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    हर्षिल-धराली के बीच बनी झील ज्यों की त्यों, दो माह बाद भी नहीं उतर पाया पानी... भागीरथी नदी का प्रवाह रुका

    Updated: Wed, 15 Oct 2025 06:48 AM (IST)

    उत्तरकाशी में हर्षिल-धराली के मध्य भूस्खलन से बनी झील दो माह बाद भी जस की तस है। भागीरथी नदी का प्रवाह बाधित है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में खतरा बना हुआ है। झील का जलस्तर कम नहीं होने से इसके टूटने का डर है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। प्रशासन स्थिति पर नजर रखे हुए है, पर झील खाली करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

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    अजय कुमार, उत्तरकाशी। हर्षिल-धराली के बीच बनी झील का पानी दो माह बाद भी नहीं उतर पाया है। यहां अभी भी करीब 500 मीटर लंबाई में झील बनी हुई है। इससे भागीरथी नदी का प्रवाह रुका हुआ है। इस झील में पर्यटन विभाग का हेलीपैड भी डूबा हुआ है, जो चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों की हेलीकाप्टर से आवागमन का जरिया था।

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    यहां एक साथ पांच से छह हेलीकाप्टर उतर जाते थे। सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की की ओर से झील को खाली कराने को लेकर अध्ययन किया जा रहा है।

    पांच अगस्त को जब हर्षिल-धराली क्षेत्र में आपदा आई थी तो हर्षिल व धराली के बीच अस्थायी झील का निर्माण हो गया था। इस झील में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का 100 मीटर से अधिक हिस्सा समां जाने से उत्तरकाशी का गंगोत्री क्षेत्र से सड़क संपर्क पूरी तरह कट गया था। इससे भागीरथी नदी के प्रवाह पर असर पड़ा था।

    झील से पानी की निकासी के प्रयास से सेना की एक पोकलैंड मशीन भी डूब गई थी। बाद में काफी दिनों तक झील में जलमग्न हाईवे की बहाली को खास प्रयास नहीं हो पाए। बाद में सेना और बीआरओ ने प्रयास शुरू किए, तब आपदा के 24 दिन बाद जलमग्न हाईवे को मलबा भरान कर वाहनों की आवाजाही के लिए तैयार किया गया।

    मानसूनी वर्षा थमने के बाद जिला प्रशासन ने गंगोत्री धाम की यात्रा भी इसी मलबा भरान कर तैयार हाईवे के ऊपर से शुरू करवाई, लेकिन आपदा के दो माह बाद भी तेलगाड में आए मलबे के कारण बनी अस्थायी झील को पूरी तरह खाली नहीं किया जा सका है।

    झील को खाली नहीं किए जाने से प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि झील को खाली नहीं किया गया तो यह भविष्य के लिए खतरा बन सकती है।

    मैन फ्लो तो निकल चुका है। जो पाकेट बना हुआ है, उसमें सिल्ट जमा है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की की ओर से अध्ययन किया जा रहा है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर आगे काम किया जाएगा।

    -सचिन सिंघल, अधिशासी अभियंता, सिंचाई विभाग, उत्तरकाशी