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    Uttarkashi Fire: सड़क नहीं होने से चार घंटे में पहुंचा अग्निशमन दल... आधा किमी दूर से ढोना पड़ा पानी...तब तक खाक हो गए 15 घर

    Updated: Tue, 28 May 2024 08:52 AM (IST)

    Uttarkashi Fire मोरी तहसील क्षेत्र में वर्ष दर वर्ष आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं लेकिन इन्हें रोकने और इन पर काबू पाने के लिए ठोस इंतजाम नहीं किए जा ...और पढ़ें

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    Uttarkashi Fire: चार घंटे में पहुंची पहली राहत बचाव टीम

    जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: Uttarkashi Fire: मोरी तहसील क्षेत्र में वर्ष दर वर्ष आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन इन्हें रोकने और इन पर काबू पाने के लिए ठोस इंतजाम नहीं किए जा रहे। क्षेत्र में 40 से अधिक गांव अभी भी सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं।

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    इससे अग्निशमन और राहत एवं बचाव दलों को यहां तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। गांवों में पानी की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं है। इन्हीं कारणों से सालरा गांव में अनिल सिंह के भवन में लगी आग इतनी विकराल हो गई और समय रहते उस पर काबू नहीं पाया जा सका।

    आठ किलोमीटर की पैदल दूरी पर है सालरा

    यमुना घाटी में बड़कोट के पास अग्निशमन केंद्र स्थापित है। इसके अलावा अग्निशमन विभाग का एक वाहन पुरोला और एक वाहन मोरी में तैनात है। मोरी से सालरा आठ किलोमीटर की पैदल दूरी पर है। इस कारण मोरी से अग्निशमन विभाग और एसडीआरएफ की टीम घटना की सूचना के चार घंटे बाद मौके पर पहुंच पाई। तब तक 15 भवन जल चुके थे। अगर सालरा में सड़क होती तो मोरी से एक घंटे में अग्निशमन टीम गांव पहुंच सकती थी।

    यही नहीं, गांव में पानी की कमी भी आग बुझाने में बाधा बनी। गांव में जो पुरानी पेयजल योजना है, उससे पानी की आपूर्ति नहीं होती। इस कारण ग्रामीणों को करीब आधा किलोमीटर दूर स्थित जलस्रोत से पानी लाना पड़ा।

    प्रशासन ने इस तरह के अग्निकांड रोकने के लिए गांवों में संसाधन भी उपलब्ध नहीं कराए हैं। ओसला गांव के पूर्व प्रधान ठाकुर सिंह कहते हैं कि मोरी में आग से गांव के गांव जल रहे हैं। गांवों में न तो संसाधन हैं और न ग्रामीणों को जागरूक ही किया गया है।

    मजबूरी है लकड़ी से घर बनाना

    जिले के सीमांत क्षेत्रों में अधिकांश भवन देवदार, कैल और चीड़ की लकड़ी के बने हुए हैं। इन्हीं भवनों में ग्रामीण पशुओं के लिए चारा भी एकत्र करके रखते हैं, जो भवनों में आग लगने पर बारूद का काम करता है। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल कहते हैं कि सीमांत क्षेत्र में लकड़ी के भवन बनाने के दो कारण हैं।

    पहला यह कि सीमांत क्षेत्रों में बर्फबारी बहुत अधिक होती है और वर्ष में अधिकांश समय मौसम ठंडा रहता है। ठंड से बचने के लिए ग्रामीण घरों का निर्माण लकड़ी से करते हैं। दूसरा कारण गांवों की सड़क से कई किलोमीटर की दूरी है, जिस कारण यहां तक भवन निर्माण सामग्री ले जाना संभव नहीं हो पाता। सबसे अधिक लकड़ी के भवन उन गांवों में हैं, जो सड़क से दूर हैं।

    सोचने तक का नहीं मिला समय

    सालरा गांव के किताब सिंह बताते हैं कि सुबह करीब साढ़े 11 बजे गांव के अनिल सिंह के घर से आग फैली। देखते ही देखते आग ने 16 भवनों को चपेट में ले लिया। भवनों के साथ अन्न के कोठार भी जल गए। सब इतनी तेजी से हुआ कि कुछ सोचने का मौका तक नहीं मिला। आग की लपटें इतनी विकराल थीं कि ग्रामीण पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।

    20 वर्ष में 438 भवन आग की भेंट चढ़े

    मोरी में पिछले 20 वर्ष में 438 भवन जलकर राख हो चुके हैं। वर्ष 2009 में सिदरी गांव में हुआ अग्निकांड सबसे भयानक था। इसमें 26 भवनों के साथ दो ग्रामीण और 20 से अधिक मवेशी जिंदा जल गए थे। प्रभावित परिवारों को घटना के पांच वर्ष बाद घर बनाने के लिए 45-45 हजार रुपये की धनराशि मिली।

    हालांकि, प्रभावित परिवार अभी भी सही ढंग से विस्थापित नहीं हो पाए हैं। सिदरी अग्निकांड में जिंदा जलने वालों में गजेंद्र सिंह और उनकी बेटी शामिल थी। गजेंद्र के पिता कौंर सिंह, मां जुमली देवी और पत्नी त्रेपनी देवी अब तक इस सदमे से उबर नहीं सके हैं। मोरी के 20 से अधिक गांवों में आग की बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं।