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    विराट हिमालय की बेटी हैं ये पर्वतारोही, कठिन डगर पर चल नापी सफलता की राह

    पर्वतारोही बछेंद्री पाल का जीवन हिमालय जैसा ही विराट है। गांव की विकटता से निकलकर बछेंद्रीपाल ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह किया।

    By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 29 Jan 2019 02:59 PM (IST)
    विराट हिमालय की बेटी हैं ये पर्वतारोही, कठिन डगर पर चल नापी सफलता की राह

    उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। भारत की पहली एवरेस्ट विजेता महिला पद्मभूषण बछेंद्री पाल का जीवन हिमालय जैसा ही विराट है। साधारण परिवार में जन्मीं बछें द्रीपाल का गांव नाकुरी जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 14 किमी दूर है। गांव की विकटता से निकलकर बछेंद्रीपाल ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह किया और कई अभावग्रस्त युवाओं को एवरेस्ट आरोहण भी कराया। वर्तमान में बछेंद्री टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। 

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    बछेंद्री का जन्म हंसा देवी और किशन सिंह के घर 24 मई 1954 को हुआ। 12 साल की उम्र में उन्हें पहली बार तब पर्वतारोहण का मौका मिला, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की ट्रेकिंग की। बीएड करने के बाद बछेंद्री ने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। लेकिन, पर्वतारोहण की ललक के कारण नौकरी ज्यादा दिन नहीं चली और उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) उत्तरकाशी में पर्वतारोहण के बेसिक व एडवांस कोर्स में दाखिला ले लिया। यहां से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में बछेंद्री ने गंगोत्री हिमालय की गंगोत्री प्रथम (6672 मीटर) और रुद्रगैरा (5819 मीटर) चोटियों का आरोहण किया। 

    पर्वतारोही का पेशा अपनाने की वजह से बछेंद्री को परिवार और रिश्तेदारों का विरोध भी सहना पड़ा, लेकिन उन्होंने सिर्फ अपने मन की सुनी। 1984 में भारत के एवरेस्ट अभियान में बछेंद्री का चयन हुआ और अपनी टीम के साथ उन्होंने 23 मई 1984 को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर 8848 मीटर ऊंचे एवरेस्ट शिखर पर तिरंगा फहराया। एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाली वह भारत की पहली और दुनिया की पांचवीं महिला बनीं। इस उपलब्धि पर टाटा कंपनी ने टाटा एडवेंचर फाउंडेशन का गठन कर इसकी जिम्मेदारी बछेंद्री को सौंपी। इसके बाद वह जरूरतमंद प्रतिभावान युवाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देने लगीं। साथ ही भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर होते हुए कराकोरम तक हिमालय की चार हजार किमी लंबी ट्रेकिंग की। 

    अभियान पर लिखी किताब 

    बछेंद्री ने अपने जीवन के सफर पर 1989 में 'एवरेस्ट-माई जर्नी टू द टॉप' किताब भी लिखी। इसमें उन्होंने बताया कि एक ग्रामीण किसान परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने कैसे अपने सपनों को आकार दिया। 

    बड़े सपने देखें 

    पद्मभूषण बछेंद्रीपाल कहती हैं कि हौसले बुलंद हों तो सफलता की राह में विपरीत परिस्थितियां खास मायने नहीं रखतीं। छोटे-से गांव नाकुरी से लेकर माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने तक उन्हें तमाम दुश्वारियां झेलनी पड़ीं, लेकिन उन्होंने अपने हौसले बुलंद रखे। कहती हैं, टाटा स्टील कंपनी के साथ जुडऩे के बाद उन्होंने सैकड़ों युवक-युवतियों को बड़े सपने देखना सिखाया और उन्हें पूरा करने को मेहनत करना भी। 

    गंगा के प्रति गहरी श्रद्धा 

    गंगा का मायका कहे जाने वाले उत्तरकाशी की बेटी बछेंद्री की गंगा के प्रति अटूट श्रद्धा है। इसे लेकर बछेंद्री ने 1994 में गंगा में हरिद्वार से कोलकाता तक 2500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। इसके साथ ही 2015 में गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक स्वच्छता अभियान चलाया। अक्टूबर 2018 में गंगा की स्वच्छता को लेकर नमामि गंगे अभियान के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए हरिद्वार से पटना तक राङ्क्षफ्टग अभियान चलाया गया था। इस 40-सदस्यीय अभियान दल का नेतृत्व बछेंद्री ने ही किया। 

    यह मिले सम्मान 

    भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन से पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक (1984), पद्मश्री (1984), अर्जुन पुरस्कार (1986), कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रुप अवार्ड (1986), नेशनल एडवेंचर अवार्ड (1994), उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान (1995), एचएनबी गढ़वाल विवि से डॉक्टरेट की मानद उपाधि (1997), संस्कृति मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार का प्रथम वीरांगना लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय सम्मान (2013-14) व पद्मभूषण (2019) 

    निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट कहते हैं कि बछेंद्री को पद्मभूषण सम्मान मिलना निम के लिए गौरव की बात है। वह जब भी उत्तरकाशी आती हैं, निम में प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं को प्रोत्साहित करती हैं। निम से कोर्स करने वालों को बछेंद्री के संघर्ष के बारे बताया जाता है।

    निम के पूर्व प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल का कहना है कि 1984 में भारत की प्रथम महिला एवरेस्टर बनकर बछेंद्री ने यह सिद्ध कर दिया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। यदि महिलाएं ठान लें तो कठिन से कठिन लक्ष्य भी प्राप्त कर सकती हैं।

    एवरेस्ट विजेता पूनम राणा कहती हैं कि उत्तरकाशी में स्थित टाटा फाउंडेशन के कैंप में बछेंद्री मैम ने आसरा दिया। लेकिन, इसके साथ ही मैम ने मुझे हौसला, साहस और सहयोग दिया और एक बेसहारा एवं अनाथ को एवरेस्ट फतह कराया।

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