गुरु शंकराचार्य जयंती पर विशेष: कैसे जानें आदि शंकराचार्य को, माँ ने कैसे दी सन्यास की अनुमति?
आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के संस्थापक महान हिन्दू दार्शनिक और धर्मगुरु थे। वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जा रही है।
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के संस्थापक, महान हिन्दू दार्शनिक और धर्मगुरु थे। वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर सिलीगुड़ी केशव गौरिया मठ के भक्ति वेदांत सज्जन महाराज ने शंकराचार्य के बारे में विस्तार से कई बातों को बताया।
ऐसे जाने आदि शंकराचार्य को : सज्जन कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु नामपुद्रि और माता विशिष्टा देवी थीं। विशिष्टा देवी को विवाह के उपरांत बहुत समय तक संतान नहीं हुई तब उन्होंने शिव जी की आराधना की। उनकी कठोर उपासना से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके घर पुत्र के रूप में जन्म लिया।इसलिए बालक का नाम शंकर रखा गया। लेकिन शंकर के जन्म के कुछ समय बाद उनके पिता का निधन हो गया और इन हालातों में मां ने ही पालन-पोषण किया।
माँ ने कैसे दी सन्यास की अनुमति :
शंकाराचार्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सात साल की उम्र में सन्यास ग्रहण करने की जिद की। लेकिन उनकी मां नहीं मान रहीं थीं। एक दिन जंगल में किसी मगरमच्छ ने उनका पैर अपने मुंह में ले लिया तभी शंकराचार्य ने मां से कहा कि अगर आप मुझे संन्यास लेने की अनुमति नहीं देगी ये मुझे खा जाएगा। इस बात से शंकाराचार्य की मां बहुत डर गयीं और उन्होंने संन्यास ग्रहण करने की अनुमति दे दी। लेकिन मां ने शंकाराचार्य से वचन लिया कि वह उनका अंतिम संस्कार जरूर करेंगे जिसे आदि गुरु ने पूरा भी किया था।
शंकराचार्य जयंती पर होते हैं विभिन्न आयोजन: आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन पर्व पर देश भर में मौजूद शंकराचार्य मठों में विभिन्न प्रकार के पूजन हवन का आयोजन किया जाता है। लॉक डाउन के कारण साथ ही प्रवचनों तथा सतसंगों का भी आयोजन नही हो पा रहा है। सनातन धर्म के महत्व से सम्बन्धित चर्चा ऑन लाइन की जा रही है। इसके अलावा शंकराचार्य जयंती पर विशेष विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि किसी मुश्किल परिस्थिति में अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति परेशानियां से मुक्त होता है।
अद्भुत था शंकराचार्य का जीवनकाल : शंकराचार्य का जीवन काल बहुत कम था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही शरीर त्याग दिया था। लेकिन अपने जीवन में उन्होंने न केवल ज्ञान प्राप्त किया बल्कि अद्वैत वेदांत जैसे महान सिद्धांत का प्रतिपादन भी किया। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। देश के विभिन्न स्थानों पर जाकर उन्होंने हिन्दू धर्म तथा दर्शन से सम्बन्धित विषयों पर भी गहन चर्चा की। उन्होंने देश भर में यात्रा कर विभिन्न हिस्सों में चार मठों की भी स्थापना की थी।
श्रृंगेरी मठ- श्रृंगेरी शारदा पीठ शंकाराचार्य द्वारा स्थापित विशेष मठ है। यह भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। श्रृंगेरी मठ को कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक माना जाता है।
गोवर्धन मठ- गोवर्धन मठ उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से भी है।
शारदा मठ- द्वारका मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। इसे शारदा पीठ भी कहा जाता है।
ज्योतिर्मठ- ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में स्थित है। ये चार मठ देश के विभिन्न हिस्से में हैं तथा हिंदू धर्म में इनका बहुत महत्व है। हिन्दू धर्म को मानने वाले अनेक भक्त अपने जीवन में इन मठ के दर्शन अवश्य करना चाहते हैं। इसी परंपरा को विभिन्न मठों के माध्यम से हिंदू धर्म्म्म की रक्षा का प्रयास जारी है।
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