दाल बाटी चूरमा के साथ राजस्थानी तड़का
-सबसे मशहूर है यहां की मसाला और केसरिया चाय -हर दिन सुबह से ही लग जाती है ग्राहकों क

-सबसे मशहूर है यहां की मसाला और केसरिया चाय
-हर दिन सुबह से ही लग जाती है ग्राहकों की भीड़ 10
रुपये से शुरू होती है केसरिया चाय की कीमत 25
रुपये से शुरू होती है कचौरी की कीमत स्नेहलता शर्मा, सिलीगुड़ी : राजस्थानी कचौड़ी, दाल बाटी चूरमा सहित अन्य कई स्वादिष्ट पकवानों का नाम लेते ही मुंह में पानी भर आता है। ये खाने में बेहद स्वादिष्ट और लाजवाब होते हैं। किंतु जिंदगी की इस भागदौड में इन व्यंजनों का स्वाद चखने के लिए राजस्थान जाना संभव नहीं है। समय का अभाव और जेब शायद ही इसकी इजाजत दे। ऐसे में घबराएं नहीं बल्कि शहर की धरा पर ही राजस्थान प्रांत के एक से एक स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लिया जा सकता है। इसके लिए एफ रोड स्थित राजस्थानी तड़का जाना पड़ेगा। यहां पर एक से एक राजस्थानी स्वादिष्ट पकवान उपलब्ध हैं। सबसे मशहूर है यहां की मसाला और केसरिया चाय। जिनकी कीमत दस और बीस रुपये से शुरू होती है। इसके अलावा कचौड़ी की भी एक से एक वैरायटी उपलब्ध है। प्याज कचौड़ी, मसाला कचौड़ी, मावा कचौड़ी, कढ़ी कचौड़ी आदि का स्वाद बखूबी लिया जा सकता है। जिनकी कीमत 25-30 रुपये से शुरू होती है। जबकि दाल बाटी चूरमा के कहने ही क्या। यहां की बनी जलेबी को भी खूब पसंद किया जाता है। इसके अलावा प्रत्येक शुक्रवार को राजस्थानी थाली उपलब्ध होती है। जिसमें दाल-बाटी, गट्टे की सब्जी, लहसून की चटनी सहित अन्य कई स्वादिष्ट वैरायटी परोसी जाती है। जिन्हें शहरवासियों द्वारा खूब पसंद किया जाता है। खासकर महिला ग्राहकों की ये पहली पसंद है। यहां हर दिन सुबह से ही भीड़ लगने लगती है।
कैसे हुई इस सफर की शुरूआत
राजस्थानी तड़का में आपका स्वागत मधुर मुस्कान के साथ अभिषेक पारिक के द्वारा किया जाता है। वही राजस्थानी तड़का के मालिक हैं। इस बारे में अभिषेक ने बताया कि दिसंबर 2019 में इसका शुभारंभ किया था। शहर में राजस्थानी तड़का खोलने के बारे में बताया कि बी काम करने के बाद किसी काम की तलाश थी। सी ए करने के बारे में सोच रहा था। एम काम प्रथम प्रथम वर्ष पास कर लिया था। किंतु इसी बीच पिताजी की तबीयत खराब हो गई। उनकी किडनी खराब हो गई। बार-बार डायलिसिस करवानी पड़ती थी। ऐसे में बहुत पैसा खर्च हो गया। घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई। वर्ष 2017 में पिताजी की मृत्यु हो गई थी। सारी जिम्मेवारियां मेरे उपर आ गई। पिताजी की एक मिठाई की दुकान थी बस उनके साथ रहकर जो कुछ जाना-समझा वो ही जिंदगी का सबब बन गया। वो दुकान भी हमारे पास नहीं रही। ऐसे में दूसरों के यहां जाकर कैटरिग करने लगा। जहां भी गया बहुत ही अच्छा रिस्पांस मिला। चाय की लोकप्रियता से लगा अंदाज
अभिषेक ने बताया कि एक बार पांच-छह व्यक्तियों ने मेरे द्वारा बनाई गई चालीस कप केसरिया चाय पी ली तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे यही कार्य शुरू कर देना चाहिए। मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैंने दुकान खोलने का निर्णय लिया। जब दुकान खोली तो पहले ही दिन बहुत बढि़या रिस्पांस मिला।

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