उत्तरकाशी के रवाईं घाटी में मिले भाषा विकास के प्रमाण
इतिहासकारों के अनुसार ब्राह्मी लिपि में लिखे ये शिलालेख उत्तरावर्ती मौर्य काल के हैं। जबकि चित्राक्षर (पिक्टोग्राम) नवपाषण युग से मेल खाते हैं।
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। सांस्कृतिक एवं एतिहासिक महत्व रखने वाली सीमांत उत्तरकाशी जिले की रवाईं घाटी में भाषा विकास से जुड़े चित्राक्षर और शिलालेख मिले हैं। इतिहासकारों के अनुसार ब्राह्मी लिपि में लिखे ये शिलालेख उत्तरावर्ती मौर्य काल के हैं। जबकि चित्राक्षर (पिक्टोग्राम) नवपाषण युग से मेल खाते हैं। इसके अलावा रवाईं क्षेत्र की कुछ चट्टानों पर कप (ओखलीनुमा) आकृति भी मिली हैं। मानव इनका उपयोग आखेट के लिए किया करते थे।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 115 किमी दूर पुरोला तहसील के हुडोली गांव को जोड़ने वाले मार्ग पर कमल नदी के बायीं ओर एक चट्टान पर पक्षियों और मछली के विभिन्न रंगों में चित्राक्षर मिले हैं। इसके साथ ही हुडोली गांव से एक किमी की दूरी पर ठडूंग गांव के निकट एक चट्टान पर उत्तरवर्ती मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में एक छोटा-सा लेख अंकित है।
इसी पहाड़ी की चट्टान पर ओखली की तरह छोटे-छोटे कप के चिह्न बने भी मिले हैं। इनकी खोज और इन पर शोध कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के प्रोफेसर एमपी जोशी और राजकीय महाविद्यालय बड़कोट (उत्तरकाशी) के प्रोफेसर विजय बहुगुणा ने किया। इस संबंध में उनका शोधपत्र भी प्रकाशित हो चुका है।
प्रोफेसर विजय बहुगुणा बताते हैं कि हुडोली व ठडूंग गांव में ब्राह्मी लिपि के लेख, चित्राक्षर व कप चिह्न स्पष्ट रूप से भाषा के विकास में हिमालय के महत्व को दर्शाते हैं। ये प्रमाण इस बात को भी जोड़ते हैं कि भाषा के फैलाव के संदर्भ में हिमालय एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है।
धरोहरों की उपेक्षा से इतिहासकार चिंतित
इतिहासकार प्रो. विजय बहुगुणा बताते हैं कि रवाईं घाटी में उत्तरवर्ती मौर्य काल व नवपाषण युगीन संस्कृति के प्रमाण उपलब्ध हैं। रवाईं के आसपास लाखामंडल, पुरोला की यज्ञवेदिका व कालसी में शिलापट के प्रमाण मौजूद हैं। लेकिन, रवाईं घाटी में हाल ही में मिले चित्राक्षर, शिलालेख व कप चिह्न के प्रमाणों को संरक्षित करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं। जबकि, इन प्रमाणों का शोध रॉक आर्ट ऑफ इंडिया बुक में भी प्रकाशित हो चुका है।
यहां भी मिले हैं शिलालेख
चंपावत जिले के देवीधुरा में चट्टानों पर पेलियो आर्ट के चिह्न मिले हैं, जिनमें प्रागैतिहासिक काल के खूबसूरत दृश्यों और सौंदर्य भावों को अभिव्यक्त किया गया है। अल्मोड़ा जिले के रानीखेत स्थित महारू-उदय व ढकाधकी गांव और चमोली जिले के छिनका व किमनी गांव के पास भी चित्राक्षर मिले हैं।