Uttarakhand News: व्यास घाटी के गांवों से माइग्रेशन का समय बदला, अभी भी गांवों में ग्रामीण
उत्तराखंड के व्यास घाटी के गांवों से पलायन का समय बदल गया है। चीन सीमा तक सड़क बनने और आदि कैलास यात्रा के चलते अब लोग नवंबर में भी गांवों में ही रह रहे हैं। कुटी गांव में बर्फबारी के बावजूद कई परिवार मौजूद हैं, और गुंजी, नाबी में तो पलायन शुरू भी नहीं हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क बनने और पर्यटन बढ़ने से गांवों में रहना आसान हो गया है, और भविष्य में शीतकालीन पर्यटन की भी संभावना है।

कुटी गांव में बुधवार रात्रि को हुआ हिमपात, 60 से अधिक परिवार अभी भी गांव में। जागरण
संवाद सूत्र, जागरण, धारचूला। चीन सीमा और आदि कैलास तक सड़क निर्माण और नवंबर के तीसरे सप्ताह तक भी आदि कैलास यात्रा संचालित रहने से व्यास घाटी के उच्च हिमालयी गांवों से होने वाले माइग्रेशन में बदलाव आ चुका है। भविष्य में शीतकालीन पर्यटन आरंभ हुआ तो अधिकांश परिवार गांव में रहने के संकेत देने लगे हैं। 12303 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुटी गांव में बुधवार को हिमपात हो चुकी है, परंतु अभी भी 60 से 70 परिवार गांव में ही बने हैं। गुंजी, नाबी में तो अभी माइग्रेशन ही आरंभ नहीं हुआ है।
अमूमन 15 नवंबर तक व्यास घाटी के सभी छह गांवों के ग्रामीण माइग्रेशन कर शीतकाल में धारचूला आ जाते थे। गुंजी, नाबी आदि गांवों में कभी कभार दो चार परिवार ही ऐसे होते थे जो कुछ बाद में माइग्रेशन करते थे। गुंजी आदि कैलास मार्ग पर स्थित अंतिम गांव कुटी सर्वाधिक ऊंचाई वाले गांव के ग्रामीण सड़क तक नहीं बनने से अक्टूबर दूसरे पखवाड़े से माइग्रेशन कर अक्टूबर अंत तक धारचूला पहुंचते थे और गांव छह माह के लिए जनशून्य हो जाता था। अब स्थितियां बदल चुकी हैं।
नवंबर माह के तीसरे सप्ताह तक आदि कैलास यात्रा संचालित हो रही है। देश के विभिन्न स्थानों से यात्री आदि कैलास पहुंच रहे हैं। सभी गांव सड़क से जुड़ने के बाद ही माइग्रेशन में बदलाव आने लगा और आदि कैलास यात्रा संचालन से तो अब स्थिति बदल चुकी है। गुंजी और नाबी गांव के ग्रामीण तो अभी माइग्रेशन तक नहीं किए है। दोनों गांव 10500 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं। इस समय भी यात्रा के चलते पर्यटन होने से ग्रामीण अपने गांवों में है। जो सामरिकता के चलते अति महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।
क्या कहते हैं ग्रामीण
गुंजी गांव के वयोवृद्ध 97 वर्षीय मंगल सिंह गुंज्याल का कहना है कि अतीत में भी कुछ परिवार शीतकाल में भी गांव में रहते थे, परंतु तब व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं था। वर्तमान में सड़क बनने से अब गांवों से धारचूला पहुंचना सरल हो चुका है। पर्यटन बढ़ रहा है।
कुटी गांव के पान सिंह कुटियाल का कहना है कि पूर्व में इस समय तक गांव के सभी मकानों में ताले होते थे। सड़क होने और आदि कैलास यात्रा के चलते पर्यटक पहुंच रहे हैं। गुंजी गांव के ही सत्तल सिंह का कहना है कि सड़क और यात्रा से स्थितियां बदलने लगी है। अब कई परिवार गांव में ही शीतकाल व्यतीत करते हैं। नाबी गांव के विरेंद्र सिंह का कहना है कि अब स्थितियां बदल चुकी हैं। आने वाले समय में शीतकालीन पर्यटन भी बढ़ेगा।

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