं है। इसने अभी तक खुद को गंभीर साहित्य के सीमित दायरे में ही कैद कर रखा है। उससे बाहर निकलना इसके लिए जरूरी है। इसे आम लोगों के लिए आम भी होना पड़ेगा। युवाओं के लिए युवा भी होना पड़ेगा। हिंदी को भी अपना एक चेतन भगत ढूंढना चाहिए।
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