दयारा बुग्याल में खेली गई दूध, मक्खन और मट्ठे की अनोखी होली, लोगों में दिखा बटर फेस्टिवल का क्रेज
उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में 11 हजार फीट की ऊंचाई पर दूध मक्खन और मट्ठे की अनूठी होली अंढूड़ी हर्षोल्लास से मनाई गई। ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊं की थाप पर रासौ-तांदी नृत्य किया और एक दूसरे के साथ दूध-मक्खन की होली खेली। राधा-कृष्ण बने कलाकारों ने मटकी फोड़कर पर्व का शुभारंभ किया।

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी । समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में दूध, मक्खन और मट्ठे की अनूठी होली का लोकपर्व अंढूड़ी हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल-दमाऊं की थाप पर रासौ-तांदी नृत्य करते हुए एक दूसरे के साथ दूध, मक्खन और मट्ठे की होली खेली।
शनिवार दोपहर करीब 12 बजे पर्व का शुभारंभ देव डोलियों की पूजा-अर्चना के साथ हुआ। इस दौरान राधा-कृष्ण बने कलाकारों के दूध-मक्खन से भरी मटकी फोड़ते ही पर्व का शुभारंभ हुआ और लोक वाद्य यंत्रों की थाप पर थिरकते हुए ग्रामीणों ने दूध-मक्खन की होली का आनंद उठाया।
क्या है बटर फेस्टिवल की परंपरा
आयोजक दयारा पर्यटन उत्सव समिति के संयोजक मनोज राणा ने दैनिक जागरण को बताया कि अंढूड़ी उत्सव, जिसे बटर फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक परंपराओं को संरक्षित रखने एवं भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं की याद में मनाया जाता है। इस उत्सव के आयोजन पीछे प्रकृति का आभार जताने की भावना भी रहती है।
ग्रामीणों के गोवंशीय पशु दयारा बुग्याल में चरते हैं। वहां की हरी घास का सेवन करके के ग्रामीणों के घर में दूध-मक्खन का भंडार होता है, जिसके चलते वह उस भंडार का एक अंश देवी-देवताओं व भगवान कृष्ण को अर्पित करते हैं।
बता दें कि इस पर्व का आयोजन गत अगस्त माह में 15-16 अगस्त को होना था, लेकिन धराली आपदा के चलते इस पर्व का आयोजन निर्धारित समय पर नहीं हो पाया, जो कि अब एक करीब 21 दिन बाद हुआ है। जो कि आपदा के मध्येनजर बेहद सूक्ष्म ढंग से आयोजित किया गया है। साथ आपदा में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी।
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