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    उत्‍तरकाशी आपदा के दो माह: अभी भी दर्द व बेबसी की चादर ओढ़े है धराली, आपदा प्रभावितों को बस सरकार से आस

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 06:00 AM (IST)

    उत्तरकाशी के धराली में आपदा आए दो महीने हो गए हैं पर अभी भी लोग दर्द और बेबसी में जी रहे हैं। सरकार ने नुकसान का जायजा तो लिया पर पुनर्वास और आजीविका के लिए कुछ नहीं किया। प्रभावित सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं क्योंकि उनका सब कुछ तबाह हो गया है। वे सरकार से पुनर्निर्माण शुरू करने और मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं।

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    पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर धरातल पर शुरू नहीं हो पायी अब तक कोई कवायद। जागरण

    अजय कुमार, जागरण  उत्तरकाशी। धराली में आई विनाशकारी आपदा को रविवार को दो माह का समय पूरा हो जाएगा। दो माह बाद भी धराली दर्द व बेबसी की चादर ओढ़े हुए हैं। सरकार ने यहां विभिन्न अधिकारियों की समिति व टीम भेजकर आपदा से हुए नुकसान का आंकलन व जायजा तो लिया, लेकिन बावजूद इसके पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर धरातल पर अब तक कोई कार्यवाही शुरू नहीं हो पायी है।

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    हालांकि प्रभावित अब भी पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। शीतकाल में जहां धराली कभी शीतकालीन पर्यटन के लिए पर्यटकों का स्वागत करता था, अब त्यौहारी माह होने के बावजूद यहां सन्नाटा पसरा है और भविष्य को लेकर प्रभावितों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं।

    बता दें कि बीते पांच अगस्त को गंगोत्री धाम के प्रमुख पड़ाव धराली कस्बे में रोंगटे खड़े कर देने वाला आपदा का मंजर दिखा था, जिसमें खीरगंगा नदी में अचानक आए सैलाब ने लोगों को संभलने का भी मौका नहीं दिया, सैलाब में कई होटल, रेस्टोरेंट व दुकानें ताश के पत्तों की तरह गिरते व मलबे में समाते नजर आए। आपदा में करीब 60 से अधिक लोग लापता हुए, जिसमें अब तक एक ही स्थानीय युवक का शव बरामद हो पाया।

    कभी धराली बाजार के पीछे नजर आने वाले खूबसूरत सेब के बगीचों की जगह आज दूर-दूर तक सैलाब के साथ आये मलबे व पत्थरों का ढेर नजर आता है, जिसमें धराली की पहचान रहा कल्पकेदार मंदिर का गर्भगृह भी मलबे में दबा पड़ा है। लेकिन आपदा के दो माह बाद भी अब कि केंद्र व राज्य सरकार के स्तर पर धराली में पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर धरातल पर कोई काम शुरू नहीं किया गया है।

    हालांकि राज्य सरकार की ओर से यहां अधिकारियों की एक विशेष टीम भेजकर प्रभावितों से पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर वार्ता की गई थी, जिसमें प्रभावितों ने पुनर्वास के लिए लंका समेत दो से तीन स्थान सुझाए थे। लेकिन अब पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर कोई कवायद शुरु नहीं हो पायी है। प्रभावितों ने स्वयं मलबे में दबा अपना सामान निकालने को मशीनों से खोदाई करवाना शुरू किया था, जिसे भी रूकवा दिया गया है।

    इसे लेकर आपदा प्रभावित संजय पंवार, राजेश पंवार, सचेंद्र पंवार, दुर्गेेश पंवार, महेश, शैलेंद्र आदि ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि आपदा से हुए नुकसान का अब तक उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिल पाया है। आपदा के चलते होटल, दुकानें आदि मलबे में समाने से उनका व्यवसाय चौपट है। उन्होंने सरकार से जल्द से जल्द धराली के पुनर्निर्माण का काम शुरू करने और इसका जिम्मा किसी स्थानीय ठेकेदार की जगह किसी बड़ी कंपनी को देने की मांग की है।

    धराली आपदा संघर्ष समिति का किया गठन

    आपदा प्रभावित संजय पंवार ने बताया कि उनकी ओर से धराली आपदा संघर्ष समिति का गठन किया गया है। कहा कि यदि सरकार जल्द से जल्द पुनर्वास व आजीविका पुनर्स्थापना को लेकर कवायद शुरू नहीं करती तो इस समिति के बैनरतले वह सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलने को मजबूर होंगे।

    मलबे के ऊपर फड़ लगाकर बेच रहे सेब

    जहां कभी धराली कस्बे के बाजार में सड़क के दोनों ओर खड़े होटलों के आगे होटल मालिक व सेब बागवान सेब बेचा करते थे, आज आपदा में आए मलबे के ऊपर ही फड़ लगाकर सेब बेचने को मजबूर है, दिन में कई बार मलबे के चलते धूल का गुबार उड़ने से उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बाजवूद इसके वह चारधाम यात्रा पर आ रही यात्रियों से कुछ नकद आमदनी के लिए फड़ लगाने को मजबूर हैं।

    शीतकाल में करते पर्यटकों का स्वागत, अब निचले क्षेत्रों में लौटेेंगे

    आपदा प्रभावित संजय पंवार, राजेश पंवार ने बताया कि वह शीतकाल में भी धराली में रहकर कभी पर्यटकों के लिए अपने होटल व होमस्टे खुला रखते थे, हर्षिल के साथ धराली भी पर्यटकों का पसंदीदा हुआ करता था। लेकिन आपदा से सब कुछ तबाह होने के चलते इस बार वह शीतकाल में निचले क्षेत्रों जनपद मुख्यालय के आसपास के क्षेत्रों में लाैटने की तैयारी कर रहे हैं।

    सालभर का बिजली-पानी बिल व कृषि ऋण माफ करने की मांग

    प्रभावितों ने सरकार से सालभर का बिजली-पानी व किसान ऋण माफ करने की मांग की है, कहा कि आपदा में आजीविका के साधन तबाह होने के चलते उनके लिए बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना तक मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में सरकार को उनका सालभर तक का बिजली-पानी व कृषि ऋण माफ करना चाहिए, जो उनके लिए बड़ी राहत होगी।