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    Kedarnath: 2013 जैसा मंजर था वह तो… जंगल को ओर जान बचाकर भागे यात्रियों ने सुनाई आपबीती

    Updated: Fri, 02 Aug 2024 10:53 PM (IST)

    बुधवार रात भी केदारनाथ पैदल मार्ग पर लिनचोली से लेकर रामबाड़ा तक और भीमबली में हुई अतिवृष्टि ने वर्ष 2013 में आई आपदा की याद ताजा कर दी। अतिवृष्टि के चलते जंगल की ओर भागकर जान बचाने वाले यात्रियों ने आपबीती सुनाई और कहा कि उनकी जान बाबा की कृपा से बच पाई। बता दें कि केदारघाटी बेहद संवेदनशील है। अतिवृष्टि व भूस्खलन की घटनाएं यहां अमूमन होती रहती हैं।

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    केदारनाथ पैदल मार्ग पर रास्ते ध्वस्त होने से फंसे यात्रियों का रेस्क्यू करते एसडीआरएफ के जवान। सूवि

    बृजेश भट्ट, रुद्रप्रयाग। केदारनाथ धाम जाने वाले और दर्शन कर लौटने वाले यात्रियों पर बुधवार की रात भारी गुजरी। अतिवृष्टि के चलते गौरीकुंड समेत पैदल मार्ग के पड़ावों पर ठहरे यात्रियों ने जंगल की ओर भागकर जान बचाई। 

    वर्षा और कड़ाके की ठंड में वे पूरी रात खुले आसमान के नीचे ठिठुरते रहे। सुबह होने पर एनडीआरएफ समेत पुलिस-प्रशासन की टीमों ने उन्हें सुरक्षित निकाला। यात्रियों का कहना था कि यह भी वर्ष 2013 के जैसा ही मंजर था। बस! बाबा की कृपा से जैसे-तैसे जान बच गई। 

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    2013 में आई आपदा की याद ताजा

    आपदा की दृष्टि से केदारघाटी बेहद संवेदनशील है। अतिवृष्टि व भूस्खलन की घटनाएं यहां अमूमन होती रहती हैं। बुधवार रात भी केदारनाथ पैदल मार्ग पर लिनचोली से लेकर रामबाड़ा तक और भीमबली में हुई अतिवृष्टि ने वर्ष 2013 में आई आपदा की याद ताजा कर दी। 

    इस बार भी अधिकांश यात्री जान बचाने के लिए जंगल की ओर भागे और पूरी रात भीगते-ठिठुरते रहे। वर्ष 2013 की तरह रामबाड़ा क्षेत्र में भी अतिवृष्टि ने तबाही मचाई। आस-पास की पहाड़ियों से बहने वाले झरनों के रौद्र रूप धारण करने से मंदाकिनी नदी का जलस्तर इतना अधिक बढ़ गया कि गौरीकुंड में लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा। तप्तकुंड क्षेत्र को तो मंदाकिनी पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया।

    मैं जंगल की ओर भागा…

    दिल्ली के द्वारका निवासी ललित भी गौरीकुंड में ठहरे हुए थे। उन्हें गुरुवार सुबह केदारनाथ दर्शन के लिए जाना था। बकौल ललित, 'रात नौ बजे के आसपास होटल मालिक ने तेजी से मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया और मुझे ऊपर जंगल की ओर भागने के लिए कहा। यह सुन मैं कमरे से बाहर निकला तो मंदाकिनी का विकराल रूप देख कांप उठा। बिना कुछ सोचे अपना पूरा सामान छोड़ मैं तेज वर्षा में ही जंगल की ओर भागा। कई और यात्री भी मेरे साथ थे। पूरी रात जंगल में भीगते हुए गुजारी और सुबह होने पर वापस होटल में पहुंचा। तब मंदाकिनी का जलस्तर काफी घट गया था। इसके बाद एनडीआरएफ की मदद से सोनप्रयाग पहुंचा। 

    जंगल में भीगते हुए गुजारी रात

    नेपाल के चित्तौड़गढ़ जिले से आए तारकेश्वर सिंह बताते हैं कि उनका बाबा के दर्शन का सपना पूरा नहीं हो पाया। मंदाकिनी का रौद्र रूप देख अन्य यात्रियों के साथ उन्होंने भी बुधवार की रात जंगल में भीगते हुए गुजारी और सुबह एनडीआरएफ की मदद से सोनप्रयाग पहुंचा। 

    झारखंड के सुनील कुमार के मुताबिक, यह आपदा दिल दहला देने वाली थी। भीमबली में बादल फटने के बाद जो तबाही मची, उसके बारे में सोचकर ही तन में सिहरन दौड़ जाती है।

    बकौल सुनील, 'जब मैं भीमबली से ऊपर जंगल की ओर भागा, तब मेरे साथ लगभग दस लोग थे। सब पूरी रात एक चट्टान की आड़ में बैठे रहे। ठंड और वर्षा के बीच नींद आने का तो सवाल ही नहीं उठता था। सुबह पुलिस-प्रशासन की टीम ने हमें सुरक्षित निकाला। बाबा के दर्शन तो खैर किस्मत में थे ही नहीं, गनीमत है कि जान बच गई।' 

    गौरीकुंड व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष मायाराम गोश्वामी कहते हैं कि इस आपदा ने 11 वर्ष पहले की केदारनाथ त्रासदी की याद ताजा कर दी। मंदाकिनी नदी अगर कुछ घंटे और अपने विकराल रूप में ही बहती रहती तो गौरीकुंड ही नहीं, सोनप्रयाग में भी भारी जनहानि हो सकती थी। हालांकि, नुकसान काफी हुआ है।

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