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    Uttarakhand News: यहां जर्जर ट्रॉलियों में मंजिल और मौत के बीच झूलती है जिंदगी, 10 सालों में हुए दर्जनों हादसे

    By Shailendra prasadEdited By: Siddharth Chaurasiya
    Updated: Mon, 25 Sep 2023 07:23 PM (IST)

    जब तकनीक हिमालय की चोटियों को भी बौना साबित कर चुकी है उस दौर में उत्तरकाशी के 15 गांवों की करीब ढाई हजार की आबादी आवाजाही के लिए जर्जर ट्रॉलियों में झूलने को मजबूर है। सीमांत जनपद के इन गांवों में नदी पार करने मुख्य मार्ग तक पहुंचने और एक से दूसरे गांव में आवाजाही के लिए 11 ट्रॉली संचालित हो रही हैं। इनमें 10 ट्रॉली मानव चलित हैं।

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    उत्तरकाशी के 15 गांवों की करीब ढाई हजार की आबादी आवाजाही के लिए जर्जर ट्रॉलियों में झूलने को मजबूर है।

    शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। जब तकनीक हिमालय की चोटियों को भी बौना साबित कर चुकी है, उस दौर में उत्तरकाशी के 15 गांवों की करीब ढाई हजार की आबादी आवाजाही के लिए जर्जर ट्रॉलियों में झूलने को मजबूर है। सीमांत जनपद के इन गांवों में नदी पार करने, मुख्य मार्ग तक पहुंचने और एक से दूसरे गांव में आवाजाही के लिए 11 ट्रॉली संचालित हो रही हैं। इनमें 10 ट्रॉली मानव चलित हैं, जबकि एक विद्युत चलित।

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    पिछले 10 वर्ष में इन ट्रॉलियों के गिरने से दर्जनों हादसे हो चुके हैं, लेकिन सरकारी तंत्र बेपरवाह बना हुआ है। इस जोखिम का स्थानी समाधान तो दूर की बात, ट्रॉलियों की देखरेख के लिए पुख्ता व्यवस्था तक नहीं की जा रही। मानव चलित ट्रॉली के संचालन को कर्मचारी भी तैनात नहीं हैं। उत्तरकाशी में अक्सर हादसों की वजह बन रही जर्जर ट्रॉलियां सरकारी तंत्र की अनदेखी के साथ सुदूरवर्ती क्षेत्रों में विकास की सच्ची तस्वीर भी बयां कर रही हैं।

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    मोरी ब्लॉक के भंकवाड़ और सल्ला गांव में दो स्थानों पर करीब 20 वर्ष पहले ट्रॉली लगाई गई थी। वर्ष 2013 की आपदा के दौरान इन ट्रॉलियों की मरम्मत हुई, लेकिन उसके बाद जिम्मेदारों ने इस तरफ झांका भी नहीं। भंकवाड़ की प्रधान कविता पंवार ने बताया कि पिछले 10 वर्ष में भंकवाड़ निवासी सत्तारदीन, गणेश लाल, याकूब और फातिमा बीबी की ट्रॉली से गिरकर मौत हो चुकी है। इसके अलावा कई लोग घायल भी हुए हैं। इसी तरह सल्ला गांव में भी कई हादसे हो चुके हैं।

    मोरी के ही कलाप गांव में सुपीन नदी को पार करने के लिए वर्ष 2010 में गोविंद पशु विहार ने लकड़ी की अस्थायी पुलिया बनाई थी, जो वर्ष 2013 की आपदा में बह गई। 140 से अधिक परिवार वाले इस गांव में आज तक पुलिया नहीं बन पाई है। नदी पार करने के लिए ट्रॉली लगाई गई है, जो पिछले दो वर्ष से खस्ताहाल है। ट्रॉली की रस्सी जगह-जगह से टूट चुकी है। इसे जोड़ने के लिए पड़ी गांठों के कारण कई बार रस्सी बीच में फंस जाती है।

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    उत्तरकाशी में पीडब्लूडी की ओर से संचालित ट्रॉली

    - पौंटी छानिका गौल जाने के लिए हटेली गाड़ नामे तोक में 125 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - चपटाड़ी से बचाण गांव के लिए रख्खंडी खड्ड पर 125 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - संद्रा से सल्ला जाने के लिए टोंस नदी पर 90 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - भंकवाड़ जाने के लिए रुणसुणा के पास टोंस नदी पर 90 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - सुपीन नदी पर धौला के पास कलाप गांव के लिए 70 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - रुपीन नदी पर नुराणू गांव जाने के लिए 55 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - सुपीन नदी पर सटूड़ी गांव जाने के लिए 70 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - टिकोची में कोटीगाड़ नदी पर 70 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - स्यूणा गांव जाने के लिए भागीरथी नदी पर 100 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - अगोड़ा की छानियों में जाने के लिए असी गंगा पर 100 मीटर स्पान की ट्रॉली

    - लिवाड़ी जाने के लिए सुपीन नदी पर राला चौंरी में 130 मीटर स्पान की ट्रॉली (विद्युत चलित)

    ट्रॉलियों के संबंध में पीडब्लूडी से रिपोर्ट मांगी गई थी, जिसमें पीडब्लूडी ने सभी ट्रॉलियों को संचालित स्थिति में बताया है। उत्तरकाशी में 10 मानव चलित और एक विद्युत चलित ट्रॉली है। इनके संचालन की जिम्मदारी पीडब्लूडी के पास है।

    - देवेंद्र पटवाल, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी