उत्तराखंड में परंपरा के धागों से समृद्धि बुन रहा जाड़-भोटिया समुदाय, पीएम मोदी को भी भाए थे इनके पट्टू कोट
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जाड़-भोटिया समुदाय अपनी पारंपरिक ऊनी वस्त्र निर्माण कला से समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। नालंदा वुलन समूह की महिलाएं ऊन से वस्त्र बना रही हैं, जिनकी मांग दूर-दूर तक है। शुद्ध ऊन से बने इन वस्त्रों को प्रधानमंत्री मोदी ने भी पसंद किया था। वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं, और एक स्वेटर बनाने में कई दिन लगते हैं।

हथकरघे पर बुनाई करती मीम देई। जागरण
(उत्तम में सर्वोत्तम) परंपरा के धागों से समृद्धि बुन रहा जाड़-भोटिया समुदाय
-सर्दी की दस्तक के साथ ही उत्तरकाशी के डुंडा में ऊनी वस्त्र निर्माण ने पकड़ी गति
-पारंपरिक ऊनी वस्त्र उद्योग से जुड़े हैं यहां रहने वाले जाड़ और भोटिया समुदाय
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अजय कुमार, जागरण, उत्तरकाशी। उत्तरकाशी की वादियों में जब सर्द बयार बहनी शुरू होती है तो यहां के बुनकर परिवारों के हथकरघों की रफ्तार तेज हो जाती है। सर्दी की दस्तक के साथ ही वीरपुर डुंडा की महिलाएं ऊन के धागों से गर्माहट बुनने लगती हैं। नालंदा वुलन स्वयं सहायता समूह से जुड़ी ये महिलाएं इन दिनों देर रात तक हथकरघों पर काम में जुटी हुई हैं। यहां बने ऊनी वस्त्रों की मांग प्रदेश ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश से लेकर कारगिल (लद्दाख) तक है।
लगातार आर्डर मिलने से उत्साह
नालंदा वुलन स्वयं सहायता समूह पिछले कई वर्ष से ऊनी वस्त्रों के निर्माण में जुटा है। सर्दी शुरू होने के साथ ही समूह को ऊनी वस्त्रों के आर्डर मिलने लगे हैं। समूह की अध्यक्ष भागीरथी नेगी ने बताया कि कुल्लू से 1.20 लाख के स्वेटर और कारगिल से तीन लाख के स्वेटर, कोट, शाल, जुराब, टोपी व दस्ताने का आर्डर मिला है। इसे उन्होंने हाल ही में भिजवाया है। इसके अलावा ऋषिकेश से भी करीब 50 हजार रुपये के कपड़ों का आर्डर मिला है। समूह से 80 महिलाएं जुड़ी हुई हैं।
पूरी तरह हस्तनिर्मित होते हैं वस्त्र
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर स्थित वीरपुर डुंडा क्षेत्र, जाड़-भोटिया और किन्नौरी समुदाय का इलाका है। यहां रह रहे परिवारों के अधिकांश लोग पारंपरिक ऊनी वस्त्र उद्योग से जुड़े हुए हैं। भेड़ पालन से लेकर ऊन निकालने और उससे कपड़े तैयार करने तक सारा काम ये लोग स्वयं करते हैं। यह काम पूरी तरह हस्तनिर्मित है।
शुद्धता और सादगी है पहचान
डुंडा के कपड़ों की खासियत है उनकी शुद्ध ऊन। यहां ऊन में किसी प्रकार का सिंथेटिक धागा नहीं मिलाया जाता। यही कारण है कि इनके वस्त्र थोड़ी चुभन के बावजूद गहरी गर्माहट देते हैं। अब इन्हें और आरामदायक बनाने के लिए फर की परत भी जोड़ी जा रही है।
मेले-प्रदर्शनी में सप्लाई
जिला उद्योग केंद्र की महाप्रबंधक शैली डबराल बताती हैं कि डुंडा में बने ऊनी कपड़े दिल्ली और देहरादून के मेलों-प्रदर्शनियों में पहचान बना रहे हैं। इनकी बिक्री ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन आफ इंडिया लिमिटेड से भी होती है। इस उद्योग से जिले में करीब दो हजार लोग आजीविका कमा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को भी भाए पट्टू कोट
इसी वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब हर्षिल भ्रमण पर आए थे, तो उन्हें जाड़-भोटिया समुदाय के बनाए दो पट्टू कोट भेंट किए गए थे। हाल ही में जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने नालंदा समूह को बंद गले के ऊनी पट्टू कोट का आर्डर दिया है।
ऊनी कपड़ा तैयार करने की लंबी प्रक्रिया
भेड़ के बाल काटने के बाद उनकी धुलाई कर सुखाया जाता है। इसके बाद छंटाई होती है और फिर कार्डिंग मशीन से ऊन का गोला तैयार किया जाता है। इससे धागा तैयार कर हथकरघे से ऊनी वस्त्र बुने जाते हैं। एक स्वेटर बुनने में 15 से 20 दिन लग जाते हैं।

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