By Shailendra prasad Edited By: Aysha Sheikh Updated: Mon, 12 Feb 2024 02:24 PM (IST)
बाड़ाहाट को कभी ऐतिहासिक रूप में प्रसिद्धि नहीं मिल पाई लेकिन इसकी पौराणिकता प्रमाणित करने वाला शक्ति स्तंभ चमाला की चौरी दत्तात्रेय मंदिर जैसे कई स्थल आज भी यहां मौजूद हैं। गढ़वाल हिमालय का गजेटियर में एचजी वाल्टन लिखते हैं कि 629 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ब्रह्मपुर राज्य का उल्लेख किया है। इसकी राजधानी की पहचान शायद बाड़ाहाट के रूप में की जा सकती है।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। बाड़ाहाट, जिसे वर्तमान में उत्तरकाशी के नाम से जाना जाता है, उत्तराखंड के पौराणिक नगरों में शुमार है। कभी यह नगर नागवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। इससे जुड़े कई पुरातात्विक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। महापंडित राहुल सांकृत्यायन व ईटी एटकिंसन ने भी अपनी पुस्तकों में बाड़ाहाट को नागवंशी राजाओं की राजधानी बताया है।
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यह अलग बात है कि बाड़ाहाट को कभी ऐतिहासिक रूप में प्रसिद्धि नहीं मिल पाई, लेकिन इसकी पौराणिकता प्रमाणित करने वाला शक्ति स्तंभ, चमाला की चौरी, दत्तात्रेय मंदिर जैसे कई स्थल आज भी यहां मौजूद हैं। गढ़वाल हिमालय का गजेटियर में एचजी वाल्टन लिखते हैं कि 629 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ब्रह्मपुर राज्य का उल्लेख किया है।
इसकी राजधानी की पहचान शायद बाड़ाहाट के रूप में की जा सकती है। बाड़ाहाट का थौलू (माघ मेला) पर शोध करने वाले अमेरिका के नार्थ कैरोलिना स्थित एलोन यूनिवर्सिटी में धार्मिक इतिहास विभाग के सीनियर प्रोफेसर ब्राइन के.पेनिंग्टन कहते लिखते कि पुराने प्रमाणों में बाड़ाहाट नाम का उल्लेख है। उत्तरकाशी नाम का प्रचलन 1860 से 1870 ईस्वी के बीच शुरू हुआ।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिव प्रसाद डबराल ‘चारण’ की पुस्तक ‘उत्तराखंड का इतिहास भाग-तीन’ में बाड़ाहाट का विवरण है। राहुल सांकृत्यायन ने ‘हिमालय परिचय’ में और एटकिंसन ने हिमालय गजेटियर में बाड़ाहाट को नागवंशी राजाओं की राजधानी माना है।
चमाला की चौरी में होती थी कभी जनसुनवाई
चौरी (चबूतरा) को देवता का थान भी कहा जाता है। जनश्रुति के अनुसार चमाला की चौरी में कभी नागवंशी राजा जनसुनवाई करते थे, इसलिए इसे राज चौरी भी कहते थे। बाड़ाहाट निवासी 62 वर्षीय मंगल सिंह चौहान के अनुसार उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि जब बाड़ाहाट नागवंशी राजाओं की राजधानी था, तब राजा चमाला की चौरी में फैसले लेते थे।
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बाड़ाहाट की प्राचीन चमाला की चौरी। जनश्रुति है कि इस चौरी पर बैठकर नागदेव राजा जनसुनवाई करते थे। जागरण
कालांतर में यहां पांडव नृत्य होने लगा। वर्तमान में पांडव नृत्य बाड़ाहाट के लक्षेश्वर में होता है। वहां भी पांडव पश्वा अपनी आह्वान स्तुति में चमाला की चौरी का उल्लेख करते हैं। गंगा घाटी के जानकार उमारमण सेमवाल कहते हैं कि राज चौरी में राजा न्याय करता था, जबकि देव चौरी में देवता।
चमाला की चौरी मूलरूप से पांडवों की चौरी है। इसमें पांडव नाचते हैं और बाड़ाहाट के क्षेत्राधिपति कंडार देवता भी विराजमान होते हैं। इतिहासकारों के अनुसार चौरी का उदयकाल उत्तराखंड में 12वीं व 13वीं शताब्दी से होता है। इतिहासकार डा. शिव प्रसाद नैथानी ने अपनी पुस्तक ‘उत्तराखंड के तीर्थ एवं मंदिर’ में चौरी के साथ ही देव थात और राज थात का भी उल्लेख किया है।
ब्राह्मी लिपि में है पुरातन इतिहास
इतिहासकार डा. शिव प्रसाद डबराल की पुस्तक ‘उत्तराखंड का इतिहास भाग-तीन’ में बाड़ाहाट के शक्ति त्रिशूल का उल्लेख है। त्रिशूल में ब्राह्मी लिपि में नागवंशी राजा गणेश्वर और उनके पुत्र गुह के बारे में कुछ लिखा हुआ है। स्थानीय जानकार उमारमण के अनुसार त्रिशूल में अंकित लिपि का सार यह है कि एक आज्ञाकारी पुत्र ने अपने पिता की स्मृति में यह त्रिशूल भगवान शिव को अर्पित किया है और इसे अमर कीर्ति के रूप में बताया है।
राहुल सांकृत्यायन ने ‘हिमालय परिचय’ में इस शक्ति स्तंभ और दत्तात्रेय मंदिर को लेकर विस्तृत जानकारी दी है। त्रिशूल पर नेपाल के मल्लवंश के अशोकचल और कांसदेवचल का लेख भी अंकित है। गढ़वाल हिमालय का गजेटियर में एचजी वाल्टन लिखते हैं कि इस त्रिशूल को मल्लवंश के एक राजा ने स्थापित करवाया था।
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