Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यहां शक्ति के रूप में विराजमान हैं दुर्गा, सिर्फ अंगुली से हिलता है त्रिशूल

    By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Bhanu Prakash Sharma
    Updated: Thu, 11 Oct 2018 02:10 PM (IST)

    उत्तरकाशी जिले में भागीरथी के किनारे स्थित शक्ति मंदिर में मां दुर्गा शक्ति के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित त्रिशूल हाथ से जोर लगाने से नहीं बल्कि अंगुली से हिलता है। यात्रा काल में गंगोत्री यमुनोत्री के दर्शन करने वाले यात्री यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए 160 किलोमीटर चलकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है।

    Hero Image
    यहां शक्ति के रूप में विराजमान हैं दुर्गा, सिर्फ अंगुली से हिलता है त्रिशूल

    उत्तरकाशी, जेएनएन। भागीरथी नगरी के किनारे उत्तरकाशी में प्राचीन शक्ति मंदिर है। इस मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं। नवरात्र और दशहरे पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। आस्था है कि इस मंदिर में दुर्गा देवी शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हैं। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यात्रा काल में गंगोत्री यमुनोत्री के दर्शन करने वाले यात्री यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए 160 किलोमीटर चलकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। उत्तरकाशी बस स्टैंड से तीन सौ मीटर दूर शक्ति मंदिर स्थित है। 

    इतिहास  

    स्कंद पुराण के केदारखंड में इस शक्ति मंदिर का वर्णन मिलता है। यह सिद्धपीठ पुराणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गई है। अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ। जिसमें देवता और असुरों से हारने लगे, तब सभी देवताओं ने मां दुर्गा की उपासना की। 

    इसके फलस्वरूप दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण किया और असुरों का वध किया। इसके बाद यह दिव्य शक्ति के रूप में विश्वनाथ मंदिर के निकट विराजमान हो गई। अनंत पाताल लोक में भगवान शेषनाग के मस्तिक में शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हो गई। 

    आज तक इस शक्ति स्तंभ का ये पता नहीं चल पाया है कि यह किस धातु से बना हुआ है। इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में गोलाकार कलश है। जो अष्टधातु का है। इस स्तंभ पर अंकित लिपि के अनुसार यह कलश 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पूर्व स्थापित किया। यह शक्ति स्तंभ छह मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है। 

    महातम्य 

    उत्तरकाशी में शक्ति मंदिर के दर्शन का विशेष महत्व है। मनोकामना पूर्ण करने के लिए नवरात्र व दशहरे में यहां श्रद्धालु रात्रि जागरण भी करते हैं। इस मंदिर में सबसे रोचक शक्ति स्तंभ है। इस शक्ति स्तंभ अंगुली से छूने से हिल जाता है, लेकिन जोर लगाने पर नहीं हिलता है। गंगोत्री व यमुनोत्री आने वाले यात्रियों के लिए यह शक्ति स्तंभ आकर्षण व श्रद्धा का केंद्र होता है। 

    वर्ष भर मन्नत को लेकर आते हैं श्रद्धालु 

    शक्ति मंदिर के पुरोहित आचार्य मुरारी लाल भट्ट के अनुसार शक्ति मंदिर में लोगों की बड़ी आस्था है। नवरात्र व दशहरे में यहां विशेष पूजा अर्चना होती है। प्रमुख पर्व के दौरान मां शक्ति के दर्शन मात्र से मानव का कल्याण होता है। वर्ष भर श्रद्धालु अपनी मन्नतों को लेकर मां के दरबार में आते हैं। 

    शक्ति के रूप में माना जाता है त्रिशूल 

    ज्योतिशाचार्य पंडित सुरेश शास्त्री के अनुसार उत्तरकाशी में शक्ति मंदिर विशाल त्रिशूल शक्ति के रूप में माना जाता है। इसी लिए इसे शक्ति स्तंभ कहते हैं। देव पुराणों में कहा गया है कि देवासुर संग्राम के समय जब देवता पराजित होने लेग तो देवराज इन्द्र ने शक्ति के रूप में त्रिशूल फेंका। जिससे असुरों का नाश हुआ। देवताओं ने शक्ति के रूप में देवी भगवती की आराधना की।