उत्तराखंड की जिस घाटी में पिछले दिनों पहुंचे थे PM Modi, वहां खोदाई में मिली ऐसी चीज; फटी रह गई देखने वालों की आंख
Harshil Valley उत्तराखंड की हर्षिल घाटी में पहली बार बेहद कीमती हिमालयी जड़ी मिली है। यह जड़ी आमतौर पर समुद्रतल से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है लेकिन झाला गांव में यह 2800 मीटर की ऊंचाई पर मिली है। वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ इस खोज से उत्साहित हैं और इसका अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं। इसका उपयोग आयुर्वेदिक और तिब्बती चिकित्सा पद्धति में किया जाता है।

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: Harshil Valley: पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के कारण हर्षिल घाटी चर्चाओं में थी। अब एक और वजह से घाटी खबरों में आ गई है। समुद्रतल से लगभग 2,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हर्षिल घाटी के झाला गांव में कीड़ाजड़ी मिली है। इतनी कम ऊंचाई पर यह जड़ी मिलने से वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ व शोधार्थी उत्साहित हैं। वहीं हैरत में भी पड़ गए हैं।
उनका कहना है कि निचले इलाकों में जड़ी का मिलना अच्छा संकेत है। इस पर अध्ययन करने की आवश्यकता है। इससे संभावनाओं के नए द्वार खुल सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर यह जड़ी आमतौर पर समुद्रतल से 4,500 मीटर की ऊंचाई पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है।
जमीन में एक फीट नीचे मिलीं तीन से चार जड़ी
झाला गांव के काश्तकार विशाल ने बताया कि गत वर्ष अगस्त में उनके चाचा भवन निर्माण के लिए नेपाली मूल के मजदूरों से नींव की खोदाई करा रहे थे। इसी दौरान जमीन में करीब एक फीट नीचे तीन से चार जड़ी मिलीं। मजदूरों ने उसे कीड़ाजड़ी बताया।
इसकी जानकारी विशाल ने अपने भाई उत्तरकाशी महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर विकास को दी। विकास ने महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. महेंद्र पाल सिंह परमार को जड़ी दिखाई तो उन्होंने भी उसे कीड़ाजड़ी बताया। कोलकाता स्थित भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के केंद्रीय राष्ट्रीय हर्बेरियम में विज्ञानी डा. कनाद दास ने भी इसकी पुष्टि की। विशाल ने बताया कि उनके पास एक ही कीड़ाजड़ी है, बाकी जड़ी नेपाली मजदूर अपने साथ ले गए।
हर्षिल घाटी में पहली बार मिली कीड़ाजड़ी। जागरण
डा. महेंद्र पाल सिंह परमार ने बताया कि इससे पहले आधिकारिक रूप से हर्षिल में कीड़ाजड़ी नहीं मिली है। झाला में यह जड़ी मिलने से इस बात पर भी मुहर लगती है कि यहां का वातावरण इसके मुफीद है।
कीड़ाजड़ी में होते हैं एंटी एजिंग गुण
डा. महेंद्र पाल सिंह परमार के अनुसार, कीड़ाजड़ी का विज्ञानी नाम कार्डिसेप्स साइनेसिस है। इसमें कार्डिसेपिन, पालीसेकेराइड्स, अमीनो एसिड, खनिज, विटामिन बी-1, बी-2 व बी-12 समेत कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इस कारण इसमें एंटी फंगल व एंटी एजिंग गुण होते हैं। इसका आयुर्वेदिक व तिब्बती चिकित्सा पद्धति में उपयोग होता आया है। इसे शक्तिवर्द्धक और कैंसर समेत कई बीमारियों में असरदार माना जाता है।
उत्तराखंड में यहां मिलती है कीड़ाजड़ी
उत्तराखंड में कीड़ाजड़ी पिथौरागढ़ के छिपालाकेदार, रालम गांव के आसपास, सालंग, ग्वार, लास्पा और जोहार घाटी के बुग्यालों में पाई जाती है। बागेश्वर और चमोली जनपद में भी अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में मिलती है।
यह होती है कीड़ाजड़ी
केंद्रीय राष्ट्रीय हर्बेरियम में माइकोलाजिस्ट एवं विज्ञानी डा. कनाद दास ने बताया कि कीड़ाजड़ी एक तरह का फंगस होता है, जो जमीन के नीचे पाया जाता है। यह लार्वा को मारकर पनपने वाला फंगस है। इस कारण इसे कीड़ाजड़ी कहते हैं।
हर्षिल के झाला में जो जड़ी मिली है, वह कीड़ाजड़ी ही है। लगभग 1,000 वर्ष से इसका औषधीय इस्तेमाल हो रहा है। यह हिमालय के अल्पाइन क्षेत्र में 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश के अलावा तिब्बत के पठारी भू-भाग में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। तिब्बत में इसे यारसा गंबू कहा जाता है। -डा. कनाद दास, माइकोलाजिस्ट एवं विज्ञानी, केंद्रीय राष्ट्रीय हर्बेरियम
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