पांचों उंगलियां घी में, सिर कड़ाही में!
चुनावी चकल्लस चुनाव की माया अपरंपार होती है। वह चाहे छोटा-मोटा निकाय चुनाव ही क्यो
चुनावी चकल्लस चुनाव की माया अपरंपार होती है। वह चाहे छोटा-मोटा निकाय चुनाव ही क्यों न हो। इसके आते ही कइयों की बांछें खिल जाती हैं। अंधे को क्या चाहिए, दो आंख। ऐसा ही कुछ हाल सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव का भी है। क्या नेता, क्या नेता जी के चेले-चपाटे बल्कि हर कोई, यहां तक कि कलुआ, मंगरा, बुधना सब, हर कोई मतलब हर कोई मस्त है। कहीं धन-दर्शन है, तो कहीं रस भरी महफिल, तो कहीं मुर्गा-भात और ये सब नहीं तो पूड़ी-सब्जी तो है ही। सुबह, दोपहर, शाम, रात कभी भी गुल, गुल-ए-गुलजार हो जा रहा है। उसको जिता देंगे, उसको हरा देंगे, उसको मार देंगे, उसको फाड़ देंगे, बड़ी-बड़ी डींगों के साथ खूब धमाचौकड़ी हो रही है। कहिएगा, कोरोना..? हाहा, हाहा, हाहा, हा.., कोरोना गया तेल लेने।
इधर, चुनाव आयोग को कोरोना की इतनी चिंता सताई कि, इस चुनाव में रोड शो, पदयात्रा, साइकिल, बाइक, या किसी भी गाड़ी की रैली, सब कुछ पर रोक लगा दी। यहां तक कि, नेता जी लोगन जो घर-घर जाएंगे और लोगों को बहलाएंगे, फुसलाएंगे, उसमें भी नेता जी, बोले तो उम्मीदवार समेत कुल पांच लोगों को ही जाने की अनुमति दी। मगर, सब हो रहा है। खुल कर हो रहा है। चाहे कोई देखे न देखे। देखने वाले देखें न देखें। साहिबान रजाई में आराम फरमाते रहें। कद्रदान कद्र लूटे लिए फिर रहे हैं। आखिर हो भी क्यों न, चुनाव की माया अपरंपार होती है। एकदम, पांचों उंगलियां घी में, सिर कड़ाही में!
-अंजान अकेला ---------------
चुनावी चकल्लस चुनाव की माया अपरंपार होती है। वह चाहे छोटा-मोटा निकाय चुनाव ही क्यों न हो। इसके आते ही कइयों की बांछें खिल जाती हैं। अंधे को क्या चाहिए, दो आंख। ऐसा ही कुछ हाल सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव का भी है। क्या नेता, क्या नेता जी के चेले-चपाटे बल्कि हर कोई, यहां तक कि कलुआ, मंगरा, बुधना सब, हर कोई मतलब हर कोई मस्त है। कहीं धन-दर्शन है, तो कहीं रस भरी महफिल, तो कहीं मुर्गा-भात और ये सब नहीं तो पूड़ी-सब्जी तो है ही। सुबह, दोपहर, शाम, रात कभी भी गुल, गुल-ए-गुलजार हो जा रहा है। उसको जिता देंगे, उसको हरा देंगे, उसको मार देंगे, उसको फाड़ देंगे, बड़ी-बड़ी डींगों के साथ खूब धमाचौकड़ी हो रही है। कहिएगा, कोरोना..? हाहा, हाहा, हाहा, हा.., कोरोना गया तेल लेने।
इधर, चुनाव आयोग को कोरोना की इतनी चिंता सताई कि, इस चुनाव में रोड शो, पदयात्रा, साइकिल, बाइक, या किसी भी गाड़ी की रैली, सब कुछ पर रोक लगा दी। यहां तक कि, नेता जी लोगन जो घर-घर जाएंगे और लोगों को बहलाएंगे, फुसलाएंगे, उसमें भी नेता जी, बोले तो उम्मीदवार समेत कुल पांच लोगों को ही जाने की अनुमति दी। मगर, सब हो रहा है। खुल कर हो रहा है। चाहे कोई देखे न देखे। देखने वाले देखें न देखें। साहिबान रजाई में आराम फरमाते रहें। कद्रदान कद्र लूटे लिए फिर रहे हैं। आखिर हो भी क्यों न, चुनाव की माया अपरंपार होती है। एकदम, पांचों उंगलियां घी में, सिर कड़ाही में!
-अंजान अकेला
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