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    उत्तराखंड के इस इलाके में भी धराली जैसी आपदा का खतरा, भूवैज्ञानिकों ने दी थी चेतावनी; 17 सालों से नहीं उठा ठोस कदम

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 06:41 PM (IST)

    उत्तरकाशी के बड़कोट में साड़ा और उपराड़ी गांव के नाले निचले इलाकों के लिए खतरा बन गए हैं। भूवैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया है जहाँ भूमि धंसाव की समस्या है। ग्रामीणों ने प्रशासन से गांवों के विस्थापन और पुनर्वास की मांग की है ताकि किसी भी संभावित त्रासदी से बचा जा सके। समय रहते उचित कदम उठाना आवश्यक है।

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    साड़ा व उपराड़ी गांव के संवेदनशील नालों के नीचे बसा बड़कोट। जागरण

    संवाद सूत्र, बड़कोट (उत्तरकाशी)। तहसील मुख्यालय बड़कोट में भी धराली जैसी त्रासदी का खतरा है। यहां साड़ा व उपराड़ी गांव के संवेदनशील नाले आपदा की दृष्टि से निचली बसावट के लिए डर का कारण बनते जा रहे है।

    मुख्यालय के ठीक ऊपर बसे साड़ा और उपराड़ी गांव के संवेदनशील तोक मुरीला, सिला, दरम्याली और कुराला कभी भी भारी तबाही मचा सकते हैं।

    धराली आपदा के बाद इन गांवों की भौगोलिक स्थिति ने निचले बस्तियों में रह रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है। ग्रामीण सुमन प्रसाद बधानी बताते हैं यहां वर्षों से दलदल बनी हुई है, जो बरसात में पहाड़ी ढलानों से आए पानी से भर जाती है। यही पानी साड़ा व उपराड़ी गांव के नालों से होकर तेज रफ्तार में बड़कोट की ओर उतरता है।

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    वर्ष 1998 में ऐसे ही उफान में सेव से लदे खच्चर भी बह गये थे। सुमन प्रसाद ने बताया कि 2003 से 2008 के बीच, जब उनकी पत्नी ग्राम प्रधान थीं, उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी को खतरे की जानकारी दी थी।

    भूवैज्ञानिकों ने उस समय सर्वे कर यह स्पष्ट कहा था कि गांव को विस्थापित करना आवश्यक है। लेकिन 17 साल बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीण प्रेम प्रसाद बधानी घर की दीवारों में बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं।

    सड़क किनारे लगी आरसीसी व वायर क्रेट दीवारें तिरछी हो गई हैं। पहाड़ की ओर बढ़ें तो पेड़ भी झुक चुके हैं। हरि नेगी और संजय सेमवाल साड़ा गांव में अधिकांश मकानों में दरारें हैं।

    प्रशासन को कई बार पत्र लिखे, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने प्रशासन गांवों का विस्थापन और स्थायी पुनर्वास करने की मांग की है, ताकि भविष्य में धराली जैसी त्रासदी से बचा जा सके।

    निचले इलाकों में तबाही की आशंका वर्ष 2024 में तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला द्वारा भूवैज्ञानिक जी.डी. प्रसाद से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि यह इलाका हर साल कुछ सेंटीमीटर धंस रहा है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यहां अतिवृष्टि हुई तो निचले इलाकों में भारी तबाही हो सकती है। 

    चेतावनी का संकेत

    1. ढलानों में दलदल।
    2. मकानों में दरारें
    3. सड़क व दीवारों का तिरछा होना
    4. पेड़ों का झुकाव
    5. भूमि धंसाव की पुष्टि