गोरखालैंड की मांग को ले बिमल गुरुंग फिर हुए सक्रिय, दिल्ली से साधेंगे पहाड की राजनीति
पहाड की राजनीति में काफी उठा-पटक का दौर चल रहा है। एक तरफ दार्जिलिंग नगरपालिका अजय एडवर्ड की हाथ से निकलकर अनित थापा के पाले में जाते हुए दिख रहा है तो वहीं लगे हाथ एक बार फिर से पहाड़ के दिग्गज नेता बिमल गुरुंग सक्रिय हुए हैं।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। पहाड की राजनीति में काफी उठा-पटक का दौर चल रहा है। एक तरफ दार्जिलिंग नगरपालिका अजय एडवर्ड की हाथ से निकलकर अनित थापा के पाले में जाते हुए दिख रहा है तो वहीं लगे हाथ एक बार फिर से पहाड़ के दिग्गज नेता बिमल गुरुंग सक्रिय होते हुए नजर आ रहे हैं। दरअसल पहाड की राजनीति हमेशा से चौकाती रही है। कब किसकी सत्ता चली जाए और कौन सत्ता में लौट आए यह कहना मुश्किल होता है।
एक साल के अंदर अजय की हाम्रो में टूट, बिमल की नई रणनीति
अजय एडवर्ड की हाम्रो पार्टी ने दार्जिलिंग नगरपालिका चुनाव में जिस तरह से क्लीीनस्विप जीत हासिल की थी, वह अपने आप में रिकार्ड है। चुनाव से महज तीन महीने पहले गठित हाम्रो पार्टी ने नगरपालिका पर कब्जा कर लिया। हालांकि अब एक साल के भीतर ही पार्टी में टूट शुरु हो गई। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गाेजामुमो) के दिग्गज नेता सुभाष घीसिंग का दौर खत्म होने के बाद पहाड पर विमल गुरुंग का उदय हुआ था। देखते ही देखते विमल गुरुंग पहाड की राजनीति में छा गए थे। उनके एक इशारे पर हजारों की भीड जमा हो जाती थी, लेकिन 2017 के उनके आंदोलन के बाद पहाड पर उनकी पकड कमजोर होती गई। वह करीब 28 महीने तक पहाड से दूर रहे। इसके बाद 2021 में उनकी पहाड पर वापसी तो हुई, लेकिन यह उनके लिए यह ज्यादा फलदायी नहीं रही। इस बीच विनय तामांग के साथ उनके मतभेद उभर के सामने आ गए तथा गोजमुमो में टूट हो गई। दो खेमे बनकर तैयार हो गए। इस क्रम में पहाड की राजनीति में भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक पार्टी का उदय हुआ और पहाड में इस पार्टी का राजनीतिक दबदबा कायम हो गया। जीटीए पर इसका कब्जा बरकरार है। ऐसी स्थिति में विमल गुरुंग एक बार फिर से अपनी शक्ति बढाने के लिए गोरखालैंड की मांग के साथ दिल्ली में एक संगोष्ठी करने जा रहे हैं।
गोरखा समाज में पैठ बढ़ा रहे बिमल
मिली जानकारी के अनुसार 10 व 11 दिसंबर को संगोष्ठी होनी है। वर्तमान समय में विमल गुरुंग मसूरी में है। वह लगातार गोरखा समाज के लोगाें से मिल रहे है। उनसे समर्थन मांग रहे हैं। विमल गुरुंग का दावा है कि उन्हें देश के 32 राज्यों में रहने वाले गोरखा अपना समर्थन रहे हैं। उनके समर्थन के कारण ही वह गोरखालैंड की आवाज बुलंद करने की इच्छा रख रहे हैं।
100 साल पुरानी है गोरखालैंड की मांग
बताते चले कि गोरखालैंड की मांग 100 साल पुरानी है। आइवें दशक में इस मांग को लेकर सशस्त्र आंदोलन हुआ था। इसके बाद ही समझौते के तहत डीजीएचसी मिली थी। सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में करीब 20 साल डीजीएचसी का संचालन हुआ। लेकिन एक समय उन्हेें सत्ता से हट जाना पडा। इसके बाद ही गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का राजनीति में एंट्री हुई। विमल गुरुंग पार्टी का चेहरा बने। पहाड के लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। 2011 में समझौते के तहत जीटीए हासिल हुआ। वर्तमान में अनित थापा के नेतृत्व में जीटीए के जरिए ही पहाड पर प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन हो रहा है व विकास के कार्य किए जा रहे हैं।