Dharali Disaster: सांसों की तलाश को तकनीक से आस, आधा दर्जन से ज्यादा खास मशीनों का रहा उपयोग
उत्तराखंड के धराली में खीर गंगा में आई आपदा के बाद लापता लोगों की तलाश जारी है। सेना आईटीबीपी एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके मलबे में दबे लोगों को ढूंढ रहे हैं। विक्टिम लोकेटिंग कैमरा थर्मल इमेजिंग कैमरा रेस्क्यू राडार और ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार जैसे उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि मलबे में दबे लोगों का पता लगाया जा सके।

अजय कुमार, जागरण उत्तरकाशी। अब यह साफ हो चुका है कि खीर गंगा में आया सैलाब धराली में कई जिंदगी 'लील' गया। मलबे में दबे इन लोगों के जीवित होने की आस हर बीतते दिन के साथ धूमिल होती जा रही है। इसे देखते हुए लापता लोगों की खोजबीन में जुटे सेना, आइटीबीपी, एनडीआरएफ व एसडीआरएफ के जवानों ने चौरतरफा ताकत झोंक रखी है।
इसके लिए मानव संसाधन के साथ तकनीक की भी यथासंभव मदद ली जा रही है। मलबे में जिंदगी के निशान खोजने के लिए आधा दर्जन से अधिक प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। ये उपकरण जमीन की सतह से कई मीटर गहराई में मौजूद सामग्री और गतिविधियों को पकड़ने में सक्षम हैं। हालांकि, धराली में मलबे की अत्यधिक मात्रा के कारण इन मशीनों को अब तक कोई सफलता नहीं मिली है।
विक्टिम लोकेटिंग कैमरा: इस उपकरण का उपयोग मलबे में दबे लोगों को ढूंढने के लिए किया जाता है। यह कैमरा थर्मल इमेजिंग और ध्वनि के माध्यम से मलबे में दबी जिंदगी का पता लगाने में सक्षम है। इसी वर्ष फरवरी में चमोली के माणा में हिमस्खलन हादसे में लापता हुए श्रमिकों की तलाश के लिए भी एसडीआरएफ ने इसका इस्तेमाल किया था।
थर्मल इमेजिंग कैमरा: यह कैमरा थर्मल इमेजिंग तकनीक पर काम करता है और वस्तुओं से निकलने वाली ऊष्मा (अवरक्त विकिरण) को मापता है। इसके बाद यह उपकरण उसे एक रंग-कोडित छवि में बदलता है, जहां विभिन्न रंग अलग-अलग तापमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आपदा प्रबंधन में थर्मल इमेजिंग कैमरा बहुत उपयोगी है। यह अंधेरे में भी जिंदगी तलाश सकता है।
रेस्क्यू राडार- यह उपकरण 500 मेगाहर्ट्ज पर संचालित किया जाता है। इससे मलबे में 10 मीटर की गहराई में किसी के जीवित होने का पता लगाया जा सकता है। यदि किसी की धड़कन चल रही है तो यह तुरंत संकेत भेज देगा। इसके अलावा भी मलबे के भीतर किसी हलचल को रेस्क्यू राडार पकड़ सकता है।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार: यह एक शक्तिशाली उपकरण है, जिससे जमीन के नीचे 50 मीटर गहराई तक संरचनाओं और सामग्रियों का पता लगाया जाता है। यह उपकरण एक ट्रांसमीटर और रिसीवर से बना होता है। ट्रांसमीटर उच्च आवृत्ति वाली विद्युत चुंबकीय तरंग भेजता है, जो जमीन में प्रवेश करती हैं। जब यह तरंग किसी वस्तु (पाइप, केबल, या चट्टान) से टकराती है तो परावर्तित हो जाती है। रिसीवर परावर्तित तरंग को पकड़ता है और डेटा एकत्र करता है। यह डेटा कंप्यूटर पर जमीन के नीचे की संरचनाओं की एक छवि उत्पन्न करता है।
लाइव डिटेक्टर: इसका उपयोग आपदा या दुर्घटना के बाद मलबे में दबे लोगों का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह उपकरण अंधेरे में भी काम कर सकता है और 20 फीट तक की गहराई तक दबे हुए लोगों का पता लगा सकता है।
एक्सो थर्मल कटिंग: मलबे में दबे भवनों के भीतर जाने को छत आदि काटने के लिए इस विधि का उपयोग किया जा रहा है। इसमें एक विशेष राड को जलाकर उसके माध्यम से आक्सीजन को प्रवाहित किया जाता है। इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है, जो धातु को पिघलाकर काटती है। यह विधि किसी भी धातु को काटने, छेदने या खोदने में सक्षम है।
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