भालुओं के हमले रोकने के लिए वन विभाग की नई योजना, अब भालुओं को दूर भगाएगा एनाइडर सिस्टम
वन विभाग ने भालुओं के हमलों को रोकने के लिए एक नई पहल की है। इसके तहत, एनाइडर सिस्टम का उपयोग किया जाएगा, जो तेज आवाजें और रोशनी उत्पन्न करके भालुओं को मानव बस्तियों से दूर रखेगा। विभाग का मानना है कि यह प्रणाली मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में सहायक होगी।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। उत्तरकाशी वन प्रभाग ने इंसानों पर हमलावर हो रहे भालुओं को दूर भगाने की योजना बना ली है। इसके लिए भालू प्रभावित क्षेत्रों में एनाइडर सिस्टम स्थापित किए जाएंगे। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भालुओं को आबादी क्षेत्र से दूर रखने का यह सबसे सुरक्षित व कारगर उपाय है, जिसमें जानवरों की आवाज़ और गतिविधियों का पता लगाने के लिए सेंसर का उपयोग होता है।
जानवर का पता चलते ही सिस्टम तेज रोशनी के साथ ध्वनि अलार्म बजाता है, जिससे जानवर डर कर भाग जाते हैं।
दरअसल, विगत चार-पांच माह से भालुओं के हमलों की लगातार घटनाएं सामने आ रही है। अब तक यहां करीब दस घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें उत्तरकाशी वन प्रभाग में भालुओं के चलते दो ग्रामीण महिलाओं की भी मौत भी हुई।
ये महिलाएं गांव के पास जंगल से घास लेने गई थी, जहां भालू दिखने पर उसके हमले से बचाने के लिए भागने के दौरान पहाड़ी से गिरने के चलते उनकी मौत हो गई। वहीं, असी गंगा घटी के सेकू गांव में एक महिला को भालू ने गंभीर रुप से घायल कर दिया था, जिसे जिला चिकित्सालय में प्राथमिक उपचार के बाद हायर सेंटर एम्स ऋषिकेश रेफर किया गया।
भालू के आबादी क्षेत्र में धमकने को लेकर अब वन विभाग भी सतर्कता बरत रहा है। यहां वन विभाग की टीमें भालू प्रभावित गांवों में लगातार रात्रि गश्त कर रही हैं। उत्तरकाशी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी ने बताया कि भालू प्रभावित क्षेत्रों के लिए एनाइडर सिस्टम स्थापित करने की योजना है।
इसके लिए करीब चार-पांच लाख के बजट से एनाइडर सिस्टम मंगवाए गए हैं। इसे पशु घुसपैठ का पता लगाने और विकर्षक प्रणाली के रुप में जाना जाता है। बताया कि इस सिस्टम के सामने से जैसे ही कोई जानवर गुजरता है तो सिस्टम के जरिए सेंसर उसकी मौजूदगी का पता कर तेज आवाज करता है, जिससे डरकर भालू समेत अन्य जानवर भाग जाते हैं।
डीएफओ ने बताया कि भालू प्रभावित क्षेत्रों के चिन्हीकरण को लेकर उप प्रभागीय वनाधिकारियों को निर्देशित किया गया है।
भालूओं के बदले व्यवहार से वनाधिकारी भी चिंतित
डीएफओ डीपी बलूनी ने भी भालुओं के बदले व्यवहार को लेकर चिंता जताई। कहा कि अमूमन भालू अगस्त से अक्टूबर तक ही सक्रिय रहते थे। इस अवधि में भालू खाना-पीना खाकर नवंबर से मार्च तक शीत निंद्रा पर चले जाते थे। लेकिन अब भालुओं के व्यवहार में बढ़ा बदलाव देखने को मिल रहा है।
इसे लेकर उच्च स्तर पर भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोर्धार्थियों से भी अध्ययन कराने की बात चल रही है। बताया कि जल्द ग्राम प्रधान व जनप्रतिनिधियों के साथ एक कार्यशाला कर मानव-वन्यजीव संघर्ष से बचाव को लेकर जागरुक किया जाएगा।

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