आखिर क्यों केदारघाटी के लोग हर साल छह माह के लिए छोड़ देते हैं अपने घर! नम आंखों से हुए विदा
Kedarghati केदारघाटी के भेड़पालक उच्च हिमालयी क्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गए हैं । आने वाले छह महीने तक वे सुरम्य मखमली बुग्यालों में समय बिताएंगे। भेड़पालकों के लिए यह प्रवास किसी साधना से कम नहीं है। उन्हें प्रकृति की कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही वे कई पौराणिक और धार्मिक परंपराओं का निर्वहन भी करते हैं ।

संवाद सहयोगी जागरण, रुद्रप्रयाग। Kedarghati: केदारघाटी में मौसम सुहावना होते हुए पशुपालक उच्च हिमालय की ओर रवाना हो गए हैं। आने वाले छह महीनो तक पशुपालक घरों से दूर हिमालय की तलहटी में समय बिताएंगे।
सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत केदारघाटी के सीमांत गांवों के भेड़पालक छह माह के लिए सुरम्य मखमली बुग्यालों के समय बिताएंगे। बड़ी संख्या में भेड़पालकों के गांवों से विदा होने पर ग्रामीणों ने भावुक क्षणों के साथ भेड़पालकों को विदा किया।
अराध्यम देव भी साथ होते हैं रवाना
भेड़पालकों के सुरम्य मखमली बुग्यालों के लिए रवाना होने पर उनके अराध्यम देव भी भेड़पालकों के साथ रवाना होते हैं। देवकडी में भेड़पालकों के अराध्य विराजमान रहते हैं। छह माह बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़पालकों का जीवन किसी साधना से कम नहीं रहता है। उच्च हिमालय में लगातार मौसम अनुकूल नहीं होता है। भारी बारिश, बर्फबारी से भेड़ों व स्वयं को बचाना भी काफी मुश्किल भरा रहता है।
हिमायल की तलहटी पर स्थित बुग्यालों में प्रवास के दौरान भेड़पालक अनेक परम्पराओं का निर्वहन भी करते हैं। भेड़पालक दीपावली के दौरान ही गांवों को लौटते हैं।
मद्महेश्वर घाटी के बुरूवा गांव के भेड़पालक बीरेन्द्र सिंह धिरवाण ने बताया कि चैत्र में फुलारी महोत्सव व घोघा विसर्जन के बाद भेड़पालक हिमालयी क्षेत्रों के लिए रवाना होन शुरू हो जाते हैं। निवर्तमान प्रधान सरोज भट्ट ने बताया कि केदार घाटी के सीमान्त गांवों में भेड़पालन की परम्परा सदियों से चली आ रही है। हालांकि समय के साथ भेड़पालकों की संख्या में भारी गिरावट आई है।
छह माह बुग्यालों का प्रवास किसी साधना से कम नहीं
मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भट्ट का कहना है कि भेड़पालकों का छह माह बुग्यालों का प्रवास किसी साधना से कम नहीं है। क्योंकि बुग्यालों में कई तरह की जटिल समस्याएं आती हैं। आंधी तूफान, बर्फबारी व ओलाबृष्टि से काफी जानवरों की जान चली जाती है। भेड़पालक व प्रकृति एक दूसरे के पूरक है तथा भेड़ों के बुग्यालों में विचरण करने से बुग्यालों की सुन्दरता बढ़ती है।
भेड़पालक छह माह बुग्यालों में प्रवास के दौरान सिद्धवा, विधवा व क्षेत्रपाल की नित पूजा-अर्चना करते हैं। दाती व लाई त्यौहार प्रमुखता से मनाते हैं। यदि प्रदेश सरकार भेड़पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने की पहल करती है तो युवाओं को भी भेड़पालन व्यवसाय में स्वरोजगार के अवसर मिल सकते हैं। बुग्याल प्रवास के दौरान भेड़पालकों को अनेक पौराणिक व धार्मिक परम्पराओं का निर्वहन करना पड़ता है।
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