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सूखे को मात देकर इन गांवों ने बहार्इ जलधारा, दिया नवजीवन

उत्तरकाशी जिले की दो ग्राम पंचायतों ने जल संरक्षण को लेकर जो मुहिम छेड़ी थी, वो कामयाब होती नज़र आ रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 04 May 2018 09:22 PM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 04:54 PM (IST)
सूखे को मात देकर इन गांवों ने बहार्इ जलधारा, दिया नवजीवन
सूखे को मात देकर इन गांवों ने बहार्इ जलधारा, दिया नवजीवन

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: उत्तराखंड की सरांश व चिवां ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों द्वारा छेड़ी गई जल संरक्षण की मुहिम रंग लाने लगी है। भारत-चीन सीमा से लगे उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक की इन दोनों पंचायतों को पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। जल संरक्षण और स्वच्छता के लिए अब ये ग्राम पंचायतें जिला, प्रदेश व देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं। 

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जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 225 किमी दूर मोरी ब्लॉक की चिवां ग्राम पंचायत के प्राकृति जल स्रोतों में पिछले कुछ सालों से जल का स्तर लगातार घट रहा था। इसे देखते हुए वर्ष 2017 में पंचायत ने कार्ययोजना बनाई। इलाके में पौधरोपण शुरू कर दिया गया। साथ ही पहाड़ से पानी की छोटी-छोटी धाराओं को एकत्र कर तालाब तक लाया गया। 

चिवां गांव के 63 वर्षीय मोहन सिंह बताते हैं कि पहले गांव के तीनों प्राकृतिक जल स्रोतों के पानी का उपयोग नहीं हो पाता था। लेकिन, अब स्रोतों को रीचार्ज करने के साथ ही छोटी-छोटी धाराओं को एकत्र करने से पानी की कमी काफी हद तक दूर हो गई है। यह पानी अब बाग-बगीचों की सिंचाई और पशुओं के पीने के काम में आ रहा है। 

रोपे सैकड़ों पौधे

ग्राम पंचायत चिवां के प्रधान सतीश चौहान बताते हैं कि जल संरक्षण के लिए ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी सहायता के अगस्त 2017 में 500 पौधों का गांव के आसपास रोपण किया। इन पौधों की देखभाल भी ग्रामीण ही कर रहे हैं। बताया कि गांव में जल संरक्षण के साथ स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आज सभी परिवारों के पास शौचालय हैं। साथ ही कूड़ा निस्तारण के लिए भी ग्रामीणों को जागरूक किया गया है। 

बनाए छोटे-छोट तालाब

चिवां की तरह ही मोरी ब्लॉक की सरांश ग्राम पंचायत ने भी जल संरक्षण के क्षेत्र में मिसाल पेश की है। यह ग्राम पंचायत भी पिछले दस सालों से जल संकट से जूझ रही है। इस से निपटने के लिए ग्रामीणों ने पहले जल संस्थान और जल निगम के चक्कर लगाए, लेकिन जब कोई बात नहीं बनी तो ग्रामीण पारंपरिक जलस्रोत को रीचार्ज करने में जुट गए। 

मनरेगा के तहत छह लाख की धनराशि खर्च कर 1500 पौधों का रोपण किया। साथ ही छोटे-छोटे तालाब भी तैयार किए। गांव के 68 वर्षीय सूरत सिंह बताते हैं कि गांव के पास सेरी स्रोत से अब पानी की सप्लाई हो रही है। प्रधान कमलेश चौहान बताते हैं कि यहां-वहां बिखरे हुए पानी को एकत्र कर तालाब में डाला गया। यह पानी पशुओं के पीने के साथ बागवानी के भी काम आ रहा है। 

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