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    मां और शिशु मृत्यु दर ने बढ़ाई चिंता

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 11 Aug 2022 10:23 PM (IST)

    -हर महीने आठ से नौ मौत के कारण मची खलबली -एनबीएमसीएच प्रबंधन ने कई विभागों को लेकर

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    मां और शिशु मृत्यु दर ने बढ़ाई चिंता

    -हर महीने आठ से नौ मौत के कारण मची खलबली

    -एनबीएमसीएच प्रबंधन ने कई विभागों को लेकर की बैठक

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    अगस्त तक इस महीने चार प्रसूता की मौत

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    हजार के करीब महिलाएं हर साल प्रसव के लिए आती हैं

    जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : एक ओर देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहा है तो दूसरी ओर स्वास्थ्य व्यवस्था पर नजर डाली जाए तो हालत खस्ता है। अभी भी उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज व अस्पताल एनबीएमसीएच समेत अन्य सरकारी अस्पतालों में मां व शिशु की मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी हो रही है। यह चिंता का विषय बना हुआ है। उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज व अस्पताल में मां व शिशु की मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी पर एबीएमसीएच के स्वास्थ्य अधिकारियों ने चिंता जताई है। इसका कारण एक ओर जहां गर्भावस्था में महिलाओं के कुपोषण का शिकार होने व शरीर में खून की कमी को बताया गया है तो वहीं दूसरी ओर जन्म के समय नवजात शिशुओं का वजन काफी कम होना भी मौत का कारण है।

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    एनबीएमसीएच के आधिकारिक सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार यहां हर महीने लगभग आठ से नौ मौतें होती हैं। अधिकारियों ने इसके लिए जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म को बताया है।

    एनबीएमसीएच में मातृ व शिशु मृत्यु के बढ़ते मामले सामने आने के बाद गुरुवार को एनबीएमसीएच में समीक्षा बैठक की गई। उक्त बैठक में एनबीएमसीएच के प्राचार्य प्रो इंद्रजीत साह व एनबीएमसीएच के अधीक्षक डा संजय मलिक, दार्जिलिंग जिले के डिप्टी सीएमओएच थ्री, एनबीएमसीएच के डीन संदीप सेनगुप्ता, एनबीएमसीएच गाइनोकालाजी विभाग के चिकित्सक समेत अन्य चिकित्सक व अधिकारी मौजूद थे। एनबीएमसीएच के आधिकारिक सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार पिछले कुछ महीनों में हर महीने आठ से नौ शिशु व मां की मौतें हो रही हैं। इस महीने एक अगस्त से लेकर 10 अगस्त के बीच चार प्रसूता की मौत हो चुकी है। जबकि बीते महीने जुलाई में इसी अवधि के दौरान यह आंकड़ा तीन था। नवजात शिशुओं की हुई मौत के मामले भी चिंताजनक हैं। हालांकि जिन नवजात की मृत्यु हुई है, उनमें से अधिकाश जन्म के समय औसतन लगभग 500-700 ग्राम के थे।

    बताया गया कि एनबीएमसीएच में हर वर्ष लगभग नौ हजार महिलाएं प्रसव पीड़ा को लेकर आती हैं, जिनमें 60 प्रसूताओं की मौत होने के मामले सामने आते हैं।

    बैठक के बाद संवाददाताओं से बातें करते हुए एनबीएमसीएच के डीन व एनबीएमसीएच गाइनाकालाजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर संदीप सेनगुप्ता ने कहा कि मेरा मानना है कि स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा के बारे में जागरूकता किशोरावस्था में ही शुरू कर देनी चाहिए। थैलेसीमिया, एनीमिया जैसी बीमारियों का जल्द पता लगाने के लिए नियमित अंतराल पर स्वास्थ्य जाच कराते रहना चाहिए। किशोरावस्था में गर्भधारण नहीं करने और स्कूल ड्रापआउट रोकने के लिए अधिक जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं के के उपचार और प्रसव के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाचा है।