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इंजीनियरिंग छोड़ चुनी पहाड़ों की जिंदगी, मुश्किल रास्तों पर चल कर रही अरमान पूरे

चमोली की देवेश्वरी आज युवाओं के लिए मिसाल बन गर्इ है। इंजीनियर की नौकरी छोड़ उन्होंने पहाड़ों की जिंदगी चुनी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 20 May 2018 11:50 AM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 05:03 PM (IST)
इंजीनियरिंग छोड़ चुनी पहाड़ों की जिंदगी, मुश्किल रास्तों पर चल कर रही अरमान पूरे
इंजीनियरिंग छोड़ चुनी पहाड़ों की जिंदगी, मुश्किल रास्तों पर चल कर रही अरमान पूरे

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: मन में हौसला हो, कुछ करने का जुनून हो और हिम्मत बेशुमार हो तो कोर्इ भी राह मुश्किल नहीं होती। इस बात को साबित कर दिखाया है चमोली जिले की इंजीनियर बिटिया देवेश्वरी बिष्ट पर सटीक बैठती हैं। इंजीनियर की नौकरी छोड़ और रूढ़िवादी अवधारणा को तोड़ वह अपनी इच्छा, अपने अरमानों को खुलकर जी रही है और जीवन का भरपूर आनंद उठा रही है। यही नहीं, एक बड़ा मकसद भी साथ जोड़ लिया है। पिछले तीन साल से वह पहाड़ में स्वरोजगार के लिए जहां हिमालय ट्रैकिंग व हैरिटेज ट्रैकिंग को प्रमोट कर रही है, वहीं पहाड़ी संस्कृति को संजोने में भी जुटी हुई हैं। 

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यह कहानी है 27 साल की देवेश्वरी बिष्ट की, जो जीवन और इसे जीने के तरीके को लेकर युवा पीढ़ी की मुकम्मल सोच को बख्रूब समझा रही हैं। इंजीनियर की नौकरी छोड़ और रूढ़िवादी अवधारणा को तोड़ वह अपनी इच्छा, अपने अरमानों को खुलकर जी रही हैं। बचपन के शौक ट्रैकिंग को करियर की शक्ल दे दी है और एक बड़ा मकसद इसमें जोड़ दिया है। 

इन दिनों देवेश्वरी पश्चिम बंगाल के एक पर्यटक दल को उत्तरकाशी के गंगोत्री-गोमुख और भोजवासा की ट्रैकिंग करा रही हैं। जबकि, बीते सप्ताह वे दिल्ली की महिला पर्यटकों को केदारघाटी की ट्रैकिंग करा चुकी हैं। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली 27 वर्षीय देवेश्वरी एक भाई और दो बहनों में सबसे छोटी हैं। 12वीं तक की पढ़ाई गोपेश्वर में हुई। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद वर्ष 2009 में उन्होंने जल संस्थान गोपेश्वर में बतौर अवर अभियंता कार्य करना शुरू किया। तीन साल बाद इसी पद उन्हें उरेडा में भेज दिया गया। लेकिन अपने बचपन के शौक, संस्कृति एवं पहाड़ से गहरे लगाव के चलते वर्ष 2015 में उन्होंने नौकरी को अलविदा कह ट्रैकिंग के जरिये स्वरोजगार की अलख जगानी शुरू की। 

पूरे कर रहीं अपने अरमान 

देवेश्वरी बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें पहाड़ की वादियां बेहद भाती रही हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान तक उन्होंने चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, बागेश्वर व पिथौरागढ़ जिलों के सभी प्रमुख पर्यटक स्थलों की सैर कर ली थी। वर्ष 2015 में उन्होंने ट्रैकिंग अभियान की शुरुआत की। इसके तहत अब तक वह 500 से अधिक देशी-विदेशी पर्यटकों को ट्रैकिंग करा चुकी हैं। 

वर्तमान और विगत कई सालों से हमने उत्तराखंड में कोई ऐसी लड़की या महिला फोटोग्राफर और महिला ट्रैकर नहीं देखी जिसने इसे रोजगार का जरिया बनाया हो। ऐसे में देवेश्वरी बिष्ट का कार्य उन्हें दूसरों से अलग पंक्ति में खड़ा करता है। जिसके पास पहाड़ जैसा हौसला है। 

खुद तय किए ट्रैकिंग रूट 

देवेश्वरी कहती हैं, पहाड़ के हर गांव में ट्रैकिंग रूट हैं। जो सिर्फ गांव ही नहीं, पहाड़ की संस्कृति एवं सभ्यता को भी जोड़ते हैं। इसी कारण उन्होंने पहाड़ के कौथिग-मेलों व पौराणिक स्थलों को भी अपने ट्रैकिंग चार्ट में शामिल किया है। 

फोटोग्राफी का शौक भी कर रहीं पूरा 

देवेश्वरी महज ट्रैकिंग ही नहीं करतीं, बल्कि हिमालय की मनमोहक छवियों को कैमरे में कैदकर, उनसे देश-दुनिया को भी रू-ब-रू कराती हैं। देवेश्वरी के पास पहाड़ों की बेहतरीन तस्वीरों का एक शानदार कलेक्शन मौजूद है। इसमें पहाड़, फूल, बुग्याल, नदी व झरनों से लेकर लोकसंस्कृति और लोक विरासत को चरितार्थ करती दस हजार से भी अधिक तस्वीर शामिल हैं। 

'ग्रेट हिमालयन जर्नी'

देवेश्वरी ने 'ग्रेट हिमालयन जर्नी' नाम से अपनी वेबसाइट और फेसबुक पेज बनाया है। ताकि लोगों को आसानी से उत्तराखंड के ट्रैकों के बारे में जानकारी मिल सके। ट्रैकिंग से स्वरोजगार बढ़ाने के लिए उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर 15 से अधिक युवाओं को जोड़ा है। जो गाइड व पोर्टर का काम करते हैं। पंचकेदार (केदारनाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ व कल्पेश्वर), पंच बदरी, फूलों की घाटी, हेमकुंड, स्वर्गारोहणी, कुंवारी पास, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा, पिंडारी ग्लेशियर, कागभुसुंडी, देवरियाताल, घुत्तु से गंगी, खतलिंग ग्लेशियर आदि ट्रैकों पर वह ट्रैकिंग करा रही हैं। 

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