Uttarakhand Tunnel Rescue: श्रमिकों को बचाने के अभियान की अहम कड़ी थे सुरेंद्र राजपूत, 17 साल पहले प्रिंस की भी बचाई थी जान
सुरेंद्र राजपूत ने वर्ष 2006 में हरियाणा में कुरुक्षेत्र व अंबाला के बीच एक गांव में बोरवेल में गिरे बच्चे प्रिंस को बचाने के लिए अथक मेहनत की थी। उन्होंने 57 मीटर गहरे कुएं को दूसरे कुएं से जोड़ने के लिए 10 फीट लंबी सुरंग बनाई थी। जिस कारण प्रिंस को सकुशल बाहर निकाला गया था। हरियाणा सरकार की ओर से सुरेंद्र को सम्मानित किया गया था।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। सिलक्यारा में 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाने के लिए 17 दिनों तक चले बचाव अभियान में जहां एक तरफ देश-विदेश की कई एजेंसियां और विशेषज्ञ अपना योगदान दे रहे थे। वहीं, कुछ ऐसे विशेषज्ञ भी थे, जो निस्वार्थ भाव से अभियान के भागीदार बने। इनमें से एक हैं दिल्ली के निजामुद्दीन निवासी सुरेंद्र राजपूत।
वर्ष-2006 में हरियाणा में बोरवेल में गिरे बच्चे प्रिंस की जान बचाने के लिए सुरंग बनाने वाले सुरेंद्र राजपूत ने सिलक्यारा में मिट्टी की सप्लाई के लिए पुली ट्राली तैयार की, जो अंतिम चरण में श्रमिकों को बाहर निकालने के अभियान का अहम अंग बनी।
सुरेंद्र राजपूत सिलक्यारा बचाव अभियान में सहयोग करने के लिए 18 नवंबर को आ गए थे और लगातार अभियान में शामिल करने की गुहार बचाव एजेंसियों से लगाते रहे। प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात कर उन्होंने अपने अनुभव की जानकारी दी।
इस पर प्रशासन ने जब सत्यता की पड़ताल की तो पता चला कि सुरेंद्र राजपूत ने वर्ष 2006 में हरियाणा में कुरुक्षेत्र व अंबाला के बीच एक गांव में बोरवेल में गिरे बच्चे प्रिंस को बचाने के लिए अथक मेहनत की थी। उन्होंने 57 मीटर गहरे कुएं को दूसरे कुएं से जोड़ने के लिए 10 फीट लंबी सुरंग बनाई थी। जिस कारण प्रिंस को सकुशल बाहर निकाला गया था।
हरियाणा सरकार ने किया था सम्मानित
इस परिश्रम के लिए हरियाणा सरकार की ओर से सुरेंद्र को सम्मानित किया गया था। उनकी योग्यता और अनुभव को देखते हुए प्रशासन ने उन्हें अभियान में शामिल करने का निर्णय लिया। सुरेंद्र राजपूत ने बताया कि उन्होंने मैनुअल ड्रिलिंग करने वाली रैट माइनर्स टीम के लिए 1.25 मीटर लंबी और 600 एमएम चौड़ी एक पुली ट्राली तैयार की।
जिस पर चार बेरिंग भी लगाए गए। इसी ट्राली के जरिये मैनुअल ड्रिलिंग के बाद सुरंग के भीतर से मलबे को पाइप के माध्यम से बाहर निकाला गया। ट्राली से एक बार में करीब एक क्विंटल मलबा निकाला गया।