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    मिंट्टी के बिना होगा फल-सब्जी उत्पादन

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    Updated: Sun, 24 Apr 2016 05:02 PM (IST)

    राहुल पांडेय , रुद्रपुर औद्योगीकरण व जनसंख्या में तेजी से वृद्धि का असर प्रकृति पर भी पड़ा है। दे

    राहुल पांडेय , रुद्रपुर

    औद्योगीकरण व जनसंख्या में तेजी से वृद्धि का असर प्रकृति पर भी पड़ा है। देश में उपजाऊ जमीन व पानी की कमी से कृषि उत्पादन भी कम हो रहा है। ऐसे में आने वाले समय में बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए ही कृषि वैज्ञानिकों ने खेती की नई तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया है। विकसित देशों की तर्ज पर भारत में भी मृदा विहीन खेती यानी हाइड्रोपोनिक तकनीक को अपनाया जा रहा है। यह तकनीक फिलहाल सब्जी व फल उत्पादन में अधिक कारगर सिद्ध हो रही है।

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    उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद, हल्दी के वैज्ञानिकों ने इस पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। परिषद के निदेशक डॉ. एमके नौटियाल व वैज्ञानिक सुमित पुरोहित बताते हैं कि वर्तमान मे जमीन में सब्जी व फलों की खेती करने से अधिकांश फसलें बीमारियों की चपेट में आ रही हैं परंतु इस तकनीक में मिट्टी के स्थान पर लकड़ी के बुरादे, नारियल की जटा के बुरादे व बजरी का प्रयोग किया जा रहा है। इस विधि में कलम पद्धति से पौधे को जलप्रवाह के बीच अंकुरित किया जाता है। मिट्टी का प्रयोग न होने से पौधे में जमीन संबंधी बीमारियां जैसे फंगस, वायरस व नेमोटेड नहीं होते हैं। यह खेती पालीहाउस, घर की छत या बालकनी में कम जगह में की जा सकती है। इसके लिए प्लास्टिक के गोल बेड पर नारियल का बुरादा, चीड़ की पत्तियों व लकड़ी के बुरादे में वर्मी कंपोस्ट मिलाकर क्यारियां तैयार की जाती हैं। निराई,-गुड़ाई से भी निजात मिलती है। पानी की खपत कम होने के साथ ही उत्पादन भी कई गुना अधिक मिलता है।

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    इनकी खेती होगी संभव

    रुद्रपुर : नई तकनीक से पालक, धनियां, गोभी, टमाटर, मिर्च, स्ट्राबेरी, पत्तेदार सब्जियां, आलू, ल्यूटस, पाशले, खीरा, बेमौसमी फल,-सब्जी, विदेशी फल,-सब्जी उगाने के साथ ही इनकी पौघ भी उगायी जा सकती है।

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    पर्वतीय क्षेत्रों के लिए कारगर

    रुद्रपुर : उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों जहां जमीन की कमी है, वहां हाइड्रोपोनिक खेती अधिक कारगर व रोजगारपरक हो सकती है। डॉ. नौटयाल का कहना है कि पर्वतीय कृषक इस तकनीक को अपनाकर अपनी खेती में आमूल-चूल परिवर्तन कर सकते हैं। वर्तमान में कृषकों को इस तकनीक की जानकारी नहीं है। राज्य जैव परिषद वर्तमान में राज्य में इस खेती का प्रचार-प्रसार कर रही है।

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    इन पर भी हो रहा है शोध

    उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी पारिषद के वैज्ञानिक टिशु कल्चर से अखरोट, देसी चेरी, पिकन नट, तिमूर, बड़ी इलायची, जाटमासी, चाय ट्री का मीडिया तैयार कर हाइड्रोपोनिक विधि से पौध तैयार कर रहे हैं। इस विधि से तैयार पौध का जमीन में जमाव सौ फीसद होता है।

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    औद्योगीकरण व ग्लोबल वार्मिग का असर धरती पर तेजी से पड़ रहा है। इससे धरती से उत्पादन भी कम मिलने लगा है। हाइड्रोपोनिक विधि तमाम फसलों को बीमारियो से बचान के साथ ही उत्पादन बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होगी।

    -डॉ. एमके नौटियाल, निदेशक, उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद