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    उत्तरकाशी में स्थापित किया था सर्वोदय आश्रम

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 21 May 2021 11:07 PM (IST)

    प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा ने 1970 में सुरेंद्र दत्त भट्ट के साथ मिलकर उत्तरकाशी के उजेली में सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी। ...और पढ़ें

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    उत्तरकाशी में स्थापित किया था सर्वोदय आश्रम

    जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा ने 1970 में सुरेंद्र दत्त भट्ट के साथ मिलकर उत्तरकाशी के उजेली में सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी। यह आश्रम सर्वोदय व सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का प्रमुख केंद्र रहा है। विमला बहुगुणा की छोटी बहन 85 वर्षीय उर्मिला भट्ट कहती हैं कि जंगलों को बचाने के लिए 1985 में सुंदरलाल बहुगुणा ने कैलाश आश्रम उत्तरकाशी में उपवास किया था। उसके बाद उत्तरकाशी के हनुमान मंदिर में भी उपवास किया।

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    वर्ष 1977-78 के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा जयप्रकाश नारायण को लेकर उत्तरकाशी और गंगोत्री तक गए थे। रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रणेता सुरेश भाई कहते हैं कि जय प्रकाश नारायण उत्तरकाशी प्रवास के दौरान सुंदरलाल बहुगुणा को पहाड़ के बुनियादी प्रश्नों पर कई जिम्मेदारी देना चाहते थे, लेकिन उन्होंने जब बिहार कि कुछ हिसक घटनाओं के बारे में सुना तो वे रातों-रात यात्रा स्थगित करके पटना वापस चले गए थे। सुरेश भाई कहते हैं कि घनश्याम सैलानी के साथ मिलकर सुंदरलाल बहुगुणा ने गंगोत्री ग्राम स्वराज मंडल और पुरोला ग्राम स्वराज मंडल की स्थापना की थी। इन मंडलों के जरिये प्राकृतिक संसाधनों का विकास, इससे रोजगार के कई तरीके विकसित किए। जब सरकारों ने जंगलों को काटना शुरू किया तो जंगल बचाने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए गांव-गांव की यात्राएं की। ग्राम दान, भूदान और जिला दान का काम भी उत्तरकाशी में सफलतापूर्वक किया गया। कई जमीदारों से भूमिहीन परिवारों को निश्शुल्क भूमि दान करवायी गई। सर्वोदय नेता स्व. सुरेंद्र दत्त भट्ट के पुत्र गौतम भट्ट कहते हैं कि सुंदरलाल बहुगुणा के साथ उत्तरकाशी से सर्वोदय जगत में हरिजन सेवक और भूदान आंदोलन के साथी सुरेन्द्र दत्त भट्ट, चिपको आंदोलन के साथी सैंज गांव के घनश्याम सिंह भंडारी, पाटा गांव के नैन सिंह चौहान, पुरोला से ठाकुर कृपाल सिंह प्रमुख थे। जल जंगल और जमीन पर हक हकूक की पैरोकारी के लिए सर्वोदय के ये सैनिक समाज को सदैव जागरूक करने तत्पर रहते हुए जीवन जीने वाले लोग थे।