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धाíमक के साथ रमणीक स्थल है सिद्धपीठ ज्वालामुखी

संवाद सहयोगी नई टिहरी ज्वालामुखी देवढुंग सिद्धपीठ प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है। यह सिद्धपीठ घ्

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 05:53 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 05:53 PM (IST)
धाíमक के साथ रमणीक स्थल है सिद्धपीठ ज्वालामुखी
धाíमक के साथ रमणीक स्थल है सिद्धपीठ ज्वालामुखी

संवाद सहयोगी, नई टिहरी : ज्वालामुखी देवढुंग सिद्धपीठ प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है। यह सिद्धपीठ घने जंगलों के मध्य स्थित है। इस मंदिर के प्रति क्षेत्रवासियों की कितनी श्रद्धा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर को नया स्वरूप देने के लिए ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित किया और अभी तक डेढ़ करोड़ से अधिक मंदिर पर खर्च हो चुका है। बाहर से काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

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सिद्धपीठ ज्वालामुखी देवढुंग का मंदिर काफी पुराना हो गया था, जिसको देखते हुए ग्रामीणों ने मंदिर के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया और ग्रामीणों के सहयोग से अब मंदिर नए डिजाइन में तैयार किया जा रहा है। यह धाíमक के साथ-साथ रमणीक स्थल भी है। सिद्धपीठ के बारे में बताया जाता है कि सदियों पूर्व पुजारी भुजंगी भट्ट के साथ देवी हिमाचल के कांगड़ा से घूमते हुए चौरी नामक स्थान पर पहुंची, जहां देवी ने विश्राम किया। इसके बाद देवी यहां से प्रस्थान कर विनयखाल के देवढुंग स्थान पर पहुंची। यह स्थान देवी को पसंद आ गया और देवी ने यहीं पर रूकने का मन बनाया। तभी से यह स्थान ज्वालामुखी देवढुंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां के पुजारी तिसरियाड़ा गांव के भट्ट लोग हैं। यह स्थान चीड़ व देवदार के जंगल के मध्य स्थित है। मंदिर के दर्शन को वर्षभर श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस स्थान से आसपास की रमणीक पहाड़ियां व जंगल दिखाई देते हैं। अब जल्द ही यह मंदिर नए स्वरूप में नजर आएगा। यहां पर चैत्र नवरात्रि पर मेले का भी आयोजन होता है, जिसकी तैयारी भी पूरी कर ली गई है।

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नौ दिवसीय मेला छह अप्रैल से

सिद्धपीठ ज्वालामुखी में चैत्र नवरात्रि पर हर साल भव्य मेले का आयोजन होता है। इस बार छह अप्रैल से यहां पर मेला शुरू होगा। मंदिर समिति ने नौ दिवसीय मेले की तैयारी पूरी कर ली है। मेले के लिए बाहर से दुकानदार भी यहां पहुंचना शुरू हो गये हैं। साथ ही गांव के जो लोग बाहर रहते हैं वह भी मेले के लिए गांव पहुंच गए हैं। मेले के पहले दिन तिसरियाड़ा गांव में देवी की मूíत ढोल-नगाड़ों के साथ मंदिर परिसर में पहुंचेगी। - ऐसे पहुंचे मंदिर तक

जिला मुख्यालय से विनयखाल तक नियमित बसों का संचालन होता है। यहां से करीब एक किमी की चढ़ाई चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा घनसाली व चमियाला बाजार से छोटे वाहनों से भी यहां पहुंचा जा सकता है।


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