दार्जिलिंग के गिद्धा पहाड़ में छिपा है नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के एक दिलचस्प इतिहास, यहां भी मनी 125वीं जयंती
नेताजी सुभाष चंद्र बोसकी 125वीं जयंती को यादगार बनाने के लिए देश व राज्य के साथ पहाड़ो की रानी दार्जिलिंग के कार्सियांग स्थित गिद्धा पहाड़ पर भी जयंती कार्यक्रम आयोजित किया गया। गिद्धा पहाड़ से नेताजी के जीवन का एक बहुत की खास अध्याय जुड़ा हुआ है। जानिए दिलचस्प किस्सा

सिलीगुड़ी, मोहन झा। आजादी के 75वें वर्ष मे इस बार का गणतंत्र दिवस देशवासियों के लिए काफी अहम है। स्वतंत्रता के महानायक नेताजी के 125वीं जन्म जयंती की वजह से भी यह वर्ष बहुत खास हो जाता है। इसी खास गणतन्त्र दिवस की परेड में नेताजी की झांकी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच ठन गई है। बहरहाल, नेताजी की 125वीं जन्म जयंती को यादगार बनाने के लिए देश व राज्य के साथ पहाड़ो की रानी दार्जिलिंग के कार्सियांग स्थित गिद्धा पहाड़ पर भी जयंती कार्यक्रम आयोजित किया गया। गिद्धा पहाड़ से नेताजी के जीवन का एक बहुत की खास अध्याय जुड़ा हुआ है। लेकिन यह अध्याय इतिहास के पन्नो मे एक अनकही कहानी की तरह छिपी हुई है।
शरतचंद्र के बाद नेताजी भी नजरबंद हुए थे यहां
जानकारी के मुताबिक वर्ष 1922 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस ने कर्सियांग के गिद्धा पहाड़ पर करीब दो एकड़ में फैला एक बंग्लो राउली लास्केल्स वार्ड नामक व्यक्ति से खरीदा था। आजादी की लड़ाई में शरत चंद्र बोस का योगदान भी कम नहीं है। शरत चंद्र बोस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भांति ही आजादी की लड़ाई में कर्सियांग के गिद्धा पहाड़ स्थित इस मकान का अपना ही महत्व है। वर्ष 1933 और 35 के बीच शरत चंद्र बोस को भी अंग्रेजी हुकूमत ने दो वर्षो के लिए इसी मकान में नजरबंद किया था। इसके बाद वर्ष 1936 के जून महीने से नेताजी सुभाष चंद्र भी यहीं नजरबंद रहे। उस दौरान अंग्रेजी हुकूमत से मुक़ाबले के लिए नेताजी अपनी सेना आजाद हिंद फौज बनाने में जुटे हुए थे। इनकी नीति और योजनाओं को विफल करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने इन्हें कई बार जेल में बंद किया तो कभी नजरबंद रखा। इसी क्रम में वर्ष 1936 में भी अंग्रेज हुकूमत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कोलकाता स्थित उनके घर में ही नजरबंद किया था।
बेटी अनीता बोस की किताब में मिलता है जिक्र
यह जानना दिलचस्प है कि अंग्रेजी फौज की निगरानी में घर के भीतर कैद होने के बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लड़ाई जारी रही। आजादी की लड़ाई से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पूरी तरह से अलग-थलग करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कोलकाता से दार्जिलिंग जिले के कर्सियांग स्थित गिद्धा पहाड़ पर उनके दूसरे मकान में नजर बंद कराया। यहां भी चौबीसों घंटे अंग्रेजी फौज की निगरानी में रहते हुए भी नेताजी ने अपने हमराज कालू सिंह लामा की सहायता से आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी निभाते रहे। वर्ष 1936 के जून से दिसंबर महीने तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस गिद्धा पहाड़ स्थित मकान में नजरबंद रहे थे। नेताजी के इन सात महीनों की गतिविधियों का जिक्र उनकी बेटी अनीता बोस द्वारा लिखी उनकी किताबों मे मिलता है।
कालू सिंह लामा रहे नेताजी के हमराज
शरत चंद्र बोस ने 1922 में जब यह बंगला खरीदा तो कालू सिंह लामा को सपरिवार देखरेख के लिए रखा। आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बोस परिवार की सेवा करने का अवसर पाकर प्रफुल्लित कालू सिंह लामा धीरे-धीरे नेताजी सुभाष चंद्र के हमराज बन गए। गिद्धापहाड़ से कोलकाता तक सूचना पहुंचाना और कोलकाता से सूचना लेकर आना कालू सिंह लामा ही किया करते थे। नाश्ते मे परोसे गए मक्खन-ब्रेड के बीच कागज के टुकड़े में लिखी सूचना छिपाकर रख देते। प्लेट वापस लाने के बाद रोजाना कालू सिंह लामा नेताजी द्वारा छोड़े ब्रेड को चेक किया करते थे। ब्रेड के बीच कागज के टुकड़े को एक विशेष जूते में छिपाकर नेताजी के कोलकाता वाले निवास पर पहुंचते और वहां का संदेश भी उसी तरह जूते मे छिपाकर वापस कार्सियांग लाते। इस क्रम में वर्ष 1936 के नवंबर महीने में कोलकाता से लौटते समय ब्रिटिश पुलिस ने सियालदाह स्टेशन पर धर लिया था। लेकिन अपनी सूझ-बूझ से कालू सिंह लामा ने सात महीनों में एक बार भी सूचना अंग्रेज पुलिस के हाथ नहीं लगने दी थी। कालू सिंह लामा की बेटी मोती माया के साथ नेताजी का बाप-बेटी जैसा रिश्ता था। मोती-माया के लिए नेताजी काका बाबू थे।
नेताजी के यादों को यहां संजो कर रखा गया
नजरबंदी के दौरान गिद्धा पहाड़ स्थित इस मकान में बिताए सात महीनों की कई स्मृतियों जुड़ी हैं। नेताजी के इन यादों के झरोखों को गिध्धा पहाड़ के इनके मकान को बनाए म्यूजियम मे संजो कर रखा गया है। 1938 में हरिपुर कांग्रेस में दिए भाषण को नेताजी ने 1936 में नजरबंद रहने के दौरान गिद्धा पहाड़ स्थित इसी मकान में तैयार किया था। करीब दो वर्ष बाद की स्थिति का अंदाजा लगाकर भाषण तैयार करने से ही नेताजी की दूरदर्शिता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा यहीं से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी की एक महिला मित्र एमिली शेंकल को कई पत्र लिखा था। जवाब में एमिली ने भी कई पत्र नेताजी को भेजा था। उस पत्राचार के कई अंश यहां पाए गए। बल्कि इसी दौरान वंदे मातरम गीत पर विवाद भी उपजा था। इस विवाद को सुलझाने के लिए नेताजी ने रवींद्र नाथ ठाकुर (टैगोर) और जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। रवींद्र नाथ ठाकुर और जवाहर लाल नेहरु ने भी नेताजी को पत्र का जवाब दिया था। उन पत्रों को भी इस म्यूजियम में संजो कर रखा गया है। गिद्धा पहाड़, कर्सियांग व दार्जिलिंग से नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस व पूरे बोस परिवार का एक खास रिश्ता रहा है।
गोरखाओं से रहे अच्छे संबंध
नेताजी का गोरखाओं के साथ भी काफी अच्छे संबंध रहे हैं। उन संबंधों के अवशेष आज भी म्यूजियम में संभाल कर रखा गया है। वर्ष 1943 में ऑल इंडिया गोर्खा लीग की स्थापना करने वाले डंबर सिंह गुरुंग, 1946 में पश्चिम बंगाल विधान सभा के चयनित सदस्य तथा स्वतंत्रता सेनानी रतन लाल ब्राम्हण, देव प्रकाश राई, दल बहादुर गिरी, दुर्गा मल्ला, जंगबीर सापकोटा, सरयू प्रसाद पोद्दार, प्रतिमन लामा, गंगा क्षिरिग, सावित्री देवी, नरबीर लामा, भीम बहादुर खड़का, लाल बहादुर बस्नेत, पुतली माया देवी पोद्दार आदि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ नेताजी के अच्छे संबंध रहे। बल्कि इनमें से भीम बहादुर खड़का और लाल बहादुर बस्नेत नेताजी की सेना आजाद हिंद फौज के सदस्य रहे। लाल बहादुर बस्नेत अंग्रेज सैनिक थे। जिन्हें जापानी सेना ने सिंगापुर युद्ध में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। जापान के जेल में लाल बहादुर बस्नेत की मुलाकात नेताजी से हुई और इन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। देश को आजाद कराने की इनकी ललक और कार्य कुशलता देखकर नेताजी ने इन्हें नेहरु-गुलेरिया रेजीमेंट में सिक्रेट सर्विस पर तैनात किया। वहीं सावित्री देवी 1936 में कर्सियांग नगरपालिका की पहली महिला कमिश्नर बनीं थी।
तब गिद्धा पहाड़ी का राज सामने आया
आजादी के बाद उनको लेकर खोज तेज हो गई। उसी दौरान कोलकाता स्थित उनके घर से सूचना वाली कुछ पर्ची के साथ रवींद्र नाथ टैगोर, जवाहर लाल नेहरु आदि को लिखी कई चिट्ठियां बरामद हुई। जिसमें से कई चिट्ठी व सूचना वर्ष 1936 के जून से लेकर दिसंबर के बीच की पाई गई। तब नेताजी के कर्सियांग गिद्धा पहाड़ अध्याय की कहानी सामने आई। तब प्रांत की तत्कालीन वामो सरकार के प्रतिनिधियों ने गिद्धा पहाड़ स्थित नेताजी के मकान परिवार की अनुमति से कब्जे में लिया और खंडहर में तब्दील हुए इस मकान का पुनर्निर्माण करा एक म्यूजियम का रुप दिया। इस म्यूजियम को नेताजी इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज को सौंप दिया गया। 23 अप्रैल वर्ष 2000 को वामो सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रोफेसर सत्य साधन चक्रवर्ती ने इस म्यूजियम का अनावरण किया। नेताजी का गिद्धा पहाड़ अध्याय सामने आने के बाद वर्ष 2005 में तत्कालीन माकपा सरकार ने कालू सिंह लामा की बेटी मोती माया लेप्चा को सम्मानित किया। वर्ष 2017 में मोती माया लेप्चा की भी मौत हो गई। फिलहाल मोती माया लेप्चा के बेटे और बहु गिद्धा पहाड़ पर रह रहे हैं।
मनी 125वीं जयंती
म्यूजियम के प्रभारी गणेश कुमार प्रधान ने बताया 1936 में यहां नजरबंद रहने के दौरान भी वे अपना जीवन एक सैनिक की तरह की जीते रहे। इतनी बंदिशों के बीच भी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई जारी रखना नेताजी के ही बस की बात थी। नेताजी के साथ आजादी की लड़ाई में कालू सिंह लामा व उनके परिवार की भूमिका भी काफी अहम और यादगार है। कर्सियांग गिद्धा पहाड़ अध्याय को संजोए रखने के उद्देश्य से ही बोस परिवार के इस मकान को म्यूजियम में सरकार ने तब्दील किया है। नेताजी के 125वीं जन्म जयंती को यादगार बनाया गया। कोरोना महामारी की वजह से सरकार द्वारा जारी विधि-निषेध को मानकर ही महानायक की जयंती मनाई गई।
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