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    काठगोदाम से नैनीताल 242 किमी!

    By Edited By:
    Updated: Mon, 31 Oct 2011 09:18 PM (IST)

    = दरकती पहाड़ियां रोक रही हैं रेलवे ट्रैक का रास्ता

    =ट्रैफिक के लिहाज से मुनाफा नहीं

    = वित्तीय संकट से दबी रेलवे को 4200 करोड़ की होगी दरकार

    जासं, हल्द्वानी: काठगोदाम से नैनीताल की दूरी है 242 किमी। चौंकिये नहीं, यह दूरी एकदम सही है। हालांकि यह दूरी रेलवे मार्ग से है। काठगोदाम से नैनीताल पर रेल लाइन बिछाने की संभावनाओं पर हुए सर्वे में यह निष्कर्ष निकला है, कि पहाड़ पर ट्रेन चढ़ाने के लिए 242 किमी का ट्रैक तैयार करना होगा। साथ ही इसमें करीब 42 सौ करोड़ की लागत आएगी। बावजूद इसके दरकती पहाड़ियां व कमजोर चट्टानें तथा कम ट्रैफिक इस रूट को शायद ही पूरा कर सके।

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    कुमाऊं वासियों की मांग व रेलवे बोर्ड की मनसा के अनुरूप पिछले वर्ष काठगोदाम से नैनीताल तक रेलवे लाइन बिछाने की घोषणा हुई। पूर्वोत्तर रेलवे की टीम ने इस रूट का सर्वे भी करा लिया। बावजूद इसके काठगोदाम से नैनीताल ट्रेन चढ़ाने में सर्वे रिपोर्ट में ही मुश्किलें सामने आने लगी हैं। रेलवे को विश्व प्रसिद्ध हिल स्टेशन नैनीताल तक ट्रेन पहुंचाने के लिए करीब 242 किमी का ट्रैक तैयार करना होगा। इसमें दर्जनों टनल एवं ब्रिज बनेंगे। साथ ही पूरी योजना की लागत ही करीब 42 सौ करोड़ के आसपास होगी। वहीं कच्ची एवं दरकती पहाड़ियां इस रूट के निर्माण में सबसे खतरनाक साबित होंगी। पहाडि़यों का सीना चीर कर तैयार होने वाला यह रेल पर्यावरण व भूगर्भीय हलचल की दृष्टि से बेहद खतरनाक साबित होगा। पर्यावरणविद भी इस रेल मार्ग के औचित्य पर ही सवाल उठा चुके हैं। वहीं रेलवे ने सर्वे रिपोर्ट में माना है कि यह रेल केवल पर्यटन की दृष्टि से ही कारगर कहा जा सकता है। जबकि लागत एवं दूरी के लिहाज से यहां ट्रैफिक की संभावनाएं भी बहुत कम रहेंगी। जबकि सड़क मार्ग से नैनीताल की दूरी करीब 35 किमी है। यह दूरी लगभग एक घंटे में तय भी हो जाती है। ऐसे में यात्री काठगोदाम से नैनीताल तक 242 किमी की दूरी लगभग सात घंटे में तय करेंगे ऐसा संभव नहीं दिखता। पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केबीएल मित्तल कहते हैं कि बोर्ड को सर्वे रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। वहीं अब दोबारा से बोर्ड ने इसके लिए संभावनाएं तलाशने को कहा है। वहीं रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी भी मान चुके हैं कि पहाड़ पर रेलवे विकास के लिए भौगोलिक संरचना को भी ध्यान न रखा जाना बेहद जरूरी है। ताकि विकास ही विनाश का कारण न बन जाए।

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    शिमला व दार्जिलिंग से परिस्थितियां भिन्न

    शिमला एवं दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर छोटी ट्रेनों के संचालन को नैनीताल से जोड़कर देखा जाना ठीक नहीं हैं। शिमला में निजी एजेंसी टॉय ट्रेन चला रही है। राज्य के पर्यटन महकमे पर ही इसके संचालन की जिम्मेदारी होती है। वहीं वहां कि ग्रेनाइट चट्टानें यहां की सेंडीमेंटरी रॉक से अपेक्षा अधिक मजबूत हैं।

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