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पिता की दी हुर्इ सीख से यह महिला संवार रही बच्चों का भविष्य

टिहरी जिले के चंबा में समीरा रावत पिता की दी हुर्इ सीख से बच्चों की खेवनहार बनी है। खाड़ी गांव की समीरा ने एक स्कूल खोला है, जहां वह बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दे रही है।

By raksha.panthariEdited By: Published: Fri, 22 Sep 2017 04:14 PM (IST)Updated: Fri, 22 Sep 2017 10:44 PM (IST)
पिता की दी हुर्इ सीख से यह महिला संवार रही बच्चों का भविष्य
पिता की दी हुर्इ सीख से यह महिला संवार रही बच्चों का भविष्य

चंबा, [रघुभाई जड़धारी]: पिता से मिली सीख और समाज में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की धुन में सवार खाड़ी गांव की महिला समीरा रावत सैकड़ों गरीब बच्चों की खेवनहार बन गई हैं। परिवर्तन शिक्षण केंद्र के नाम से संचालित स्कूल में आज क्षेत्र के बच्चों को न केवल किताबी शिक्षा बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी दिया जा रहा है। 

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आम छात्राओं की भांति ही नरेंद्रनगर ब्लॉक के अंतर्गत खाड़ी गांव की रहने वाली समीरा रावत ने भी एमए, एलएलबी और एमएड की शिक्षा हासिल की। इसके बाद उनके पास नौकरी के भी प्रस्ताव थे, लेकिन समीरा रावत स्कूली जीवन से ही पिता समाजसेवी प्रताप शिखर के साथ सामाजिक-रचनात्मक कार्यों में भाग लेती थीं। इसके अलावा पिता से इनको हमेशा से ही समाज के लिए कुछ करने की सीख मिली थी। यही कारण रहा कि समीरा ने शिक्षा को समाज में बदलाव लाने का माध्यम बनाया। इसके बाद सबसे पहले बच्चों के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। 

इस क्रम में उन्होंने दो साल पहले महज पांच बच्चों से परिवर्तन शिक्षण केंद्र के नाम से स्कूल शुरू किया। आज इस स्कूल में 105 की संख्या पहुंच गई है। उनका खुद का दस वर्षीय बेटा भी इसी स्कूल में पढ़ता है। समीरा के स्कूल की खास बात यह है कि यहां बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाया जाता है। 

दूसरों से अलग है यह स्कूल   

इस स्कूल में बच्चों को विषयगत जानकारी के अलावा पर्यावरण, खेती, कला, संस्कृति आदि की जानकारी भी दी जाती है। जब कृषि कार्यों का सीजन होता है तो उस समय कुछ घंटे उन्हें खेतों में ले जाकर यह सिखाया जाता है कि खेती कैसे की जाती है। इसके अलावा जंगलों में ले जाकर पेड़-पौधों, जड़ी-बूटी, पशु-पक्षी, नदी तालाब आदि की जानकारी भी दी जाती है। 

ऐसा करने का उद्देश्य 

इस तरह के स्कूल और शिक्षा का उद्देश्य यह है कि बच्चे मशीन बनकर न रह जायें। उन्हें केवल विषय की ही जानकारी न हो। वे प्रकृति को समझें, समाज को जानें, रिश्तों को पहचाने और देश के जिम्मेदार नागरिक बन सकें। उनमें संवेदनशीलता हो, जिम्मेदारी का भाव हो। इसलिए उन्हें ऐसे माहौल में शिक्षा दी जा रही हैं कि वे शिक्षा को बोझ न समझें। वे किताबों को बोझ न समझें। 

शिक्षिका और समाजसेवी मीरा रावत का कहना है कि समाज में बदलाव लाने और हर बच्चे को शिक्षा मिले इसलिए यह कार्य शुरू किया है। उनके पिताजी चाहते थे कि वह कुछ अलग और समाज के हित का कार्य करें तो उन्होंने शिक्षा को चुना। इस काम में समाज सेवा से जुड़े लोगों का सहयोग भी मिलता है। 

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