सोने से भी महंगी है दार्जिलिंग चाय की चुस्की
-ब्रिटेन की महारानी हैं सबसे पहली ग्राहक -बचे चाय की बिक्री अमरीका और जापान को -अपने दे

-ब्रिटेन की महारानी हैं सबसे पहली ग्राहक
-बचे चाय की बिक्री अमरीका और जापान को
-अपने देश के लोग नहीं चख पाते हैं स्वाद
कुछ खास बातें
1.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पैकेट ब्रिटेन की महारानी को गिफ्ट भी की थी
2.चुनाव के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रूके थे मकईबाड़ी चाय बागान में
3.उत्तर बंगाल में चाय का सीजन मई से अक्टूबर के बीच होता है 01
लाख 12 हजार रुपये किग्रा से ज्यादा दाम
18
सौ 59 में हुई थी चाय बागान की स्थापना
50
से 70 किलो ही उत्पादन हर साल
विश्व चाय दिवस पर विशेष
अशोक झा, सिलीगुड़ी
21 मई 2021 को कोविड-19 महामारी के बीच विश्व अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस मना रहा है। दुनियां में पानी के बाद अगर सबसे ज्यादा पाीने वाला पेय पदार्थ है तो वह है चाय। चाय दिवस हो और दाíजलिंग चाय की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। वह इसलिए कि यहा के एक चाय बागान की एक किलोग्राम चाय की कीमत 10 ग्राम सोने के के दाम के डबल से भी ज्यादा है। यानी इस चाय की चुस्की काफी महंगी है। आप हैरान हो गए लेकिन यह सच है। हम बात कर रहे हैं सिलीगुड़ी से 75 किलोमीटर दूर दाíजलिंग के मकईबारी टी एस्टेट की। इस चाय बागान में तैयार सिल्वर टिप्स इंपीरियल चाय की कीमत प्रति किलो 1850 डॉलर यानी 1.12 लाख रुपए है। हांलाकि यह भी सही है कि यह चाय भारतीयों को नसीब नहीं होती।
यह चाय है। ब्रिटेन का शाही परिवार इसका पहला ग्राहक है। उनकी खरीद से बचे हुए चाय को जापान और अमेरिका के अरबपतियों के हाथों एडवास में बेचा जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटिश दौरे पर वहां की महारानी एलिजाबेथ को चाय की एक पैकेट गिफ्ट की थी। चाय की खुशबू के कारण ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी एक रात इसी चाय बागान में रहकर आनंद लिया।
पत्ती तोड़ने की क्या है प्रक्रिया
कहते हैं कि दाíजलिंग में सबसे पुरानी चाय फैक्ट्रियों में मकईबारी का नाम शुमार है। यह चाय बागान 1859 में
जेसी बनर्जी के द्वारा तैयार किया गया था। आज भी उनके परिवार यानी राजा बनर्जी की यह पैतृक संपत्ति है। यहा यह दुर्लभ किस्म की चाय यानी सिल्वर टिप्स इंपीरियल के लिए पत्ती तोड़ने से लेकर बनाने की प्रक्रिया अलग किस्म की है। यहा 1 साल में जितनी भी पूíणमा की रात होती है उसी की रोशनी में इस चाय को तैयार करने के लिए पत्तियों को तोड़ा जाता है। इसके लिए अलग एक टीम बनाई गई है जो गीत-संगीत के साथ वैदिक मंत्रों के साथ पत्तियों को तोड़ते हैं। चाय बनाने के लिए रात का ही इस्तेमाल होता है। चाय की पत्ती पर पत्ते तोड़ने से बनाने तक सूर्य की रोशनी नहीं पड़ने दी जाती। साल में मात्र 50 से 70 किलो चाय ही तैयार होता है। 1841 में ब्रिटिश ने शुरू की थी दाíजलिंग में चाय की खेती
दाíजलिंग चाय संघ के सचिव कौशिक बसु का कहना है कि दाíजलिंग चाय का इतिहास काफी पुराना है। हिलकार्ट रोड निर्माण के बाद 1848 में ब्रिटिश डॉक्टर क्यंप्लनेल ने चाय बागान की शुरुआत की। दाíजलिंग में 87 चाय बागान हैं। यह 19000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहा औसतन प्रतिवर्ष 90 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। उत्तर बंगाल की बात करें तो 375 बड़े चाय बागान और 1000 से अधिक छोटे चाय बागान हैं। यहा 200 प्रति किलो से शुरू होकर चाय की कीमत लाख रुपए किलोग्राम से भी अधिक है। चाय का सीजन मई से अक्टूबर के बीच होता है।
क्या है इस वर्ष का थीम
विश्व चाय दिवस में इस वर्ष थीम दिया गया है चाय और निष्पक्ष व्यापार। इस थीम के माध्यम चाय के व्यापार को गरीब घरों तक पहुंचाने की बात कही गई है। जिससे वह सरलता से इसे खरीद सके। कहते हैं कि विश्व चाय दिवस की शुरुआत के लिए 2015 में भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन से आग्रह किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसकी स्वीकृति 21 दिसंबर 2019 को दी। उसके बाद यह दूसरा वर्ष है जब देश विश्व चाय दिवस मना रहा है।
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