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    इस तरह अदा करते हैं प्रकृति देवता का शुक्रिया, खेलते हैं मक्खन की होली

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 17 Aug 2019 04:54 PM (IST)

    उत्‍तरकाशी के दयारा बुग्याल में प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव में मक्खन मट्ठा की होली खेल कर प्रकृति की पूजा की जाती है। ...और पढ़ें

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    इस तरह अदा करते हैं प्रकृति देवता का शुक्रिया, खेलते हैं मक्खन की होली

    उत्तरकाशी, जेएनएन। दयारा बुग्याल में प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव (बटर फेस्टिवल) शनिवार को आयोजित होगा। इस उत्सव में मक्खन मट्ठा की होली खेल कर प्रकृति की पूजा की जाती है। इस खास तरह के उत्सव में भाग लेने वाले पर्यटक मखमली बुग्यालों में मक्खन की होली खेलने के साथ प्रकृति के बीच खास लम्हों को वे जीवन में यादगार बनाते हैं।

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    जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किलोमीटर की सड़क दूरी तथा भटवाड़ी ब्लाक के रैथल गांव से छह किलोमीटर पैदल दूरी पर स्थित 28 वर्ग किलोमीटर में फैले द्यारा बुग्याल में सदियों से अंढूड़ी उत्सव मनाया जाता आ रहा है। इस उत्सव में दूर-दूर से पर्यटक पहुंचते हैं तथा यहां मखमली घास पर मक्खन तथा मट्ठा की होली खेलते हैं। मक्खन की होली खेलने के चलते अंढूड़ी उत्सव को बटर फेस्टिवल के रूप में भी जाना जाता है। 

    गर्मी के मौसम में क्षेत्र के ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्याली क्षेत्रों में चले जाते हैं और अब इस मेले को मनाने के बाद वापस अपने गांव को लौट जाते हैं, लेकिन लौटने से पहले प्रकृति का शुक्रिया अदा करने के लिए मेले का आयोजन करते हैं, जिसमें प्रकृति की पूजा अर्चना की जाती है। रैथल गांव निवासी सुरेश रतूड़ी ने बताते हैं कि सदियों से रैथल व आस-पास के ग्रामीण गर्मियों की शुरुआत में ही अपने मवेशियों के साथ द्यारा बुग्याल की छानियों में जाते हैं। जहां ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ पूरी गर्मियां बिताते हैं।

    मानसून की शुरुआत में ठंड बढ़ने से ग्रामीणों का वापस लौटने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। बुग्याल में पहुंचकर मवेशियों के दूध में अप्रत्याशित वृद्धि होती है तथा ग्रामीणों के घरों में संपन्नता आती है। इस लिए हर वर्ष अगस्त में इस पर्व को प्रकृति देवता की पूजा के रूप में मनाते हैं। द्यारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा कहते हैं कि पहले इस होली को गाय के गोबर से भी खेलते थे, लेकिन अब इस अंढूड़ी उत्सव को पर्यटन से जोड़ने के लिए ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठा की होली खेलना शुरू किया।

    मक्खन की होली खेलने के चलते अंढूड़ी उत्सव को बटर फेस्टिवल के रूप में भी जाना जाता है। इस उत्सव में ग्रामीण प्रकृति देवता की पूजा करते हैं तथा प्रकृति देवता का शुक्रिया कहते हैं कि इस प्रकृति के कारण ही हमारे मवेशी स्वस्थ और दूध में वृद्धि होने से घरों में भी संपन्नता आई है। बटर फेस्टिवल मेले के समापन के बाद अब ग्रामीण अपने मवेशियों को गांव में ले आते हैं।

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