केलाखेड़ा अस्पताल पर छापामारी, खामियां मिलने पर किया सील, राजस्व एवं पुलिस विभाग की संयुक्त टीम
स्वास्थ्य राजस्व और पुलिस विभाग की संयुक्त टीम ने केलाखेड़ा के हिंद हॉस्पिटल पर छापा मारा। अभिलेखों में अनियमितताएं डॉक्टरों की गैरमौजूदगी मिलने पर अस्पताल सील कर दिया गया। टीम को मौके पर कई खामियां मिलीं साथ ही बिना फार्मासिस्ट के मेडिकल स्टोर चलता मिला। स्थानीय लोगों ने बिना पंजीकरण के अस्पताल संचालन पर सवाल उठाए हैं। पहले भी ऐसी कार्रवाई हुई है पर नतीजा कुछ नहीं निकला।

संवाद सूत्र, केलाखेड़ा (बाजपुर)। स्वास्थ्य, राजस्व एवं पुलिस विभाग की संयुक्त टीम ने सरकड़ी रोड पर स्थित हिंद हास्पिटल में छापेमारी की। निरीक्षण के दौरान अधूरे अभिलेख, पंजीकृत चिकित्सकों की गैरमौजूदगी और संचालन में अनियमितताएं मिलने पर टीम ने अस्पताल को तत्काल प्रभाव से सील कर दिया है।
बुधवार को उपजिला चिकित्सालय बाजपुर के अधीक्षक डा.पीडी गुप्ता, तहसीलदार बाजपुर अक्षय कुमार भट्ट और प्रभारी थानाध्यक्ष केलाखेड़ा देवेंद्र सिंह राजपूत के नेतृत्व में यह कार्रवाई की गई। टीम के पहुंचते ही मौके से दो-तीन लोग पिछले दरवाजे से फरार हो गए। वहीं अस्पताल स्टाफ ने चिकित्सक के छुट्टी पर होने की जानकारी दी।
निरीक्षण के दौरान टीम ने अस्पताल से जुड़े दस्तावेजों में कई खामियां पाईं। साथ ही अस्पताल परिसर में मेडिकल स्टोर भी संचालित होता पाया गया, जहां मौके पर कोई फार्मासिस्ट मौजूद नहीं था, जबकि बड़ी मात्रा में दवाइयों का जखीरा स्टाक में मिला। महिला स्टाफ से पूछताछ के दौरान भी कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
एक स्टाफ ने दावा किया कि उसने जीएनएम (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) का कोर्स किया है, लेकिन जब कालेज का नाम पूछा गया तो वह जानकारी देने में नाकाम रही। अस्पताल के अभिलेखों की जांच में पता चला कि 23 सितंबर को तीन मरीजों का इलाज "सलमा" नामक महिला द्वारा किया गया था, परंतु उनकी चिकित्सा डिग्री से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौके पर नहीं मिले।
बिना पंजीकृत चिकित्सकों के कैसे हो रहा अस्पतालों का संचालन
स्थानीय लोगों ने सवाल उठाया है कि आखिर ऐसे अस्पताल लंबे समय तक बिना पंजीकृत चिकित्सकों के संचालन कैसे कर रहे हैं और विभाग समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं करता। यह गंभीर लापरवाही मरीजों की जान को खतरे में डाल सकती है।
पूर्व में भी इसी इलाके में छापामारी की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन कार्यवाही का नतीजा शून्य रहा है। करीब तीन वर्ष पहले एक गर्भवती महिला की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अस्पताल का निरीक्षण किया था, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
वहीं, चार वर्ष पहले भी इसी सड़क पर एक अन्य अस्पताल सीज किया गया था, परंतु आगे की कार्यवाही ठंडे बस्ते में चली गई। इस बार की कार्रवाई के बाद एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि कहीं विभागीय उदासीनता या राजनीतिक दबाव के चलते ऐसे अस्पताल फल-फूल तो नहीं रहे है।
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