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    पितरों को 'सांसों' में जिंदा रखने का अनोखा अभियान, उत्‍तराखंड के 38 गावों के रोपे जाएंगे 7600 पौधे

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 04:45 PM (IST)

    टिहरी गढ़वाल के 38 गांवों में श्राद्ध पक्ष में पितरों की स्मृति में 7600 पौधे रोपे जा रहे हैं। ग्राम समाज की भूमि पर पितृवन तैयार किया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पितरों के निमित्त पौधा लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता है और पर्यावरण भी संरक्षित रहता है। इस पहल में उद्यान और वन विभाग भी सहयोग कर रहे हैं।

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    चंबा विकासखंड के गांव में सामूहिक पौधारोपण करती महिलाएं। ग्रामीण क्षेत्र विकास समिति

    मधुसूदन बहुगुणा, जागरण नई टिहरी। पितृपक्ष में इन दिनों जहां बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल और हरिद्वार के नारायणी शिला में श्राद्ध के लिए के जरिये लोगों का तांता लगा है, वहीं नई टिहरी के 38 गांवों में पितरों की स्मृति में पौधारोपण किया जा रहा है। प्रत्येक गांव में 200 पौधे रोपने का संकल्प लिया गया है।

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    7600 पौधों के लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 1800 पौधे रोपे जा चुके हैं। गांव में जहां ये पौधे लगाए जा रहे हैं उस क्षेत्र को पितृ वन नाम दिया गया है। ग्रामीणों की यह पहल पितरों के स्मरण का माध्यम बन रही है, वहीं इसे प्रकृति के संरक्षण की दिशा में उठाया गया कदम भी माना जा रहा है।

    पितरों के नाम पर ग्राम समाज की भूमि को हरा-भरा करने के उद्देश्य से तीन वर्ष पूर्व यह पौधारोपण की पहल शुरू की गई थी। शुरू में चंबा विकासखंड के पांच गांवों को इससे जोड़ा गया। धीरे-धीरे इसे अभियान के रूप में लिया गया और गांवों में पितृ वन विकसित करने संकल्प लिया गया। ग्रामीण क्षेत्र विकास समिति इसके लिए आगे आई। 38 गांवों में पितृ वन बनाए गए। किसी भी पर्व, बच्चों के जन्म दिवस आदि पर ग्रामीण पौधारोपण करते रहे हैं।

    समिति ही ग्रामीणों को पौध उपलब्ध कराती है। ग्रामीणों के इस प्रयास से प्रभावित होकर उद्यान विभाग, वन विभाग भी पौध उपलब्ध करवा रहा है। इस बार पितृ पक्ष में भावनात्मक लगाव के दृष्टिगत काफल, आड़ू, खुमानी, नींबू, सहतूत, अमरुद, पीपल, बांज, बुरांश के पौधे लगाने का संकल्प लिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि ये पौधे वृक्ष बनकर फल, छाया, चारा रूपी आशीर्वाद देंगे और प्रकृति का संरक्षण भी हो सकेगा।

    इन गांवों में चलाया जा रहा पितृवन कार्यक्रम

    बसाल गांव, सौंदकोटी, कटाली, गुनियाल गांव, थान, चौपड़ियाल गांव, स्यूटा छोटा, बिड़कोट, कोटीगाड, डंडासली, डार्गी, हडम, चुरेड़धार, धारकोट, दिखोल गांव, श्रीकोट, लामकोट, उसुरिधार, जड़ीपानी, साबली, बीड़, कोट, डोभाल गांव, पुरसोल गांव, नैल, गाजणा, दौल, हंसवाण गांव, मज्याड़ गांव, कंडाखोली, रानीचौरी, बटखेम, देवरी तल्ली, देवरी मल्ली, सुदाणा, जौल, चोपड़ियाल गांव, बौर, डंडासली, सुदाणा गांव।

    पेड़ को देव तुल्य मना जाता है। पितरों के निमित पौधा लगाने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही पर्यावरण भी संरक्षित रहता है। इस नेक कार्य के लिए समिति भी ग्रामीणों की मदद करती है। - सुशील बहुगुणा, अध्यक्ष, ग्रामीण क्षेत्र विकास समिति, रानीचौरी।

    बदरीनाथ धाम में भी हरियाली बिखेर रहा पितृ वन

    गोपेश्वर: वृक्ष विहीन बदरीनाथ धाम में पितृ वन की परिकल्पना साकार हो रही है। देवदर्शनी से पहले हेलीपेड तक एक हेक्टेयर भूमि में वन विभाग की ओर से पितृ वन विकसित किया गया है। अलकनंदा भूमि संरक्षण वन प्रभाग ने वर्ष 2010 में बदरीनाथ धाम में पितृ वन की शुरुआत की थी।

    वर्तमान में 400 से अधिक पौधे पेड़ का आाकार ले चुके हैं। इनमें देवदार, केले के पेड़ शामिल हैं। वन के विकसित होने से बदरीनाथ के प्रवेश द्वार पर कचनगंगा से देवदर्शनी तक हरा भरा जंगल दिखने से यात्रियों सहित आम लोगों को सुकुन मिलता है। बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ सर्वेश कुमार दूबे का कहना है कि बदरीनाथ को हरा भरा करने के लिए मुहिम जारी है।