'गोरखा अस्मिता के कवि थे अगम सिंह गिरी'
संवाद सूत्र, मिरिक : बाल्यकाल से ही जातीय कवि अगम सिंह गिरी का जीवन-वृत्त सुनने को मिलता रहा है। उनक
संवाद सूत्र, मिरिक : बाल्यकाल से ही जातीय कवि अगम सिंह गिरी का जीवन-वृत्त सुनने को मिलता रहा है। उनकी कविताओं ने जातीय अस्मिता के पहलू को सर्वप्रथम स्पर्श किया था। जातीय अस्मिता एवं राज्य की मांग पर आंदोलन हुए, इसे लेकर जाति के लोगों में चेतना का संचार हुआ, इसका श्रेय स्व. गिरी की कविताओं को भी जाता है। वे सच्चे अर्थो में गोरखा अस्मिता के कवि थे। उक्त उद्गार जीटीए के कार्यकारी सभासद एवं मोर्चा महासचिव रोशन गिरी ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को सौरेनी बाजार में गणतंत्र दिवस के अवसर पर साहित्य सुनौ परिवार द्वारा कवि अगम सिंह गिरी की प्रतिमा के अनावरण समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कवि गिरी की कविताओं में गोरखा समुदाय के लोगों द्वारा भोगी गई समस्याओं, अभाव एवं राष्ट्र में नेपाली भाषी गोरखा जाति के लोगों द्वारा बरती गई ईमानदारी का सटीक चित्रण है। जिसकी प्रेरणा से ही गोरखा समुदाय के लोग अलग राज्य की मांग को लेकर लंबे समय से संघर्षरत है। मोर्चा महासचिव ने कहा कि कवि गिरी का निजी जीवन चाहे जैसा भी हो, वे तन एवं मन से सिर्फ और सिर्प जाति के प्रति समर्पित थे। कवि विद्रोही साइला ने कवि गिरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे अपनी कृतियों के माध्यम से हमारी स्मृतियों में सदैव जीवंत रहेंगे। कार्यक्रम में कवयित्री शीला लामा, कमला तमांग, रंजीत गुरुंग, भरत देवान ने स्वरचित कविताओं का पाठ किया। सबीर दिलपाली, मनोहर शर्मा ने गिरी की रचनाओं का पाठ किया। इससे पूर्व सौरेनी समष्टि के सभासद अरुण सिग्ची ने प्रतिमा की स्थापना एवं पीएल जोशी ने गणतंत्र दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला। नेपाली के वरिष्ठ साहित्यकार नर बहादुर दाहाल एवं अन्य साहित्यकारों ने प्रतिमा का अनावरण किया। इस अवसर पर साहित्य के लिए कमल चामलिंग, काव्य के लिए अमर दुंगमाली, समालोचना के लिए अर्जुन प्रधान को सम्मानित किया गया। राम प्रसाद छेत्री, नीता प्रधान, दिलबहादुर तुमरूक को भी नागरिक सम्मान से नवाजा गया। कार्यक्रम का संचालन रोशन राई, केसांग लामा ने किया।
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