Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नक्सल आंदोलन के जनक चारू मजूमदार के बेटे अभिजीत बोले, नक्सलवादी कहलाने में गर्व होता है

    By Digpal SinghEdited By:
    Updated: Wed, 30 Jan 2019 09:22 AM (IST)

    नक्सल आंदोलन के जनक चारू मजूमदार के बेटे अभिजीत मजूमदार सिलीगुड़ी कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। अभिजीत का कहना है कि उन्हें खुद को नक्सली कहने में गर्व महसूस होता है।

    Hero Image
    नक्सल आंदोलन के जनक चारू मजूमदार के बेटे अभिजीत बोले, नक्सलवादी कहलाने में गर्व होता है

    सिलीगुड़ी [राजेश पटेल]। नक्सल आंदोलन के जनक चारू मजूमदार की पत्नी लीला ने जिस तरह से पति के आंदोलन को पीछे से समर्थन देने के बावजूद अपने बच्चों को इससे अलग रखकर पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया, उनकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। संपत्ति तो कुछ बची नहीं थी, सो उस समय एलआईसी एजेंट बनकर उसके कमीशन के रूप में मिली राशि से गृहस्थी को संभाला। एकमात्र बेटे अभिजीत मजूमदार सिलीगुड़ी कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। एक बेटी डॉक्टर है, दूसरी शिक्षक।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अभिजीत मजूमदार सीपीआई-एमएल के नेता भी हैं, लेकिन उनसे विशुद्ध पारिवारिक चर्चा हुई। यह अलग बात है कि चारू मजूमदार के पुत्र होने के कारण नक्सल आंदोलन और राजनीति ने जागरण के साथ अभिजीत की इस बातचीत में भी घुसपैठ कर ही लिया। अभिजीत ने कहा कि उन्हें गर्व है कि चारू मजूमदार जैसे गरीबों के मसीहा के पुत्र हैं। एक बात का मलाल ताजिंदगी रहेगा कि पिता जी का पार्थिव शरीर परिवार को नहीं सौंपा गया।

    अभिजीत ने उन दिनों के बारे में बताया, जब पुलिस के निशाने पर उनका घर हमेशा रहता था। पिता जी भूमिगत ही रहते थे। उनका सानिध्य कम ही मिला, लेकिन जो मिला, वे क्षण बेशकीमती थे। छोटी उम्र में ही बड़ी-बड़ी बातों को सीखने का मौका मिला। आंदोलन, मुकदमा, पुलिस प्रताड़ना। घर का सबकुछ बिक गया। खाने तक के लाले पड़ गए थे। फिर मां ने मेहनत कर हम लोगों को पढ़ाया-लिखाया।

    अभिजीत इस समय करीब 58 वर्ष के हैं, लेकिन अभी तक शादी नहीं की है। इसका कारण पूछने पर बताया कि गरीबों, मेहनतकश किसानों और मजदूरों की समस्याओं के बीच अपनी शादी के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला। उन्होंने आज के नक्सल आंदोलन के बारे में कहा कि आज हथियार आदमी को चलाने लगा है। जबकि होना यह चाहिए कि राजनीति हथियार चलाए। शायद इसीलिए लोग इसे भटका-भटका कहने लगे हैं।

    अंग्रेजों के समय में क्रांतिकारियों ने जो हथियारबंद लड़ाई लड़ी, उसके पीछे मकसद आजादी का था। चारू मजूमदार ने जो आंदोलन शुरू किया, उसका भी उद्देश्य गरीबों, मेहनतकश किसानों और मजदूरों को उनका अधिकार दिलाना था। सीपीआई-एमएल का यही उद्देश्य आज भी है, लेकिन आज जो लोग हथियार लेकर अपने आंदोलन को नक्सलवादी बता रहे हैं, वे आंदोलन से भटके लगते हैं। उन्होंने बताया कि मां लीला मजूमदार ने खुद को पिताजी के आंदोलन से अलग नहीं समझा। सारी मुसीबतों को सहते हुए पीछे से समर्थन करती रहीं। आज के नक्सलवादी आंदोलन का मतलब सिर्फ माओवादी नहीं, सीपीआई-एमएल जैसी पार्टियां भी अपने आप को नक्सलवादी कहने में गर्व महसूस करती हैं। इसमें मैं भी शामिल हूं। मेरे विचार से जनविरोधी सत्ता से अंतिम लड़ाई तो हथियार से ही लड़नी है, पर अभी हमें अपनी क्रांतिकारी नक्सलवादी विचारधारा को जनता में फैलाने के लिए और कोशिश करने की जरूरत है।